उपराष्ट्रपति ने अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण को भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण का क्षण बताया

चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु अपनी पत्नी उषा नायडु के साथ ऐतिहासिक नगरी अयोध्या के दौरे पर थे, जहां उन्होंने राम-जन्मभूमि स्थल और प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना की।
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु और उनकी पत्नी उषा नायडु के उनके साथ उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी आज अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर स्थल पर थे।
नायडु, एक विशेष ट्रेन से सुबह अयोध्या पहुंचे। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने अयोध्या रेलवे स्टेशन पर उनका स्वागत किया।
इसके शीघ्र बाद उपराष्ट्रपति और उनकी पत्नी ने राम-जन्मभूमि स्थल का दौरा किया, जहां राम जन्मभूमि-तीर्थ ट्रस्ट के सदस्यों ने शीघ्र बनकर तैयार होने वाले राम मंदिर के 3-डी मॉडल को प्रदर्शित करने वाली एक लघु फिल्म के माध्यम से विस्तृत प्रस्तुति दी। इसके बाद, नायडु ने निर्माणाधीन राम मंदिर के गर्भ गृह स्थल पर पूजा-अर्चना की। उन्होंने राम लला की पूजा-अर्चना भी की। राम जन्मभूमि की दर्शक पुस्तिका में उन्होंने लिखा-
’’आज राम जन्मभूमि का दर्शन करके धन्य हो गया। भगवान राम हमारी संस्कृति, हमारे मूल्यों और हमारे गौरवशाली इतिहास के प्रतीक हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन से भारत के लोगों को हमेशा प्रेरणा मिली है और उनको सच्चा मार्गदर्शन मिला है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का पुनर्निर्माण भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण का क्षण है। मुझे विश्वास है कि यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करने और उन्हें सच्चाई, न्याय तथा भाईचारे का मार्ग दिखाने के लिए प्रेरित करता रहेगा।’’
बाद में नायडु और उनकी पत्नी ने नगर के प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना की। ऐसा माना जाता है कि श्रीराम के लंका से लौटने के बाद भगवान हनुमान ने इसी स्थान से अयोध्या शहर की रक्षा की थी।
उपराष्ट्रपति और उनकी पत्नी बाद में अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ पवित्र सरयू नदी तट पर गए और प्राचीन नदी की पूजा की, जो भगवान राम के जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है।
आज शाम को नायडु और उनकी पत्नी वाराणसी में गंगा आरती में भी शामिल होंगे।
अयोध्या से लौटने पर, उपराष्ट्रपति ने राम नगरी में अपने गहन भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव को साझा करते हुए एक फेसबुक पोस्ट लिखा। उपराष्ट्रपति द्वारा लिखी गई फेसबुक पोस्ट नीचे है –
अयोध्या दर्शन
मेरी अयोध्या यात्रा और श्री रामजन्मभूमि के दिव्य दर्शन – आज मेरी वर्षों की प्रतीक्षा पूर्ण हुई। मुझे विश्वास है कि मेरी तरह देश के लाखों श्रद्धालु नागरिक भी भगवान श्री राम के भव्य मंदिर में दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस तीर्थयात्रा ने, मुझे अपने संस्कारों, अपनी महान संस्कृति से जुड़ने का अवसर प्रदान किया। अयोध्या में श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है, यह प्रतीक है राम के आदर्शों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का : एक लोक हितकारी न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था जो सभी के लिए शांति, न्याय और समानता सुनिश्चित करती है।
राम राज बैठे त्रैलोका।
हर्षित भए गए सब सोका।।
बयरु न कर काहू सन होई।
राम प्रताप विषमता खोई।।
राम भारतीय संस्कृति के प्रेरणा पुरुष हैं, वे भारतीयता के प्रतीक-पुरुष हैं। एक आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र- वे आदर्श पुरुष हैं। हम भारतीय जिन सात्विक मानवीय गुणों को सदियों से पूजते आए हैं, वे सभी राम के व्यक्तित्व में निहित हैं। इसी लिए महाविष्णु के अवतार श्री राम, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
रामायण का संदेश भागौलिक सीमाओं से परे, सार्वभौम और कालातीत है, उसकी प्रासंगिकता महज भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं है। इस कालजयी रचना के अनगिनत संस्करण दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों जैसे थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया, म्यांमार, लाओस में आज भी प्रचलित हैं।आज भी, भगवान राम और देवी सीता के चरित इन देशों की लोक परंपराओं का हिस्सा हैं। रामायण का संदेश सदैव हमारी आस्था का केंद्र रहा है, पीढ़ियों से ये हमारी चेतना का हिस्सा है, सदियों पुरानी हमारी सभ्यता की प्राणवायु है।
रामायण में वर्णित श्री राम के जीवनचरित में सत्य, न्याय, करुणा, सौहार्द और सद्भावना जैसे दिव्य मानवीय गुण निहित हैं।महर्षि वाल्मिकी ने कहा भी है ” रामो विग्रहम धर्म:”, राम धर्म का ही साक्षात स्वरूप हैं। पीढ़ियों से राम, भारतीय मूल्यों के पर्याय के रूप में वंदनीय हैं। इसीलिए महात्मा गांधी ने सुशासन और एक न्यायपूर्ण समाज के मानदंड के रूप में “रामराज्य” को ही स्वीकार किया।
संस्कृत में अयोध्या का अर्थ है, जहां युद्ध न हो, जो अजेय हो। अयोध्या का गौरवशाली इतिहास कोई ढाई हजार वर्ष पुराना है। पुण्य सलिला सरयू के तट पर बसी यह नगरी प्राचीन कोसल की राजधानी थी। भगवान श्री राम की जन्मस्थली होने के कारण, यह हिंदुओं की मोक्षदायनी सप्त पुरियों में सर्वप्रथम है जिसके बारे में तुलसी लिखते है:
बंदहु अवधपुरी अति पावनि।
सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।।
इतिहास में इसे “साकेत” के रूप में भी जाना जाता है। बौद्ध और जैन परंपराओं में भी इस नगरी का विशेष महात्म्य है। ऐसी मान्यता है कि गौतम बुद्ध ने स्वयं कई बार अयोध्या की यात्रा की थी और उनके “फेन सुत्त” की रचना भी अयोध्या में ही हुई थी। इसी प्रकार जैन आचार्य विमलसूरी द्वारा विरचित “पउमचरिय” जो कि रामायण का जैन संस्करण है, उसमें रामायण के चरित्रों को जैन मान्यताओं के अनुरूप ढाल कर प्रस्तुत किया गया है। अधिकांश ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मौर्य और गुप्त वंश और उनके बाद भी, एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में अयोध्या की प्रतिष्ठा बनी रही।
5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शिलान्यास किए जाने के बाद से राम जन्म भूमि स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कार्य तेज़ी से चल रहा है। यह संतोष का विषय है कि IIT, NIT, Central Building Research Institute, L&T Constructions तथा TATA Consultancy Engineering Ltd. जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के विशेषज्ञ साथ मिल कर इस ऐतिहासिक मिशन की प्रगति की निगरानी कर रहे हैं। मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि गर्भगृह को इस प्रकार डिजाइन किया जा रहा है कि हर राम नवमी पर सूर्य की किरणें राम लला के माथे पर पड़ेंगी। उस स्थान पर खड़ा होना, मेरे लिए अकथनीय आह्लाद का अनुभव था। अनायास ही श्रीराम के जीवन के कितने ही प्रसंग मेरे मानसपटल पर उभरते चले गए। सरयू नदी के किनारे टहलना भावुक कर देने वाला अनुभव था। उस मार्ग पर कुछ दूर चलना, ऐसा अनुभव था मानो प्रभु राम के पथ का अनुगमन कर रहा हूं, जिस धरती पर श्री राम चले उसी धरती पर चलना, मैं अभिभूत था। नदी के किनारों को बड़े ही सुरुचिपूर्ण तरीके से बनाया गया है, जहां पूरा वातावरण ही भक्तिमय रहता है।
श्री राम के भव्य मंदिर के सुव्यवस्थित और सुनियोजित निर्माण के लिए, भारत सरकार द्वारा स्थापित श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट, हम सभी के कृतज्ञ अभिनंदन का पात्र है। मंदिर के आधार के लिए मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है जबकि मूल मंदिर के निर्माण में दक्षिण भारत से लाए गए ग्रेनाइट पत्थर और राजस्थान के प्रसिद्ध मकराना मार्बल का प्रयोग किया जा रहा है। मुझे यह भी बताया गया कि मंदिर की सुंदरता और मजबूती बढ़ाने के लिए, निर्माण में स्टोन इंटरलॉकिंग तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। सीता कूप और कुबेर टीला जैसे प्राचीन इमारतों का मूल स्वरूप बनाए रखने के विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विशेष सराहनीय है कि 70 एकड़ के इस परिसर में श्रद्धालुओं की सुगमता और सहायता के लिए केंद्र बनाया जा रहा है, संग्रहालय और शोध संस्थान स्थापित किया जा रहा है, गौशाला और योग केंद्र का भी प्रावधान है। आयताकार परिसर की चारदीवारी के चारों कोनों पर चार छोटे मंदिरों का निर्माण भी प्रस्तावित है।
श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण भारत के सांस्कृतिक इतिहास चरम बिंदु ही नहीं है बल्कि इससे अयोध्या की प्राचीन नगरी और निकटवर्ती क्षेत्रों के आर्थिक विकास का नया अध्याय भी प्रारंभ होगा।आध्यात्मिक धार्मिक पर्यटन, भारत में रोजगार का बड़ा माध्यम है और विश्व के प्राचीनतम जीवित शहरों में से एक, अयोध्या, देश विदेश के श्रद्धालुओं के लिए एक स्वाभाविक आकर्षण का केंद्र है।
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने अनेक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी कर दिया है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम पर एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया जा रहा है, साथ ही अयोध्या रेलवे स्टेशन का भी पुनर्निर्माण चल रहा है। होटल, फूड चेन, स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना में, बड़े पैमाने पर निजी निवेश आ रहा है। कुल मिला कर, इस पावन क्षेत्र अभूतपूर्व विकास दिखायी दे रहा है। राम की नगरी, अपना प्राचीन वैभव फिर से प्राप्त करेगी।
अपनी इस यात्रा के दौरान मुझे हनुमान गढ़ी के दर्शन का भी सुयोग मिला। मान्यता है कि नगर की रक्षा हेतु हनुमान जी यहीं वास करते थे। राजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित इस मंदिर में, अंजनी माता की गोद में बैठे बाल हनुमान की प्रतिमा है।
भगवान श्री राम की नगरी से लौट कर, मेरा रोम रोम, राममय हो गया है। सिया राम का जीवन संदेश हम सभी के जीवन को आलोकित करता है। आइए, रामायण के सनातन सार्वभौम संदेश से अपने जीवन को सार्थक करें, इस संदेश का प्रसार करें।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने महाकाव्य ” साकेत” के प्रारंभ में ही स्वीकारोक्ति की है, अयोध्या दर्शन के बाद उसकी सार्थकता जान सका:
“राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए, यह सहज संभाव्य है।।”