उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा: संवैधानिक व्यवस्था ने फिर साबित की अपनी मजबूती
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित लेकिन तत्काल प्रभाव से दिए गए इस्तीफे ने एक बार फिर देश के संविधानिक तंत्र की मजबूती और लोकतांत्रिक निरंतरता को रेखांकित किया है।
धनखड़ का इस्तीफा राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 67(ए) के तहत स्वीकार कर लिया गया है, जो उपराष्ट्रपति को स्वैच्छिक रूप से पद छोड़ने की अनुमति देता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं, और उनके पद छोड़ने से उच्च सदन के नेतृत्व को लेकर कुछ सवाल जरूर उठे हैं।
हालाँकि, कानूनी विशेषज्ञों और संसदीय सूत्रों का कहना है कि यह इस्तीफा कोई संवैधानिक संकट उत्पन्न नहीं करता। राज्यसभा में उपसभापति की उपस्थिति और सक्रिय भूमिका यह सुनिश्चित करती है कि संसद के कामकाज में कोई बाधा न आए। यह वही लचीलापन है जो भारत के संविधान की दूरदर्शिता और व्यावहारिकता को दर्शाता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जहाँ लोकसभा में उपसभापति का पद लंबे समय से रिक्त है, वहीं राज्यसभा ने अपने नेतृत्व ढांचे को प्रभावी रूप से बनाए रखा है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि उच्च सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से जारी रहे।
संविधान के तहत, नए उपराष्ट्रपति का चुनाव छह महीनों के भीतर कराया जाना आवश्यक है। तब तक राज्यसभा के उपसभापति ही सदन की कार्यवाही का नेतृत्व करेंगे और प्रक्रियात्मक अनुशासन को बनाए रखेंगे।
यद्यपि उपराष्ट्रपति की भूमिका कार्यकारी नहीं होती, फिर भी संसद के ऊपरी सदन के सुचारु संचालन में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए उनका इस्तीफा केवल व्यक्तिगत या राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र की गाड़ी बिना रुकावट आगे बढ़ती रहे।
राजनीतिक गलियारों में अब नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है, लेकिन तब तक, भारतीय लोकतंत्र की संस्थागत व्यवस्था यह दिखा रही है कि वह किसी भी अस्थायी अस्थिरता से निपटने में पूरी तरह सक्षम है।