एमआई-17 इंजन टेस्टिंग में यूक्रेन का दखल! भारत की सुरक्षा पर सवाल?

चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के एमआई-17 हेलीकॉप्टर बरसों से रूस की तकनीक और पुर्जों पर निर्भर रहे हैं. लेकिन, हाल ही में हुए इंजन टेस्टिंग के दौरान संकेत मिले हैं कि अब यह स्थिति बदल सकती है. इन टेस्टिंग सेंटर्स में यूक्रेन टेक्नोलॉजी को भारत में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. यह एक ऐसा प्रयास है, जिसमें एक ब्रिटिश पासपोर्टधारी अनिवासी भारतीय व्यवसायी सुमंत कपूर की भूमिका अहम बताई जा रही है.
मल्टीलेवल नेटवर्क कर रहा है काम
सुमंत कपूर द्वारा समर्थित और फंडिंग होने वाला यह नेटवर्क नई दिल्ली, कीव और दुबई तक फैला है. इस नेटवर्क को बेहद सुसंगठित तरीके से तैयार किया है, जिसमें पूर्व सैन्य अधिकारी, तकनीकी विशेषज्ञ और कॉरपोरेट भागीदार शामिल हैं. उनका उद्देश्य भारतीय वायुसेना के एमआई-17 बेड़े में रूस की बजाय यूक्रेनी इंजन तकनीक को शामिल करना है.
तीन कंपनियों का नेटवर्क
इस रणनीतिक पहल के पीछे तीन कंपनियां रीढ़ की तरह काम कर रही हैं. इनमें इवचेंको प्रोग्रेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, अकीला टेक्नोलॉजीज एंड इंटीग्रेशन सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड और जोर्या मैशप्रोजेक्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं. ये कंपनियां अलग-अलग नाम से रजिस्टर्ड जरूर हैं, लेकिन इनका संचालन, वित्त और रणनीति की देखरेख सुमंत कपूर के नेतृत्व में किया जा रहा है. इवचेंको प्रोग्रेस का कनेक्शन सीधे यूक्रेन की दो बड़ी एयरो इंजन कंपनी इवचेंको प्रोग्रेस एसई और मोटर सिच जेएससी से बताया जाता है.
कौन कर रहा है नेतृत्व
इन कंपनियों का नेतृत्व करने वालों में पांच लोग शामिल हैं. इनमें शालिनी कपूर का नाम सबसे पहले बताया जा रहा है. शालिनी कपूर पवन खाबा (कीव स्थित ऑपरेटर) की बहन, हैं, जिनकी भूमिका लॉजिस्टिक्स से लेकर समन्वय तक फैली हुई है. दूसरा नाम एयर कमोडोर (रिटायर्ड) आशुतोष लाल का आता है. ये यूक्रेन में पूर्व एयर अटैची और यूक्रेनी संपर्कों के प्रमुख सूत्रधार हैं. इन दोनों के अलावा, एयर कमोडोर (सेवानिवृत्त) अजय राठौर (अकीला टेक्नोलॉजीज के प्रबंध निदेशक, रणनीति के मुख्य योजनाकार), विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) सुधीर वर्मा (अकीला के सीईओ) और रजत कपूर (कॉरपोरेट फ्रंट पर निर्णायक भूमिका) नाम भी नेतृत्वकर्ता में शामिल है.
इंजन टेस्टिंग का बैकग्राउंड
सूत्रों के अनुसार, सुमंत कपूर ने भारत में परीक्षण के लिए यूक्रेन से दो एमआई-17 इंजन आयात करवाए. इनकी फंडिंग निजी स्तर पर किया गया, लेकिन यह कवायद सरकार की जानकारी में थी. यूक्रेन से रक्षा उपकरण लाना आसान नहीं है, क्योंकि युद्धरत देश होने के कारण वहां से हर निर्यात पर पश्चिमी देशों और नाटो की कड़ी निगरानी में रहती है. बावजूद इसके, इवचेंको इंजन भारत लाए गए और टेस्ट किए गए.
कीव से दिल्ली तक रणनीति का विस्तार
सुमंत कपूर के नेटवर्क ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया. इस दौरान इवचेंको इंजन को भारत के हेलीकॉप्टरों के लिए “बेहतर और भरोसेमंद विकल्प” के तौर पर प्रस्तुत किया गया. इस पहल के लिए नई दिल्ली के एक बड़े होटल को संचालन केंद्र बनाया गया, जिसकी जिम्मेदारी शालिनी और रजत कपूर के पास थी.
भारत फोर्ज की बड़ी भागीदारी
दिसंबर 2023 में भारत फोर्ज ने जोर्या मैशप्रोजेक्ट इंडिया में 51% हिस्सेदारी खरीदी. यह इस बात का संकेत है कि अब यह केवल एक निजी उपक्रम नहीं रह गया, बल्कि भारत के पारंपरिक रक्षा उद्योग में इसका आधिकारिक प्रवेश हो चुका है. भारत फोर्ज की भागीदारी इस पूरे नेटवर्क को संस्थागत वैधता देती है.
रूस से दूरी की ओर एक कदम?
भारत दशकों से हेलीकॉप्टरों के लिए इंजन और कलपुर्जे रूस से लेता रहा है. लेकिन, इस यूक्रेनी नेटवर्क के प्रवेश से एक संकेत मिल रहा है. भारत बहु-स्रोत रणनीति अपनाना चाहता है. इस कदम से रूस के रक्षा निर्यात पर निर्भरता कम हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही पश्चिमी राजनीतिक और भू-सामरिक नीतियों से निकटता भी बढ़ेगी, जो नई जटिलताएं पैदा कर सकती हैं.
रूस को झटका, इजराइल को फायदा
बताया जाता है कि सुमंत कपूर के नेटवर्क ने एमआई-17 अपग्रेड प्रोजेक्ट को रूस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट से हटाकर इज़रायली कंपनी एल्बिट सिस्टम्स को दिलवाया. ऐसा कहा जाता है कि इस नेटवर्क ने भारतीय वायुसेना के महत्वपूर्ण तकनीकी दस्तावेज एल्बिट को उपलब्ध कराए, जिससे रूसियों की बोली अप्रासंगिक हो गई.
ऑपरेशनल टीम और भूमिकाएं
सुमंत कपूर के नेटवर्क में प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक टीम है. इस टीम में अरुण साहनी (रक्षा खरीद प्रक्रियाओं के विशेषज्ञ), कर्नल (रिटायर्ड) अनिल यादव, कृष्णन सेंधिल कुमार, राकेश केआर माध्रा (संचालन और समन्वय में भूमिका) और पुष्पनधन वेल्लापराम्बिल (दुबई स्थितवित्तीय संरचना और समन्वय) शामिल हैं.
तकनीकी क्षेत्र में नया काम या फिर नया विवाद?
जो पहल एक निजी प्रयास के रूप में शुरू हुई थी, वह अब भारत की रक्षा नीति के केंद्र में पहुंच गई है. यूक्रेनी तकनीक का यह प्रवेश भारत की आत्मनिर्भरता को समर्थन भी दे सकता है और नए रणनीतिक तनाव भी ला सकता है. अब यह देखना होगा कि क्या यह नेटवर्क भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान में स्थायी जगह बना पाएगा? क्या इससे रूस के साथ भारत के संबंधों में तनाव आएगा? क्या यह भू-राजनीतिक संतुलन बदलने की शुरुआत है?