हिन्दी: वैश्विक पटल पर

रोहित कुमार झा

हमारे बहुत सारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं जैसे भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ, राष्ट्रीय पुष्प कमल, राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा राष्ट्रीय नदी गंगा, लेकिन राष्ट्रभाषा क्या ……..? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1)के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी भारत की राजभाषा (ऑफिशियल लैंग्वेज) है। हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में 14 सितंबर 1949 को स्वीकृत किया गया। संविधान में स्पष्ट किया गया है कि इसके साथ शासकीय कार्यों के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
कई सारे हिंदी भाषी शायद यह बात नहीं जानते हैं कि भारतीय संविधान किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं देता पर हिंदी के महत्व को स्वीकारते हुए हिंदी एक अधिकारिक भाषा है। मैं उस स्कूल से हूं और उस पीढ़ी से हूं जिसने हिंदी का पर्याप्त आदर नहीं किया। हमारे स्कूल में शुद्ध हिंदी बोलने वालों का मजाक उड़ाया जाता था और वहां ऐसा एक माहौल सा बन गया था जिसमें हर विद्यार्थी अपने आपको एक अच्छा अंग्रेजी भाषी साबित करने में लगा रहता था। दिल्ली में जब भी पुस्तक मेला लगता है हमेशा यह देखने को मिलता है कि अंग्रेजी की किताबें ज्यादा बिक रही है और हिंदी की कम।

अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने हाल में ही यह पता लगाया है कि बच्चों के सीखने की क्षमता अपनी मातृभाषा में सबसे अधिक होती है। यहां पर हम बच्चों को अंग्रेजी में विज्ञान गणित एवं अतिरिक्त विषय सिखाने का प्रयत्न करते हैं और वहां इजराइल रूस चीन इत्यादि देशों ने अपने बच्चों को आमतौर पर सभी विषय उनकी मातृभाषा में सिखाते हैं ।आज भारत तकनीकी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में जूझ रहा है जबकि इजरायल और चीन की तकनीकी उपलब्धियां किसी से कम नहीं है। यह इस बात को दर्शाता है कि ज्ञान किसी भाषा का दास नहीं है। 1998 तक कई लोग हिंदी को संसार की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा समझते थे, जबकि आज यह कहा जाता है कि चीनी  के बाद हिंदी संसार की सर्वाधिक बोली जाने वाली मातृभाषा है।

वैसे तो चीनी बोलने वाले लोग अधिक है किंतु हिंदी अधिक देशों में बोला जाता है। हिंदी फिजी की एक अधिकारिक भाषा है,  और इसके अलावा हिंदी का प्रचलन मॉरीशस,सूरीनाम,त्रिनिदाद  और नेपाल में भी है। हिंदी फिल्मों की बढ़ती लोकप्रियता एवं उर्दू के साथ समानताओं  की वजह से कई पाकिस्तानी अफगानी एवं बांग्लादेशी लोग हिंदी में वार्तालाप कर लेते हैं।

जैसे-जैसे अलग-अलग देशों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे हिंदी का प्रचलन एवं अंतर्राष्ट्रीय करण बढ़ रहा है। हाल ही में अबू धाबी ने हिंदी को अपनी अदालतों में इस्तेमाल होने वाली तीसरी अधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किया है।

WEF (वलर्ड इकोनोमिक फोरम) ने 2014 में एक रिपोर्ट में हिंदी को संसार की 10 सबसे शक्तिशाली भाषाओं में से एक माना था। उसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने अगस्त में सप्ताहिक हिंदी समाचार बुलेटिन की शुरुआत की थी। दुनिया भर के करीब 150 विश्वविद्यालयों में अलग-अलग स्तर पर हिंदी सिखाया जाता है। भारत सरकार भी हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा बनाने का प्रयत्न कर रही है। इसके लिए 193 सदस्य देशों में से 129 देशों का समर्थन आवश्यक है। जिसकी प्राप्ति से हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा होगी जो किसी भी देश की राष्ट्रीय भाषा हुए बिना भी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन जाएगी।

यदि यही बात हम ना तो रूसी के बारे में कह सकते हैं और ना ही अंग्रेज़ी या अरबी के बारे में।इन  फिर उसी के बारे में कह सकते हैं और ना ही अंग्रेजी या अरबी के बारे में इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर हिंदी का प्रयोग बढ़ेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि हिंदी के प्राकृतिक विकास में किसी भी प्रकार की बाधा को ना आने दिया जाए। उतनी ही महत्वपूर्ण यह बात भी है कि हिंदी और उससे संबंधित विषयों का अनावश्यक राजनीतिकरण रोका जाए। अंत में मैं यह कहूंगा कि जितना सशक्त हम हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाएंगे उतना ही सशक्त हिंदी हमें बनाएगी।

(लेखक शोधार्थी हैं)

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