क्यों निकल रही है भारतीय फुटबाल की हवा?

राजेंद्र सजवान

भारतीय फुटबाल आज कहाँ है और यदि सही दिशा में नहीं है तो क्यों नहीं है? यह सवाल आज हर फुटबाल प्रेमी और पूर्व खिलाड़ी के दिल दिमाग में कौंध रहा है। इस सवाल का जवाब खोजने के लिए घड़ी की सुइयों को उल्टा घुमाते हैं और चालीस-पचास साल पहले की दिल्ली की फुटबाल को याद करते हैं।

तब देश की राजधानी के पार्क, मैदान और खेत खलिहानों में फुटबाल कुछ ऐसे खेली जती थी जैसे आज क्रिकेट खेली जा रही है। तब विनय मार्ग स्थित केंद्रीय सचिवालय मैदान राजधानी के चैंपियन क्लब शिमला यंग्स क्लब का गृह मैदान था। देश के बड़े छोटे क्लब डूरंड और डीसी एम टूर्नामेंट में उतरने से पहले इस मैदान पर अपने तैयारी मैच खेलते थे।

सालों बाद विनय मार्ग के फुटबाल मैदान में कुछ पूर्व खिलाड़ियों से मुलाकात का अवसर मिला। फुटबाल जीवन की बहुत सी अच्छी बुरी यादें शेयर कीं लेकिन किसी भी खिलाड़ी को आज की फुटबाल का चाल चलन समझ नहीं आया। भीम सिंह भंडारी, कमल किशोर जदली, रवींद्र सिंह रावत, विरेंदर मालकोटी, राधा बल्लभ सुंदरियाल, चंदन सिंह रावत, शिव प्रसाद सभी राष्ट्रीय स्तर के जाने माने फुटबॉलर रहे हैं और उत्तरांचल हीरोज फुटबाल क्लब द्वारा आयोजित किए जाने वाले 60+टूर्नामेंट की तैयारी में जुटे हैं।

कुछ साल पहले तक इन खिलाड़ियों के खेल कौशल का डंका न सिर्फ दिल्ली में अपितु पूरे देश में बजता था। अब उम्र उनके साथ नहीं लेकिन आज के खिलाड़ियों को देख कर कहते हैं कि भारतीय फुटबाल का भविष्य सुरक्षित नहीं है। ऊपर से आईएसएल और आई लीग जैसे आयोजन फुटबाल की रही सही हवा निकाल रहे हैं।

शिमला यंग्स की रक्षा दीवार कहे जाने वाले भीम अपने नाम के अनुरूप खिलाड़ी रहे। मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, सीमा बल और अनेक प्रमुख क्लबों के विरुद्ध शानदार खेल का नजारा पेश करने वाले भीम कहते हैं कि अब ग्रास रुट स्तर की फुटबाल में दम नहीं रहा। किसी भी कोण से गोल जमाने में दक्ष राधा बल्लभ को लगता है कि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर खेल आयोजन लगभग समाप्त हो गए हैं, जिनमें भाग लेकर खिलाड़ी अपने हुनर को परवान चढ़ाते थे। कमल और वीरेंद्र का भी यही मानना है।

दोनों ही खिलाड़ी डीडीए, शिमला यंग्स और गढ़वाल हीरोज के लिए खेले और कलात्मक खेल के धनी खिलाड़ियों में शुमार किए जाते हैं। चंदन और प्रोमोद रावत मानते हैं कि आज फुटबाल पहले से बेहतर स्थिति में नहीं है पर आने वाले सालों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। शिव प्रसाद भी आशान्वित हैं। लेकिन रविन्द्र रावत गुड्डू का कहना है कि आज के खिलाड़ियों में जुनून की भारी कमी है।

जहां तक राजधानी की फुटबाल की बात है तो विवादों के चलते भी स्थानीय फुटबाल लीग का आयोजन हर साल होता था। इसके अलावा ग्रोवर फुटबाल टूर्नामेंट, राम सेवक टूर्नामेंट, देवरानी टूर्नामेंट, गढ़वाल कप, पोलियो कप, शास्त्री टूर्नामेंट, प्रेजिडेंट चैलेंज कप, नेहरू कप, अब्दुल हमीद ट्राफी, इंस्टीट्यूशनल और इंटर कॉलोनी टूर्नामेंट , परवाना कप और दर्जनों अन्य आयोजन दिल्ली की फुटबाल की नियमित गतिविधियां रहीं।

राष्ट्रीय स्तर पर लगभग हर राज्य में दो-तीन टूर्नामेंट आयोजित किए जाते रहे। गोहाटी, बोकारो, मंडी,दार्जीलिंग, जयपुर, जगदल पुर, लखनऊ, वाराणसी, पटना, चांदा मेटा, जालंधर, नाभा, फगवाड़ा, सीधी, हैदराबाद, बंगलोर, इम्फाल, देहरादून, कोटद्वार, लैंस डाउन, नैनीताल, मुम्बई और तमाम बड़े छोटे शहरों में साल भर में कई सौ टूर्नामेंट आयोजित किए जाते थे जिनमें से ज्यादातर का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।

कुल मिला कर ज्यादातर वरिष्ठ खिलाड़ी केवल दो चार बड़े आयोजनों पर टिकी भारतीय फुटबाल को घातक मानते हैं। उनका मानना है कि फुटबाल जब तक गली कूचे, शहर और प्रदेश का खेल नहीं बनाया जाता खेल में सुधार संभव नहीं हो सकता। देश के सभी पूर्व खिलाड़ी आईएसएल जैसे आयोजनों को पहले ही खारिज कर चुके हैं।उनके अनुसार ऐसे आयोजनों से सिर्फ विदेशियों को फायदा हो रहा है। बूढ़े विदेशी भारतीय फुटबाल को लूट रहे हैं और भारत का खिलाड़ी कह रहा है,”कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।” आज की फुटबाल उसे रास नहीं आ रही।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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