कौशल ही नई आज़ादी है
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारत ने कल अपनी 79वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ मनाई। इस अवसर पर राष्ट्रीय विमर्श आत्मचिंतन से आगे बढ़कर भविष्य की एक ठोस परिकल्पना की ओर अग्रसर हुआ। इसका केंद्र रहा ‘विकसित भारत 2047’ का महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण, स्वतंत्रता के 100वें वर्ष तक एक विकसित भारत का निर्माण। यह विशाल लक्ष्य देश की अद्वितीय जनसांख्यिकीय पूँजी पर आधारित है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (मोस्पी) की भारत में युवा 2022 रिपोर्ट के अनुसार, 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग में 37.1 करोड़ से अधिक लोग देश की सबसे बड़ी पूँजी हैं।
इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत को विश्व की कौशल राजधानी बनाने का आह्वान केवल नीतिगत घोषणा न रहकर राष्ट्रीय अनिवार्यता बन चुका है। यद्यपि यह मिशन सभी क्षेत्रों में फैला है, पर इसका सबसे प्रभावशाली स्वरूप स्वास्थ्य सेवाओं में देखा गया। भारतीय नर्सिंग परिषद (आईएनसी) के आँकड़ों ने दर्शाया कि भारत हर साल 3.25 लाख से अधिक नए नर्सिंग स्नातक तैयार करता है—एक विशाल मानव संसाधन जिसे वैश्विक स्वास्थ्य दूतों में बदला जा सकता है।
भारतीय नर्सों की दुनिया भर में भारी मांग रही, लेकिन आधुनिक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों की आवश्यकताओं ने शैक्षणिक योग्यता और व्यावसायिक तैयारी के बीच बड़ी खाई उजागर कर दी। अत्याधुनिक अस्पतालों में सफलता के लिए केवल डिग्री पर्याप्त नहीं रही; इसके लिए उन कौशलों की ज़रूरत थी जो पारंपरिक पाठ्यक्रम अक्सर नहीं सिखाते।
ग्लोबल नर्स फोर्स (जीएनएफ) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ललित पटनायक ने ऐसे प्रौद्योगिकी-सक्षम मंच बनाने की परिकल्पना की, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संचालित हों और भारतीय नर्सों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाएँ तथा सफल करियर बनाने में सक्षम बनाएँ। उनके अनुसार, इस कौशल क्रांति का उद्देश्य केवल प्रशिक्षण नहीं बल्कि भविष्य के वैश्विक स्वास्थ्य नेताओं को गढ़ना होना चाहिए।
उन्होंने कहा, “कुछ क्षमताएँ ऐसी हैं जिन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। सबसे पहले तकनीकी दक्षता, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (ईएमआर) में निपुणता आवश्यक है। उतना ही महत्त्वपूर्ण है चिकित्सकीय सटीकता, विशेष रूप से जटिल औषधि गणना में। तकनीकी क्षमता से परे उन्नत भाषा दक्षता और संवेदनशील रोगी देखभाल जैसी सामाजिक क्षमताएँ जरूरी हैं। साथ ही, उच्च दबाव वाले वातावरण में तनाव प्रबंधन के लिए मानसिक दृढ़ता विकसित करना भी अनिवार्य है।”
जीएनएफ जैसी संस्थाएँ इस मानव पूँजी के विकास के लिए एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करने में जुटी रहीं। उन्होंने ऐसे संरचित मार्ग बनाए जो कक्षा और उच्च-प्रौद्योगिकी वैश्विक अस्पतालों के बीच की खाई को पाट सकें।
जीएनएफ के मुख्य व्यवसाय अधिकारी परमानंद संत्रा ने कहा, “हमारा लक्ष्य केवल अवसर पैदा करना नहीं रहा, बल्कि यह सुनिश्चित करना रहा कि कौशल की गुणवत्ता में समानता हो, जो वैश्विक मानकों के अनुरूप हो। इस सहयोग से यह सुनिश्चित हुआ कि भारतीय नर्स दुनिया में कहीं भी विश्वास और दक्षता का प्रतीक बने—और यही भारत को वैश्विक कौशल राजधानी बनाने की कुंजी है।”
इन पहलों ने भविष्य उन्मुख कौशलों को आत्मसात कर ऐसे पेशेवर गढ़े जो केवल नौकरी पाने तक सीमित न रहकर वैश्विक स्तर पर नेतृत्व भी कर सकें।
इन पहलों की सफलता ने एक बड़े सत्य को स्पष्ट किया। विकसित भारत की भव्य परिकल्पना तभी साकार हो सकती है जब एक सशक्त और सहयोगी पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हो। निजी संस्थान बाज़ार की माँग के अनुरूप प्रशिक्षण देते रहे, लेकिन उनके प्रयासों को व्यापक नीतिगत परिवर्तनों का समर्थन भी मिला।
परमानंद संत्रा ने कहा, “इसके लिए सरकार, निजी निकाय और शैक्षणिक संस्थानों के बीच एक सुदृढ़ त्रिपक्षीय गठबंधन आवश्यक रहा। सरकार को सुगमकर्ता की भूमिका निभाते हुए गुणवत्ता मानकों को लागू करना पड़ा। निजी निकाय बाज़ार ज्ञान और विशेषीकृत प्रशिक्षण लेकर आए, जबकि शैक्षणिक संस्थानों ने पाठ्यक्रम में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए।”
भारत की 79वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ पर स्वास्थ्य कर्मियों की यात्रा ने एक सशक्त खाका प्रस्तुत किया। उच्च गुणवत्ता वाले, वैश्विक रूप से प्रासंगिक कौशलों में निवेश करके और गुणवत्ता की समानता सुनिश्चित करके भारत ने अपने युवाओं को सशक्त बनाने और सबके लिए एक अधिक स्वस्थ, समृद्ध विकसित भारत की दिशा में कदम बढ़ाए।
