बाबूजी… जरा तोल मोल के बोल

निशिकांत ठाकुर

अपने अब तक के जीवन में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पं. जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सहित कई बड़े नेताओं के भाषण सुनने का अवसर मुझे मिला। लगभग सभी नेताओं के भाषण बड़े ओजस्वी, जनता को जागरूक करने वाले तथा देश के विकास से संबंधित ही हुआ करते थे, यानी उन भाषणों के जरिये अवाम को बताया जाता था कि वह यानी उनकी सरकार देश और समाज के लिए क्या कुछ और कैसे करेगी। लगभग सभी नेताओं का भाषण इन्हीं मुद्दों के इर्दगिर्द होता था। श्रोता, यानी अवाम बड़े ध्यान से सुनकर उसकी चर्चा अपने गांव-मुहल्ले में करते थे। सब का भाव समान होता था और अपने नेताओं के प्रति उनके मन में इतना विश्वास होता था कि वह मान लेते थे कि उनके द्वारा कही गई हर बात के खास मायने होंगे, यानी हर काम तय समय के अनुसार होंगे। हां, यदि वह काम तय समय पर नहीं होता था तो फिर उन नेताओं की खैर नहीं होती थी। जनता उनसे कार्य नहीं होने का कारण पूछती थी और यदि उत्तर संतोषजनक नहीं होता था तो फिर उनके गले को जूतों की माला से सुशोभित करके उन्हें सरेआम घुमाया जाता था। इसके बावजूद कोई शक्ति बल का प्रयोग नहीं होता था। उन पर लाठी चार्ज नहीं होता था। उन पर गुंडा एक्ट अथवा देशद्रोह का मुकदमा कायम नहीं होता था। इतना सब होने के बावजूद नेता उन लोगों की भावनाओं को समझते थे और जिस काम के न होने पर उन्हें जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी, उन्हें ठीक करने का वादा करते थे। और, फिर भय कहिए या जनता से अपनापन… वे उन कार्यों को पूरा भी कराते थे। उन्होंने इस बात को लेकर कभी यह विवाद नहीं किया अथवा यह आरोप नहीं लगाया कि यह कार्य तो पिछली सरकार को करना था, इसलिए यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है। किसी भी मंत्री अथवा प्रधानमंत्री को कभी भी पिछली सरकार को कोसते हुए न तो सुना और न ही देखा गया। न ही कभी यह कहते सुना गया कि यह तो मात्र एक जुमला था। नेताआंे द्वारा मंच से कही गई बातांे और वादों को जनता अकाट्य मानती थी और उसका पूरा होना सच माना जाता था।

मेरा परिवार राजनीतिक और सामाजिक परिवेश का रहा है और मेरे परिवार के सदस्य भी आपातकाल के दौरान जेल की सजा में 19 महीने रह चुके हैं। मेरा भी जीवन काल पत्रकारिता के उत्थान में ही अब तक चल रहा है। इसलिए मुझे इस बात से तिलमिलाहट होती है कि आज के राजनीतिज्ञ किस प्रकार झूठ का सहारा लेकर जनता को गुमराह करते हैं। उनकी बातों का भाव यही होता है जैसे भारतवर्ष का जन्म महज 6 वर्ष पूर्व 2014 में हुआ था जिसे हमारे कई वर्तमान नेताओं ने खोजकर निकाला, क्योंकि उससे पहले तो विश्व के मानचित्र पर भारत का नक्शा था ही नहीं। आपातकाल के बाद कांग्रेस चुनाव में बुरी तरह हार गई थी, लेकिन फिर दूसरे चुनाव में क्या नतीजा रहा, यह देश के बच्चे-बच्चे को पता है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल ने जिस प्रकार विपक्ष के प्रति नफरत फैलाने की राजनीति शुरू की थी, उससे सत्तारूढ़ दल को कोई लाभ नहीं मिला और चुनाव में उसे बुरी हार झेलनी पड़ी थी। क्योंकि जनता तब पिछली सरकार के प्रति आलोचना सुन-सुन कर ऊब चुकी थी और इसलिए सत्तारूढ़ दल तब उनकी नजर घृणा के पात्र होते जा रहे थे। भारतीय नागरिक अब बहुत बुद्धिमान और जागरूक है वह एक-दो बार हर किसी को मौका देती है, लेकिन स्थायी मौका किसी को नहीं देती, ताकि वह जनता को अधिक दिन तक मूर्ख न बनाती रहे। और, अब रही वर्तमान सरकार द्वारा किए गए वादों का… तो क्या सभी वादे पूरे हो गए? क्या देश का विकास विद्युत गति से होने लगा? क्या आज देश की समस्त जनता के हाथ में काम है और उद्योगपति अपना व्यवसाय सही तरीके से चला रहे हैं? यदि ऐसा नहीं तो फिर क्या सारे जुमले ही थे? क्या इस सरकार का गठन ही इस उद्देश्य से हुआ था कि वह तरह तरह के जुमलों के साथ कांग्रेस मुक्त भारत को कर दे। ऐसा तो हुआ नहीं कि देश कांग्रेस मुक्त हो गई, लेकिन कई राज्यों में भाजपा को अपनी सरकार को गंवाकर कांग्रेस के हवाले राज्य को करना पड़ा। हां, मैंने डॉक्टर राम मनोहर लोहिया, जार्ज फर्नांडिस, मधु लिमिये सहित कई नेताओं को संसद में और सरकार से भिड़ते हुए देखा और सुना है। पर, क्या आज ऐसा संभव है? यह सब उलझना केवल देश के लिए होता था, देश की जनता के लिए होता था।

अब सत्तारूढ़ दल द्वारा रोज नए-नए शब्दों का इजाद विपक्ष और विशेषकर कांग्रेस के लिए किया जा रहा। ऐसे शब्द गढ़ने वाले ऐसे लोग हैं जिनका जन्म ही राजवंश के पचासों वर्ष बाद हुआ और उन्हें अर्थात ऐसे नेताओं को यह नहीं मालूम कि जो आज विपक्ष में है अथवा जिन्हें वह आज राजवंश कह रहे हैं, उनका योगदान देश की आजादी में क्या था। गाल बजाने के लिए बिना इतिहास को जाने-समझे गलत शब्दावली का प्रयोग करना आज लगभग हर किसी की आदत हो गई है। ऐसा हमारे नेतागण ही नहीं, हमारी पत्रकार बिरादरी भी करते हैं। दुख तो तब होता है कि अपनी गलती मानने के बजाय उस गलत शब्द को सही साबित करने में अपनी पूरी क्षमता का दुरुपयोग करते हैं। खैर… हम देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों की बात कर रहे है। आज की सरकार से पहले कभी भी किसी भी सरकार ने मेरी याददाश्त के अनुसार अपने पूर्ववर्ती सरकार के प्रधानमंत्री और उनके परिवार पर इतने आरोप नहीं लगाए थे और न ही इतनी गालियां दी थीं। आज तरह-तरह के अलंकरणों से विपक्ष को नीचा दिखाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि उन नेताओ के मन में डर बैठा है कि यदि जनता को भ्रम में नहीं रखा गया तो आगे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा और वे डूब जाएंगे। इसलिए आज सत्तारूढ़ दल के जो सलाहकार हैं, उन्हें यह सलाह अपने नेताओ को अवश्य देनी चाहिए कि वह उनसे आग्रह करें कि वह शब्दों का इस्तेमाल करने से पहले उसके अर्थ को समझें और तभी उसे सार्वजनिक मंच से जनता के समक्ष पेश करें। ठीक है कि वर्तमान सरकार का पहला पंचवर्षीय कार्यकाल जनता की नजर में शायद अच्छा गया, तभी उसका परिणाम लोकसभा चुनाव में देखने को मिला, लेकिन हर बार ऐसा होगा, यह जरूरी नहीं, क्योंकि यह वर्ष कठिनाइयों से भरा है। भारत सहित पूरा विश्व करोना महामारी की मार झेल रहा है और बिना कारण भारत पर आक्रमण करने के लिए तीन-तीन देश अपने हथियारों को मांज कर तैयार बैठे हैं। ऐसी स्थिति में देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठे लोग तो सोच ही रहे होंगे और सतर्क भी होंगे, लेकिन एक सामान्य नागरिक होने के नाते हमें भी अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहने की जरूरत है। आपातकाल की इस स्थिति में देश हित में सभी दलों को एकजुट होने की जरूरत है और सत्तारूढ़ दल को अपने व्यंग्य और चुटीले शब्दों का इस्तेमाल बंद करना होगा, तभी देश सभी ज्ञात-अज्ञात खतरों से निपट सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं) ।

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