संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा टली, बिहार के मतदाता सूची संशोधन पर विपक्ष-सरकार में टकराव

Special discussion on Operation Sindoor postponed in Parliament, opposition-government clash over Bihar voter list amendmentचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: संसद में सोमवार को प्रस्तावित ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विशेष चर्चा एक बार फिर टल गई, क्योंकि विपक्ष के तीव्र विरोध और सरकार की असहमति के चलते स्थिति गतिरोध में बदल गई। यह बहुप्रतीक्षित चर्चा दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी, लेकिन विपक्ष द्वारा एक नई मांग रखने और सरकार के संभावित इनकार के कारण लगातार दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। अब चर्चा दोपहर 2 बजे तक के लिए टाल दी गई है।

विपक्ष की मांग थी कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के बाद बिहार में चल रहे विवादास्पद विशेष तीव्र पुनरीक्षण (SIR) अभियान पर चर्चा की एक-पंक्ति की गारंटी सरकार से ली जाए। गौरतलब है कि बिहार में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, और मतदाता सूची में संशोधन का मुद्दा राज्य की राजनीति में बड़ा विवाद बन गया है।

सरकार ने इस मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह एक तरह का “धोखा” है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “हम चर्चा के लिए पूरी तरह तैयार थे। लेकिन चर्चा शुरू होने के मात्र 10 मिनट पहले विपक्ष ने शर्त रख दी कि सरकार लिखित रूप में आश्वासन दे कि इसके बाद एसआईआर पर चर्चा की जाएगी। यह संसद की प्रक्रिया नहीं है। इस तरह की शर्तें ऐन मौके पर लाना गलत है।”

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने विपक्ष से यह भी पूछा कि “अब कांग्रेस और विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा से भाग क्यों रहे हैं?”

विपक्ष बिहार में चल रहे एसआईआर अभियान का विरोध कर रहा है, यह आरोप लगाते हुए कि यह प्रक्रिया विपक्षी दलों के समर्थकों को निशाना बनाएगी और सत्तारूढ़ एनडीए को राजनीतिक लाभ पहुंचाएगी।

इस विवाद के बीच चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि किसी भी मतदाता का नाम बिना उचित प्रक्रिया के सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग का कहना है कि मृत मतदाताओं, स्थानांतरित लोगों और एक से अधिक बार पंजीकृत व्यक्तियों को हटाना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है।

यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पहुंच चुका है, जहां दो-न्यायाधीशों की पीठ आज इस पर सुनवाई कर सकती है। याचिकाकर्ताओं ने पहले यह आरोप लगाया था कि दस्तावेजों की अनुपलब्धता के कारण बड़े पैमाने पर मतदाताओं को सूची से बाहर किया जा रहा है। अदालत ने तब आयोग को निर्देश दिया था कि वह आधार कार्ड, मतदाता फोटो पहचान पत्र और राशन कार्ड — इन तीन दस्तावेजों को स्वीकार करे, भले ही चुनाव आयोग ने इन्हें नकली होने की आशंका जताई थी।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अब तक लगभग 22 लाख मतदाता मृत पाए गए हैं, 36 लाख मतदाता या तो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं या उपलब्ध नहीं हैं, जबकि सात लाख लोगों ने एक से अधिक स्थानों पर पंजीकरण कराया है।

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