सही समय पर चूके निर्णय लेने से, हो गई 12 मंत्रियों की छुट्टी

सुभाष चन्द्र

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया। कैबिनेट और राज्य मंत्री को मिलाकर 43  लोगों ने पद एवं गोपीनयता की शपथ ली। इसके बीच राष्ट्रपति ने आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक और अन्य सहित मंत्रिपरिषद के 12 सदस्यों का इस्तीफा स्वीकार किया। डीवी सदानंद गौड़ा, थावरचंद गहलोत, संतोष कुमार गंगवार, बाबुल सुप्रियो, धोत्रे संजय शामराव, रतन लाल कटारिया, प्रताप चंद्र सारंगी और देबाश्री चौधरी ने भी मंत्री पद से इस्तीफा दिया है।

कोरोना काल में उनके काम को आम जनता तो सराह रही है, लेकिन पतंजलि के कोरोनिल और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच हुए विवाद में इनकी काफी फजीहत हुई। जिस प्रकार से पतंजलि के स्वामी रामदेव के साथ कोरोनिल के लॉचिंग के मौके पर बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन उपस्थित थे, उससे प्रधानमंत्री कार्यालय नाराज हो गया था।

गौर करने योग्य यह भी है कि कोरोना काल में कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। केंद्र सरकार कहती रही है कि वैक्सीन की पूरी उपलब्धता है, लेकिन मीडिया में वैक्सीन की कमी भी दिखती रही। कहा जा रहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से इसके लिए पूरी तत्परता से मीडिया में सही बात रखी नहीं गई। कहा जा रहा है कि इस बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद से डॉक्टर हर्षवर्धन के व्यक्तिगत व्यवहार में परिवर्तन आया। कोरोना काल से पहले ही ये पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जनता से मिलने में परहेज करने लगे थे। वैसे, बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में मंत्रालय में ये घंटों बैठकर काम करते रहे हैं।

केंद्रीय आईटी और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के बारे में चर्चा है कि सोशल मीडिया के धुरंधरों से पंगा लेना उनको नुकसान कर गया। ट्विटर ने जिस प्रकार से अड़ियल रूख अख्तियार किया, उससे उसकी वैश्विक हनक भी दिखती है। एक ओर ट्विटर से पंगा और दूसरी ओर नए कृषि कानून को लेकर किसानां के आदोंलन का भी असर रहा है। यही कारण है कि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पडा है।

रविशंकर प्रसाद से ऐसे समय पर इस्तीफा लिया गया है, जब उनके मंत्रालय ने नए आईटी नियमों को लागू किया था, जिसको लेकर ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों से सरकार का टकराव चल रहा था। वहीं, केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक जब बोर्ड परीक्षा को रद्द करने वाले दिन भी सार्वजनिक रूप से नहीं दिखे, तो उस समय से ही तय माना जा रहा था कि इनकी छुट्टी की जाएगी।

कोरोना काल में शिक्षा को लेकर पूरा देश संशय में रहा, लेकिन बतौर केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉक्टर निशंक जनता के सवालों का सही से सामना नहीं कर पाए। नई शिक्षा नीति पीएम मोदी के दिल के काफी करीब है, लेकिन शिक्षा मंत्रालय उसका श्रेय सरकार को नहीं दिला पाया, जिसका नतीजा उन्हें कुर्सी गंवाकर चुकाना पड़ा। राष्ट्रपति सचिवालय की विज्ञप्ति के अनुसार, ”प्रधानमंत्री के सुझाव पर भारत के राष्ट्रपति ने मंत्रिपरिषद के 12 सदस्यों का इस्तीफा तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया है।”

जिन मंत्रियों का इस्तीफा स्वीकार किया गया है, उनमें सदानंद गौड़ा, रविशंकर प्रसाद, थावरचंद गहलोत, रमेश पोखरियाल निशंक, डॉ. हर्षवर्द्धन, प्रकाश जावड़ेकर, संतोष कुमार गंगवार शामिल है। रविशंकर प्रसार के पास कानून मंत्रालय के साथ साथ सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय था जबकि जावड़ेकर पर्यावरण मंत्रालय के साथ साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का दायित्व संभाल रहे थे।प्रकाश जावडेकर को भाजपा संगठन में अहम जिम्मेदारी देने की चर्चा है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में उनके कामकाज से न तो प्रधानमंत्री कार्यालय और न ही भाजपा संगठन के रणनीतिकार संतुष्ट थे। चाहे किसान आंदोलन हो या कोरोना का दौर। जब ऑक्सीजन और अन्य दवाओं की किल्लत की बात सामने आई, तो मीडिया में केवल नकारात्मक खबरों का जोर रहा है। सरकार की ओर से जो त्वरित प्रयास किए जा रहे थे, उसकी चर्चा न के बराबर थी।

स्वतंत्र प्रभार लिए श्रम मंत्री संतोष गंगवार को उनकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य कारणों से मंत्रिमंडल से विश्राम दिया गया है। पार्टी उनका अनुभव संगठन के कामों में लेगी। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को एक दिन पहले ही राज्यपाल के रूप में नियुक्ति कर दी गई।रासायनिक एवं उर्वरक मंत्री थे। सूत्रों के मुताबिक, सदानंद गौड़ा पर कोरोना काल में हुई दवाओं की कमी को लेकर गाज गिरी है, जिसके चलते मोदी सरकार की काफी फजीहत हुई थी।  पश्चिम बंगाल की रायगंज लोकसभा सीट से भाजपा सांसद देबोश्री चौधरी ने भी अपना पद छोड़ दिया है। वह महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री थीं। सूत्रों का दावा है कि पश्चिम बंगाल भाजपा में उन्हें अहम पद दिया जा सकता है, जिसके चलते उनसे इस्तीफा लिया गया।

पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से सांसद बाबुल सुप्रियो ने भी इस्तीफा दे दिया। वह पर्यावरण मंत्रालय में राज्य मंत्री थे।  सुप्रियो पार्टी से नाराज चल रहे थे। इसके पीछे पश्चिम बंगाल विधानसभा को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिसमें बाबुल सुप्रियो मैदान में उतरे थे, लेकिन 50 हजार वोटों से हार गए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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