बिहार में महिलाओं का समर्थन बना नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत, तेजस्वी यादव अतीत की छाया से निकलने की कोशिश में
 चिरौरी न्यूज
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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महिलाओं का मजबूत समर्थन उनकी लगातार चुनावी सफलताओं का अहम आधार माना जाता है। वहीं, विपक्षी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए योजनाएं तो पेश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने पिता लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत की वजह से एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
1990 के दशक के उत्तरार्ध में लालू प्रसाद ने महिला आरक्षण बिल का कड़ा विरोध किया था, जिससे संसद में उसका पारित होना रुक गया। उस वक्त समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने भी लालू का साथ दिया था। हालांकि, उस समय कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इस बिल का पूरा समर्थन किया था।
अब तेजस्वी यादव उस अतीत को पीछे छोड़कर महिलाओं के हित में नई योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने दो दशक लंबे कार्यकाल में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाएं लागू कीं, जैसे पंचायतों में 50% आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण, साइकिल योजना, और जीविका जैसी स्वयं सहायता समूहों की शुरुआत।
एनडीए की ओर से शुक्रवार, 31 अक्तूबर को पटना में जारी संयुक्त घोषणा पत्र में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई वादे किए गए हैं। इनमें मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत ₹2 लाख तक की वित्तीय सहायता और एक करोड़ महिलाओं को “लखपति दीदी” बनाने का संकल्प शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2023 को लखपति दीदी योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों (SHGs) से जुड़ी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है।
मोदी सरकार ने 2023 में संविधान (128वां संशोधन) विधेयक पारित कर महिला आरक्षण बिल को हकीकत बनाया, वह बिल जिसे 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पारित नहीं करा पाई थी। उस समय लालू प्रसाद, मुलायम सिंह और शरद यादव ने इसका विरोध किया था। शरद यादव ने तो “पारकटी औरतें” कहकर विवादित टिप्पणी भी की थी, हालांकि बाद में नीतीश कुमार के समझाने पर उनका रुख बदला।
नीतीश कुमार ने न केवल महिला आरक्षण का समर्थन किया बल्कि बिहार के पंचायतों और नौकरियों में महिलाओं के लिए अलग कोटा सुनिश्चित किया। उनके इन फैसलों ने राज्य में महिलाओं का राजनीतिक और सामाजिक सशक्तिकरण बढ़ाया और एक ठोस जनाधार तैयार किया।
अब सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव अपनी योजनाओं और वादों के जरिए उस महिला वोट बैंक को आकर्षित कर पाएंगे, जिसे नीतीश ने वर्षों की नीतियों और भरोसे से मजबूत किया है। इसका जवाब 14 नवंबर के जनादेश में मिलेगा, क्या महिलाएं इस बार इतिहास बदलेंगी या फिर नीतीश का जादू एक बार फिर चलेगा।

 
							 
							