मत छेड़ो वीरों को ,लड़ना मुश्किल होगा; वरना लिखेंगे ऐसा इतिहास कि पढ़ना मुश्किल होगा

(फोटो सोशल मीडिया से साभार )

रीना सिंह, अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय

यदि कोई बच्चा अपने परिवार से धन प्राप्त करता है, तो वह इसका उपयोग करने के लिए बाध्य है और कोई भी ऐसा करने में उसके गलत होने का उल्लेख नहीं करता। यदि आपके पूर्वजों ने कोई महान कार्य किया है, तो आपको यह सौभाग्य प्राप्त है और साथ ही हमें उस सम्मान और गौरव को जीवित रखने के लिए और अधिक मेहनत करने की प्रेरणा देता है ।

मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं कि यह आजादी के बाद से भारत के लोगों को पढ़ाया जा रहा है कि हम गरीब, पक्षपाती और एकतरफा इतिहास का परिणाम है। हमें बहुत कम ऐसे लोग मिलते हैं जो वास्तव में वास्तविक इतिहास में रुचि रखते हैं। हमें मुगलों, कुछ स्थानीय इतिहास, ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष (जो वास्तव में ज्यादातर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तक ही सीमित है) के बारे में ही  पढ़ाया गया है।

तीन चीजें कभी छिपी नहीं रह सकती: सूर्य, चंद्रमा और सत्य। अगर हम राजपूत समाज की बात करें तो हम पायेंगें कि  राजपूत का अर्थ है – एक राजा का पुत्र, एक ऐसा शब्द जो अपने आप में वीरता, बलिदान और साहस का प्रतीक है। यह एक योद्धा और शासक वंश है जिसका भारतीय समाज में योगदान सदियों से सराहनीय है, राजपूतों ने भारत के इतिहास को अपने लहू और त्याग से स्वर्णिम किया है। हम सभी ने सुना है, मुगलों ने दूसरे शासकों के क्षेत्रों पर आक्रमण किया, असहायों का सिर काट दिया और महिलाओं को अपनी गरिमा बचाने के लिए जौहर करने के लिए मजबूर किया।

अलाउद्दीन खिलजी ने केवल महारानी पद्मिनी को जीतने के लिए चित्तौड़ पर हमला किया, यहाँ तक कि अकबर ने भी चित्तौड़ पर हमला किया और इसे जीतने के बाद, उनकी सेना ने बचे हुए निर्दोष लोगों को मार दिया। मारे गए और जलाए गए लोगों में से अधिकांश के पास कोई हथियार भी नहीं था, वे व्यापारी और किसान थे, पर आपने कितनी बार राजपूत राजाओं द्वारा किए गए ऐसे अत्याचारों को सुना होगा?

ऐसे ही एक महान राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे, नागभट प्रतिहार प्रथम ने गुजरात जिसे “गुर्जर” देश भी कहा जाता था पर विजय प्राप्त की, राजा मिहिरभोज को अक्सर गुर्जरेश्वर कहा गया है।

“गुर्जर” शब्द काफी हद तक गौड़ा, कर्नाटक, पंजाबी शब्द से मिलता जुलता है।  राजा मिहिरभोज प्रतिहार राजवंश के सबसे महान राजा माने जाते है। इन्होने लगभग 50 साल तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था और इसके अन्तर्गत वे क्षेत्र आते थे जो आधुनिक भारत के राज्यस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियांणा, उडीशा, गुजरात, हिमाचल आदि राज्यों हैं। मिहिर भोज विष्णु भगवान के भक्त थे तथा कुछ सिक्कों मे इन्हे ‘आदिवराह’ भी माना गया है। मेहरोली नामक जगह इनके नाम पर रखी गयी थी।

राष्टरीय राजमार्ग २४ का कुछ भाग गुर्जर सम्राट मिहिरभोज मार्ग नाम से जाना जाता है। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फेला हुआ था। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। 50 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्र पाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिर भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है, साथ ही मिहिर भोज की महान सेना की तारीफ भी की है। मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण में राजकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती हुई बतायी है ।

राजपूतों की लगभग उपमहाद्वीप में व्यापक आबादी थी, विशेष रूप से उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश, सुराष्ट्र, जम्मू, हरियाणा, मध्य प्रदेश और बिहार में पाई गई। हाल ही के कुछ सालों में 90 के दशक में पहली बार कुछ जातियां अपना नाम “गुज्जर” रख कर राजनीति के लिए सामने आयी।

“जब आपके पास कोई इतिहास नहीं होता है, तो आप इसे चुरा लेते है। अपनी पहचान बनाने के लिए गुज्जरों के कईं नेताओं ने धमकी दी है कि यदि केंद्र सरकार ने राजस्थान में गुज्जरों सहित पांच पिछड़े वर्ग (एमबीसी) को संवैधानिक संरक्षण प्रदान नहीं किया तो वो आरक्षण आंदोलन को फिर से शुरू कर देंगे। गुज्जर आरक्षण संघर्ष समिति के सदस्यों ने कईं बार केंद्र सरकार को सिफारिश की थी कि राजस्थान पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2017 में संशोधन करें।

गुज्जर पिछड़े वर्गों को प्रदान किए गए कोटा को बढ़ाने की भी लगातार कोशिश करते रहे हैं। गुज्जर नेताओं की मांग थी कि राजस्थान सरकार गुज्जरों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करवाए। रिक्त पदों के बैकलॉग को भरें और लंबित भर्ती प्रक्रिया में अति पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) को पांच प्रतिशत आरक्षण का लाभ दें, जिसमे पांच समुदाय को “विशेष पिछड़ा वर्ग” आरक्षण प्रदान किया गया वो थे – गुज्जर,  बंजारा, गड़िया लोहार और राइका (रेबारी/देवासी)।  हालाँकि, इस अधिनियम के तहत आरक्षण को चुनौती दी गई थी क्योंकि राजस्थान राज्य में कुल आरक्षण 50% की सीमा से अधिक था।

देश में आर्थिक विकास के साथ मध्यम वर्ग का आकार असमान रूप से बढ़ा है। जबकि उनकी आकांक्षाएं बढ़ी हैं, वे अपनी जरूरतों को पूरा करने और पारंपरिक स्थिति को बनाए रखने में असमर्थ हैं, और इसलिए अभाव की एक भावना का अनुभव करते हैं। गुजरात में दो आरक्षण विरोधी आंदोलन अनिवार्य रूप से मध्यम वर्ग के भीतर संघर्षरत थे-एक ओर उच्च और मध्यम जाति के सदस्यों के बीच और दूसरी ओर नई निम्न जाति के प्रवेशकों के बीच। इन आंदोलनों में उन्हें पूंजीपति वर्ग का समर्थन प्राप्त था जिसके साथ उनके मजबूत वैचारिक और सामाजिक संबंध हैं। वे मीडिया और शैक्षणिक संस्थानों को नियंत्रित करते हैं और नौकरशाही और पुलिस पर हावी होते हैं।

आरक्षण सबसे पहले राजनीतिक अभिजात वर्ग द्वारा केवल वोट पकड़ने और वंचित वर्गों की आकांक्षाओं को फैलाने के साधन के रूप में पेश किया गया था। लेकिन सामाजिक परिवर्तन के किसी भी दृष्टिकोण के अभाव में आरक्षण की अवधारणा महज एक राजनीतिक हथकंडा बनकर रह गया है, उसी के तहत एक समुदाय से उसके इतिहास को छीन लेने का प्रयास करना भी है, यह सब एक षड़यंत्र का हिस्सा है जो हम सब को समझना होगा। इतिहास गवाह है भारतवासी केवल छल से हारे है,या जब अपनों ने ही अपनों के पीठ में खंजर मारे।

मुसीबत में जो वीरता से लड़ा वो इतिहास हो गया,

जो अहंकार के साये में फला-फूला वो ख़ाक हो गया।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, महिला संगठन की राष्ट्रीय सचिव हैं। )

 

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