क्षत्रिय मजबूत तो देश मजबूत

If the Kshatriya is strong then the country is strongरीना सिंह, अधिवक्ता

(राष्ट्रीय सचिव , महिला संगठन अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा)

 

भगवान श्री कृष्ण ने गीता के इस श्लोक के द्वारा क्षत्रियों के स्वाभाविक कर्मो का वर्णन किया है।

“शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।

दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्॥”

अर्थात, शौर्य, तेज, धृति, दक्षता, युद्ध से न भागना, दान और स्वामिभाव ये सब क्षत्रिय के स्वभावज कर्म हैं।  जिस प्रकार देश की सीमाओं पर खड़े सैनिको की वीरता और अदम्य साहस के बल पर देश का हर नागरिक आज अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है, जिस तरह इन वीर सैनिको के शौर्य और हिम्मत को आज देश का हर नागरिक राज्य, जाति एवं धर्म से ऊपर उठकर अपने सैनिको के सम्मान में एक आवाज़ में संगठित रहता है, उसी प्रकार हम अपने गौरवशाली इतिहास के उन क्षत्रिय नायको के इतिहास को खंडित करने का प्रयास क्यों कर रहे है। आज के समय में हमारे सिपाही बिना जाति और धर्म के भेदभाव के देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे है, आज़ादी के बाद हमारा देश लोकतंत्र की एक माला में पिरोया गया, जिसमे देश के रक्षा तंत्र और न्यायालय ने कभी भी जाति या धर्म के आधार पर कार्य नहीं किया।

1947 से पहले, सदियों तक देश जिस परिवेश में था, उन परिस्थितियों एवं उस दौर में क्षत्रिय समाज ने आज के सैनिकों  की ही तरह अपने देश की सीमाओं को विदेशी आक्रांताओ से बचा कर रखा और समय-समय पर देश की रक्षा के लिए अपने लहू के बलिदान से अपनी मातृभूमि को सींचा, इन तथ्यों और इस बलिदान के गौरवशाली इतिहास को किसी के सत्यापन की जरुरत नहीं है। अगर हम इतिहास को टटोलें  तो हम पाएंगे की हमारे देश का नाम भारत कहलाने से पहले “जम्बुद्वीप” कहलाता था, जिसका तात्पर्य आज के समय के एशिया महाद्वीप से है। क्षत्रियों की साहसी पहचान के कारण ही हमारे देश का नाम “भारत” है, राजा भारत जो राजा रिषभ के पुत्र थे तथा अयोध्या के क्षत्रिय सूर्यवंशी इक्ष्वाकु वंश के एक महान राजा थे।

यही नहीं भगवान गौतम बुद्ध का जन्म क्षत्रिय शाक्य कुल में हुआ था, क्षत्रियों के विभिन वंशो से भारत का इतिहास गौरवान्वित है, चाहे वो मेवाड़ के राजा बप्पा रावल हो जिनके नाम से पाकिस्तान का शहर रावलपिंडी बसा हुआ है या फिर महाराजा रंजीत सिंह हों जिन्होंने विदेशी आक्रांताओ को अपने शौर्य के बल पर देश की सीमाओं से दूर रखा, कुछ लड़ाइयों में तो उन्होंने दुश्मनो को उनके ईरान के खेमो तक खदेड़ दिया था, पंजाब से लेकर कश्मीर तक तथा सतलुज से लेकर सिंध तक, और कंधार से लेकर ईरान की सीमाओं तक महाराजा रंजीत सिंह ने अपनी मातृभूमि की रक्षा की।

क्षत्रियों का इतिहास केवल महाराणा प्रताप तक ही सीमित नहीं है। मालवा के राजा भोज से लेकर बनारस के महाराजा बलवंत सिंह तक आज भी क्षत्रिय इतिहास के साक्ष्य मौजूद है, क्षत्रिय राजा बलवंत सिंह जिनका बनाया हुआ रामनगर किला बनारस के तुलसी घाट के पास आज भी क्षत्रियों की कहानी बयां करता है, अगर हम क्षत्रिय इतिहास की बात करें तो हम पाएंगे की क्षत्रियों के कारण ही सैकड़ो वर्षो तक हमारा देश, विदेशी आक्रांताओं से बचा रहा। क्षत्रिय चक्रवर्ती सम्राट अशोक की तुलना विश्व के किसी भी शासक से नहीं की जा सकती जिनके शासन काल की धरोहरें आज भी विश्व भर में फैली हुई है। देश की आज़ादी के बाद कांग्रेस जैसे राजनैतिक दल ने क्षत्रिय राजाओं को कमजोर करने के लिए उनकी रियासतों के बड़े हिस्सों को अपने नियंत्रण में ले लिया ओर देखते ही देखते जब देश की राजनीती से क्षत्रिय वर्ग का हस्तक्षेप कम होता चला गया वैसे ही देश विघटित होता चला गया।

अठारवी शताब्दी में अफगानिस्तान एक अलग देश के रूप में भारत से विघटित हो गया, 1947 मे भारत का बटवारा हुआ और मुस्लिम देश पाकिस्तान बना, बटवारा भी ऐसा की जहाँ आज़ादी के बाद अब तक हिंदुस्तान में मुसलमानो की आबादी बढ़ती जा रही है और वही पाकिस्तान में हिन्दू आबादी लगभग खत्म हो चुकी है। देश का बटवारा सिर्फ पाकिस्तान तक ही सीमित नहीं था, बंगाल का हिस्सा बटकर बांग्लादेश बना, कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर पाकिस्तान का कब्ज़ा हुआ और दूसरे बड़े हिस्से पर चाइना का।

इतिहास ऐसे विवादस्पद प्रश्नो से भरा हुआ है की अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाला राजनैतिक दल और उसके अहिंसावादी आकाओं ने देश की आज़ादी से पहले ही देश के नागरिको को अंग्रेज़ो की तरफ से विश्व युद्धों तथा अन्य ऐसी लड़ाइयों में मरने के लिए भेज दिया जिनका देश से कोई लेना देना ही नहीं था। ये तथ्य इस बात को प्रमाणित करते है की जब देश की सुरक्षा जैसे बड़े निर्णयों की बाग़ डोर क्षत्रियों के पास नहीं थी तो देश ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण निर्णयों की निंदनीय राजनीती का शिकार हुआ जिसने देश को आर्थिक रूप से कमज़ोर करने के साथ -साथ देश की सीमाओं को विघटित कर दिया।

इतिहास साक्षी है की जब तक क्षत्रिय मजबूत था तब तक देश भी मजबूत था ओर जैसे- जैसे क्षत्रिय कमजोर होता चला गया  देश भी कमजोर होकर बटता चला गया। समय आ गया है की देश के पुराने गौरव को वापिस दिलाने के लिए क्षत्रिय को संगठित होकर आगे आना होगा ताकि मातृभूमि के सौभाग्य को पुनः स्थापित किया जा सके क्यूंकि यदि सिंह अहिंसक हो जाये तो गीदड़ भी शौर्य दिखाते है, इस शांति अहिंसा के चक्कर में, अपना विनाश प्रारंभ हुआ।  जब से अशोक ने शस्त्र त्यागे भारत विघटन आरम्भ हुआ।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता हैं और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, महिला संगठन की राष्ट्रीय सचिव हैं. )

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