मखाना की जीआई टैगिंग मिथिला के नाम नहीं किए जाने पर विद्यापति सेवा संस्थान ने दर्ज कराई आपत्ति

चिरौरी न्यूज़

पटना: भौगोलिक एवं सांस्कृतिक पहचान के मानक के हिसाब से मिथिला के 20 जिलों मे मखाना की हो रही खेती के मद्देनजर मखाना की जीआई टैगिंग बिहार मखाना की बजाय मिथिला मखाना या फिर मिथिलांचल मखाना के नाम करने के लिए विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कृषि संकायाधयक्ष को पत्र लिखा है।
इस पत्र के माध्यम से उन्होंने संकायाधयक्ष को ध्यान दिलाया है कि  रजिस्ट्रार, जीआई रजिस्ट्री, चेन्नई के समक्ष बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अग्रसारित किए गये आवेदन में मखाना के जीआई टैग के लिए नाम और लोगो को “बिहार मखाना” के रूप में प्रस्तावित किया गया है, जो मिथिला क्षेत्र के लोगों की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान की अवहेलना है। प्रस्तावित नाम और लोगो मखाना की खेती के भौगोलिक एवं सांस्कृतिक महत्व के सर्वथा विपरीत है।
पत्र में उन्होंने वर्ष 2018 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अग्रसारित  आवेदन संख्या 554 का हवाला देते लिखा है कि इसमें मात्र चार जिलों में सिमटे मगही पान की जीआई रजिस्ट्री ‘मगही पान’ के नाम से किए जाने की सुविधा दी जा चुकी है।  इसलिए विरासत मूल्य को रेखांकित करने और मिथिला क्षेत्र के 20 जिलों के लगभग आठ करोड़ लोगों की समृद्ध विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को उजागर करने के लिए “मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ” के आवेदन पर आगे की कार्रवाही की जा सकती है, बशर्ते इस प्रस्ताव में नाम और लोगो को बिहार मखाना की बजाय “मिथिला मखाना” या “मिथिलांचल मखाना” के रूप में जीआई टैग के लिए संशोधित किया जाय। ऐसा करने से मिथिला के सांस्कृतिक वैशिष्ट्य को समायोजित किया जा सकेगा, जैसा कि “मगही पान” के मामले में किया गया था।

मिथिला मखाना नामकरण के बारे में मिथिला के ऐतिहासिक संदर्भ की चर्चा करते हुए डॉ बैजू ने लिखा है कि  रामायण में मिथिला राजा जनक के राज्य के रूप में बड़े पैमाने पर पाया जाता है, जबकि “बिहार” शब्द का उद्गम बौद्ध धर्म के आगमन के बाद हुआ है। जो अधिक प्राचीन और समृद्ध पारंपरिक विरासत को दर्शाता है।
इसी तरह, हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा को अमृत वर्षा की शुभ रात माना गया है। मिथिला की लोकप्रिय संस्कृति और मैथिली साहित्य, शरद पूर्णिमा को सबसे सुंदर और दिव्य बताते हैं। मिथिला क्षेत्र में इस त्योहार को जागरण की रात यानी कोजागरा के रूप में मनाया जाता है। मिथिला में इस त्योहार पर लोगों द्वारा एक-दूसरे को मखाना का उपहार देने की परंपरा आज भी जीवंत है, जो विवेक और जागृति की पवित्रता को दर्शाता है। मिथिला में नवविवाहितों को दुल्हन के परिवार द्वारा भेजे गए उपहार के रूप में मखाना दिए जाने की प्रथा भी काफी खास है।
इस प्रकार मिथिला क्षेत्र के सांस्कृतिक जीवन में मखाना का न सिर्फ विशेष महत्व है, बल्कि ये दोनों सांस्कृतिक रूप से अविभाज्य हैं। उन्होंने कहा है कि इसमें दो राय नहीं कि जीआई टैग सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और विशिष्ट उत्पादों के लिए नए अवसर खोलता है। यह हमें “विविधता में एकता” की व्यापक नींव को मजबूत करने में भी मदद करता है। इसलिए सांस्कृतिक विरासत के तत्वों को मखाना के नाम और लोगो में अनिवार्य रूप से परिलक्षित किया जाना चाहिए, जैसा कि मगही पान के लिए किया गया था।
मिथिला के आठ करोड़ जनता की मनोभावना एवं सांस्कृतिक विरासत के रक्षार्थ विद्यापति सेवा संस्थान ने अपने पत्र के जरिए मांग किया है कि जीआई टैग की धारा 15 (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम 1999 के तहत मिथिला के मखान की जीआई टैगिंग बिहार मखाना की बजाय  “मिथिला मखाना” या “मिथिलांचल मखाना” के रूप में संशोधित करते हुए आवेदन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्यवाही की जाए।
पत्र में यह भी चेतावनी दी गई है कि यदि इस अनुरोध पर 2 अक्टूबर, 2020 तक अमल नहीं किया गया, तो  विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में मिथिला के विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, छात्र और व्यापारिक संगठन जीआई रजिस्ट्रार, चेन्नई के समक्ष प्रस्तावित ‘बिहार मखाना’ के नाम और लोगो का विरोध करने के लिए मजबूर होंगे और इसकी एकमात्र जिम्मेदारी बिहार कृषि विश्वविद्यालय की होगी।

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