विदेशी नागरिकों की पहचान के नाम पर असम सरकार की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट का इनकार

Supreme Court refuses to take action against Assam government in the name of identification of foreign nationalsचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (ABMSU) द्वारा दाखिल उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें असम सरकार द्वारा “अंधाधुंध” तरीके से विदेशी नागरिकों के रूप में चिन्हित किए गए व्यक्तियों को हिरासत में लेकर देश से बाहर भेजने की कार्रवाई पर चिंता जताई गई थी।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता को गुवाहाटी हाईकोर्ट से उचित राहत लेने की सलाह दी। शीर्ष अदालत ने कहा, “आप गुवाहाटी हाईकोर्ट जाइए। हम इस याचिका को खारिज कर रहे हैं।”

ABMSU, जो कि असम के बोडोलैंड क्षेत्र में सक्रिय एक सामाजिक और छात्र संगठन है, ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि असम पुलिस और प्रशासनिक तंत्र द्वारा राज्य के सीमावर्ती जिलों — जैसे धुबरी, दक्षिण सालमारा और गोलपाड़ा — में बिना किसी न्यायिक निगरानी या संवैधानिक सुरक्षा उपायों के, लोगों को “पुश बैक” नीति के तहत देश से बाहर किया जा रहा है।

याचिका में अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दायर करते हुए कहा गया, “यह ‘पुश बैक’ नीति कानूनी रूप से असंगत है और विशेष रूप से गरीब व वंचित समुदायों के ऐसे भारतीय नागरिकों को राज्यहीन बना सकती है, जिन्हें या तो एकतरफा रूप से विदेशी घोषित कर दिया गया है या जिन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का कानूनी अवसर तक नहीं मिल पा रहा है।”

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह नीति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 22 (गिरफ्तारी से संबंधित अधिकारों) का उल्लंघन करती है। इसके साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा नागरिकता अधिनियम की धारा 6A से संबंधित निर्णय सहित कई प्रमुख फैसलों का भी उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया कि कई मामलों में न तो विदेशियों के ट्रिब्यूनल के आदेशों की सूचना दी जाती है, न ही विदेश मंत्रालय द्वारा नागरिकता की पुष्टि कराई जाती है, और न ही लोगों को अपील या पुनर्विचार का अधिकार समझाया जाता है।

ABMSU ने मांग की कि बिना विधिसम्मत प्रक्रिया के किसी भी व्यक्ति को देश से बाहर भेजना असंवैधानिक घोषित किया जाए और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) एवं कानूनी सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से प्रभावित व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।

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