फुटबाल दिल्ली: गुटबाजी और आरोप प्रत्यारोप के कारण अब बुरे दिन दूर नहीं

राजेंद्र सजवान
कोरोना काल में पूरे देश में फुटबाल गतिविधियाँ लगभग ठप्प पड़ी हैं लेकिन दिल्ली की फुटबाल में एक ऐसा खेल चल रहा है जिस पर लगाम नहीं लगाई गई तो राजधानी की फुटबाल चालीस पचास साल पुराने दौर में पहुँच सकती। 70-80 के उस दौर में फुटबाल मैदान की बजाय कोर्ट कचहरी में खेली जाती थी। तब अंबेडकर स्टेडियम में देर रात तक अलग अलग गुटों की बैठकें होती थीं और एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चुका जाता था।

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि जहाँ एक ओर महामारी के चलते तमाम खेल संघ और उनकी स्थानीय इकाइयाँ बीमारी के निपटने के बाद अपने अपने खेलों को बेहतर बनाने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं, बड़ी ताक़त के साथ मैदान में उतरने की योजनाओं पर विचार विमर्श कर रहे हैं तो दिल्ली साकर एसोसिएशन(डीएसए) के पदाधिकारी एक दूसरे को घेरने, तौहमत लगाने और कीचड़ उछालने जैसे दुष्कर्मों में लगे हैं। ताज़ा उदाहरण अध्यक्ष शाजी प्रभाकरण का वह पत्र है, जिसमें उन्होने अपने उपाध्यक्ष और वरिष्ठ सदस्य हेम चन्द पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। सोशल मीडिया पर जारी पत्र में 2015 से 2017 के खातों का उल्लेख है जिसमें भारी गड़बड़ की आशंका व्यक्त की गई है। तब हेम चन्द कोषाध्यक्ष थे। छह माह पहले उन्हें सस्पेंड भी किया गया था।

शाजी प्रभाकरण के इस कदम को असंवैधानिक और निंदनीय बताया जा रहा है और कई वरिष्ठ सदस्यों का तो यहाँ तक कहना है कि हेमचंद को मान हानि का दावा पेश करना चाहिए। क्लीन बोल्ड ने जब उनसे जानना चाहा तो उन्होने कहा की फिलहाल कुछ भी तय नहीं है, क्योंकि पहले ही तमाम खाते वार्षिक बैठक में पेश किए गए थे और एकराय से पास हो चुके हैं। उन्हें हैरानी है कि शाजी प्रभाकरण ने फिर से इस मुद्दे को क्यों तूल दिया है और वह भी बिना किसी पर्याप्त कारण के और कार्यकारिणी से सलाह मशबरा किए बिना। उन्होने पलट वार करते हुए कहा कि शाजी फुटबाल दिल्ली को ब्रांड बना कर दिल्ली की फुटबाल से खिलवाड़ कर रहे हैं। जवाब में अध्यक्ष ने कहा कि कुछ लोगों को हर काम में खामी निकालने की आदत है क्योंकि उन्हें मनमानी का मौका नहीं मिल रहा। उनके अनुसार फुटबाल को पेशेवर बनाने के लिए नाम की ब्रान्डिंग की जा रही है और यह सब एकराय से प्रस्ताव पास किए जाने के बाद किया जा रहा है।

भले ही दिल्ली की फुटबाल कई समस्याओं से जूझ रही है लेकिन कोरोना काल से पहले राजधानी की फुटबाल का संतोष ट्राफ़ी राष्ट्रीय चैंपियनशिप के मुख्य दौर में पहुँचना, गढ़वाल हीरोज का आई लीग में शानदार प्रदर्शन करना और विभिन्न आयुवर्गों में ग्रास रुट फुटबाल को बढ़ावा देने से स्थानीय फुटबाल पटरी पर दौड़ती नज़र आने लगी थी। सुदेवा क्लब का आई लीग के मुख्य ड्रा में स्थान बनाना और दिल्ली एफसी का मिनर्वा क्लब से गठजोड़ भी बड़ी उपलब्धि के रूप में देखे जा रहे हैं। लेकिन दिल्ली की फुटबाल फिर से अपने बुरे दिनों को क्यों बुलावा दे रही है? पिछले दो साल के घटनाकर्म पर नज़र डालें तो अध्यक्ष शाजी और उनके करीबियों तथा अन्य के बीच सोशल मीडिया पर एक जंग सी छिड़ी है। आरोप प्रत्यारोपों का दौर फिर से चल निकला है, जोकि पुरानी बुरी यादों को ताज़ा कर रहा है।

सालों से दिल्ली की फुटबाल से जुड़े पदाधिकारी और क्लब फुटबाल को उँचाइयाँ प्रदान करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों में शुमार नरेंद्र भाटिया, डीके बोस, हेमचंद और कुछ अन्य को लगता है कि दिल्ली की फुटबाल फिर से अपने बुरे दौर को बुलावा दे रही है। उस समय दो से तीन धड़े अपने अपने दावे के साथ मैदान की बजाय कोर्ट में खेल रहे थे। खेल के नाम पर दो अलग अलग लीग आयोजित की गईं। इतना ही नहीं राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भी दो टीमों ने भागीदारी का दावा पेश किया। तब जुनेजा, चोपड़ा, ग्रोवर, बूंदू मियाँ, नवाबुद्दीन जैसे चर्चित नाम कुर्सी की लड़ाई लड़ रहे थे। उमेश सूद, नासिर अली, वीएस चौहान जैसे समर्पित अधिकारियों ने दिल्ली की फुटबाल को सही दिशा देने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन अब फिर से गुटबाजी की बू आने लगी है। तारीफ़ की बात यह है कि शाजी को अध्यक्ष की कुर्सी दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले हेमचंद ही अब शाजी के निशाने पर हैं|

शाजी कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार कदापि बर्दाश्त नहीं करेंगे, फिर चाहे कोई भी कुर्बानी क्यों ना देनी पड़े। लेकिन उन पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि डीएसए और फुटबाल दिल्ली नाम की दो इकाइयाँ एक साथ चला रहे हैं । यह भी आरोप है कि फुटबाल दिल्ली का अलग ख़ाता है, जोकि सरासर नियम विरुद्ध है। जवाब में उन्होने कहा कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद से फर्जियों की दुकान बंद हो गई है। उन्हें खिलाड़ियों का पैसा लूटने का मौका नसीब नहीं हो रहा इसलिए मनगढ़ंत आरोप लगा रहे हैं। हालाँकि आरोप लगाने वालों के पास भी फुटबाल दिल्ली के नाम से दूसरा ख़ाता होने का कोई प्रमाण नहीं है। अर्थात यूँ ही हवा में तीर चला रहे हैं।

नरेंद्र भाटिया और डीके बोस शाजी के पत्र के सरेआम होने को ग़लत मानते हैं लेकिन साथ ही कहते हैं कि यदि यूँ ही आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला चलता रहा तो दिल्ली के खिलाड़ियों को और बुरे दिनों का सामना करना पड़ सकता है, जिसकी ज़िम्मेदार खुद डीएसए होगी, जोकि अपने हाउस को संभालने में पूरी तरह नाकाम दिखाई देती है। बोस को लगता है कि शिक्षा और अच्छी सोच की कमी से खेल बिगड़ रहा है। एसए लोग क्लब चला रहे हैं जोकि ना तो कभी अच्छे खिलाड़ी रहे और नाही उन्हें नियमों की जानकारी है। बस मौका परस्ती उनका काम रह गया है। विभिन्न उच्च पदों का दायत्व कुशलता से निभाने वाले भाटिया कहते हैं कि पहले जैसे समर्पित खिलाड़ी और अधिकारी नहीं रहे और हो सकता है एक दिन दिल्ली से फुटबाल भी गायब हो जाए।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं. इनके लेखों को आप www.sajwansports.com पर भी पढ़ सकते हैं)

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