हॉकी को ज्यादा सिर चढ़ाना कहाँ तक ठीक है?

To what extent is it okay to give too much headway to hockey?राजेंद्र सजवान

टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीमों के दमदार प्रदर्शन के कारण जहां एक और अपने तथाकथित राष्ट्रीय खेल का सम्मान लौटता प्रतीत हुआ, तो दूसरी तरफ खेल जानकार और अन्य खेलों से जुड़े खिलाडी और अधिकारी कह रहे हैं कि हॉकी को बेवजह ही सिर चढ़ाया जा रहा है।

टोक्यो में भारतीय पुरुष टीम ने चार दशक बाद कांस्य पदक जीता जबकि महिला टीम चौथे स्थान पर रही थीऔर उन्हें हाथों हाथ लिया गया था।

कुछ पहलवानों के अनुसार उनके खेल में लगातार ओलम्पिक पदक मिल रहे हैं और कुश्ती में भारत की बड़ी पहचान कायम हो चुकी है। एशियाड, ओलम्पिक और कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय पहलवानों को सम्मान के साथ देखा जाता है लेकिन चर्चा में जब देखो हॉकी रहती है। ऐसा क्यों है? एक बैडमिंटन खिलाडी के अनुसार आईओए अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा क्योंकि वर्ल्ड हॉकी के चीफ हैं इसलिए हॉकी के भावों में उछाल आया है। कुछ एथलीटों और मुक्केबाजों को भी इस भेदभाव से नाराजगी है।

हॉकी के कुछ पूर्व खिलाड़ी और कोच तो यहां तक कहने लगे हैं कि टोक्यो ओलम्पिक के प्रदर्शन पर इतराना ठीक नहीं है। कोरोना काल में आयोजित खेलों के स्तर को लेकर भी अलग-अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। उनकी राय में उड़ीसा सरकार और खेल मंत्रालय की मेहरबानी से हॉकी में निरंतरता आई है। लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले पेरिस ओलम्पिक 2024 तक इन्तजार करना श्रेयकर रहेगा। वैसे भी भारतीय हॉकी पर भरोसा हमेशा से घाटे का सौदा साबित हुआ है।

एक पूर्व ओलम्पियन के अनुसार जिस देश के पुरुष और महिला चैम्पियन जापान कोरिया और फ्रांस जैसी टीमों के सामने हथियार दाल दें उसके प्रदर्शन को आँख बंद कर कदापि नहीं देखा जाना चाहिए। अन्य खिलाडियों की राय ,में भारतीय टीमें यदि आगामी एशियाड और ओलम्पिक में खोया सम्मान अर्जित करती हैं तो यह मानना पड़ेगा की भारतीय हॉकी अपने खोये गौरव की तरफ लौट रही है। अधिकांश को लगता है कि हॉकी खिलाडियों को वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है जबकि उनकी असली परीक्षा होनी बाकी है।

जहां एक ओर अन्य खेलों की तुलना में हॉकी को अलग तरह का ट्रीटमेंट मिल रहा है तो दूसरी तरफ कुछ खेल ऐसे भी हैं जिनके नतीजे हॉकी से कहीं बेहतर रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं है। नाराज खेलों के अनुसार हॉकी में भाग लेने वाले देशों की संख्या क्रिकेट से कुछ ही ज्यादा है फिरभी प्रदर्शन किसी भी एंगल से गर्व करने लायक नहीं रहा। तो फिर ऐसे खेल को अलग तरह का सम्मान क्यों दिया जाता रहा है?

खुद हॉकी से जुड़े ज्यादातर खिलाडी और कोच कह रहे हैं कि हॉकी इंडिया और टीम प्रबंधन को सब्र से काम लेना चाहिए। जो सम्मान अर्जित किया है उसकी रक्षा शालीनता से ही की जा सकती है। चूँकि खिलाडियों को तमाम अवार्ड और सम्मान बांटे जा चुके हैं इसलिए उनसे अपेक्षा बढ़ गई है और उन्हें हर हाल में कसौटी पर खरा उतरना ही पड़ेगा।

 

Indian Football: Clubs, coaches and referees included in 'Khela'!(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं )

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