सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की वक्फ कानून संशोधन पर लगाई आंशिक रोक, ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’, कलेक्टर की शक्तियों पर सवाल
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम में किए गए विवादास्पद संशोधनों की कुछ अहम धाराओं पर अस्थायी रोक लगा दी। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि ये प्रावधान ‘मनमानी शक्तियों के इस्तेमाल’ को बढ़ावा देंगे और संविधान द्वारा निर्धारित अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।
रोक लगी इन प्रावधानों पर:
दानदाता के लिए ‘पाँच वर्षों तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ होने की अनिवार्यता – कोर्ट ने इसे पूरी तरह से स्थगित कर दिया है।
राज्य और केंद्र की वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति – इस पर पूरी रोक नहीं लगी, लेकिन कोर्ट ने संख्या सीमित कर दी है (राज्य बोर्ड में 11 में से अधिकतम 3 और केंद्र में 22 में से अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम सदस्य)।
कलेक्टर को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अंतिम अधिकार – कोर्ट ने इसे रोकते हुए कहा कि यह नागरिकों के व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों का हनन है और शक्ति के पृथक्करण (Separation of Powers) सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
विवाद का कारण क्या है?
पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम 1955 में 44 संशोधन प्रस्तावित किए थे। इनका उद्देश्य बताया गया था वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन। लेकिन कई प्रावधान जैसे कि गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, कलेक्टर को अंतिम निर्णयकर्ता बनाना और दानदाता की धार्मिक पहचान की अनिवार्यता ने भारी विवाद खड़ा कर दिया।
इस मुद्दे पर संसद में तीखी बहस और विरोध हुआ। संयुक्त समिति में भी बवाल हुआ जहाँ विपक्षी सांसदों ने समिति अध्यक्ष जगदम्बिका पाल पर उनके सुझावों की अनदेखी का आरोप लगाया। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने गुस्से में बोतल फोड़ दी जिससे वे घायल हो गए।
अंततः समिति ने बीजेपी द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी दी और यह कानून इस वर्ष अप्रैल में लागू हो गया।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती और बहस:
कई मुस्लिम धार्मिक संगठनों, राजनीतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि यह मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों का प्रबंधन) का उल्लंघन है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान पर जोर देते हुए कहा कि ऐतिहासिक स्थलों पर वक्फ का कोई कागज़ी सबूत नहीं हो सकता। “3,000 साल पुराना वक्फ कैसे साबित करेंगे?” उन्होंने सवाल किया।
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संपत्तियों में धोखाधड़ी और कब्जों का हवाला देते हुए उचित कानूनी दस्तावेजों की ज़रूरत बताई। लेकिन कोर्ट ने कहा कि सभी ‘वक्फ बाय यूजर’ गलत नहीं होते और सरकार को पहले वक्फ ट्रिब्यूनल में मामला ले जाना होगा।
‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ नियम पर बड़ी टिप्पणी:
कोर्ट ने इस प्रावधान को पूरी तरह से स्थगित कर दिया है और कहा है कि इससे ‘शक्ति के दुरुपयोग’ की आशंका है। कोर्ट ने पूछा कि “क्या अब लोग यह तय करेंगे कि कौन नमाज़ पढ़ता है, कौन शराब पीता है, और इस आधार पर किसी की धार्मिकता तय होगी?”
वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ैफा अहमदी और अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इस नियम को भारतीय धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया। “कौन सा धार्मिक ट्रस्ट दान देने से पहले धर्म का सबूत मांगता है?” सिंघवी ने कहा।
आगे क्या होगा?
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय नहीं दिया है। सुनवाई जारी रहेगी और जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक सरकार:
वक्फ संपत्तियों की ‘वक्फ बाय यूजर’ स्थिति नहीं बदल सकती।
कलेक्टर सीधे वक्फ घोषित नहीं कर सकते।
‘पांच वर्षों तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ की अनिवार्यता लागू नहीं होगी।
हालांकि, संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन अब भी अनिवार्य रहेगा क्योंकि कोर्ट ने कहा कि यह पहले भी कानून में था, बस लागू नहीं हुआ था।