ऑपरेशन सिंदूर के बाद राफेल खरीद को लेकर वायुसेना ने तेज की मांग, फ्रांस से सीधे सौदे की तैयारी
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना एक बार फिर फ्रांस से अतिरिक्त राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए सरकार से सरकार के बीच (G2G) सीधी डील की मांग कर रही है। यह प्रस्ताव 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) कार्यक्रम के तहत रखा गया है, जो लंबे समय से अटका हुआ है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रस्ताव अगले दो महीनों में रक्षा खरीद परिषद (DAC) के समक्ष “आवश्यकता की स्वीकृति” (Acceptance of Necessity – AoN) के लिए पेश किया जा सकता है।
इस पहल को मई में हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद नया बल मिला है, जिसमें राफेल विमानों ने सीमा पार लंबी दूरी के हमलों में अहम भूमिका निभाई थी। इस दौरान पाकिस्तान ने चीनी मूल के जे-10 लड़ाकू विमानों को PL-15 मिसाइलों से लैस कर तैनात किया था, लेकिन भारत ने इस्लामाबाद के उन दावों को खारिज कर दिया जिनमें छह भारतीय वायुसेना के विमानों को मार गिराने की बात कही गई थी, जिनमें तीन राफेल भी शामिल थे।
वर्तमान में वायुसेना की स्क्वाड्रन संख्या घटकर 31 पर आ गई है और अगले महीने अंतिम मिग-21 विमानों के रिटायर होने के बाद यह ऐतिहासिक रूप से गिरकर 29 पर पहुंच सकती है। चीन और पाकिस्तान दोनों से मिल रहे संयुक्त खतरे के मुकाबले के लिए आवश्यक 42.5 स्क्वाड्रनों के मुकाबले यह संख्या काफी कम है। चीन द्वारा पाकिस्तान को कम से कम 40 जे-35ए पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर विमान देने की तैयारी ने भी स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा दिया है।
वायुसेना के अधिकारियों का मानना है कि राफेल बेड़े का विस्तार एक नया वैश्विक टेंडर लाने की तुलना में तेज और अधिक किफायती विकल्प होगा। भारत पहले से ही 36 राफेल विमानों का संचालन कर रहा है, जो अंबाला और हासीमारा में तैनात हैं, और इन दोनों अड्डों पर एक-एक स्क्वाड्रन के लिए अतिरिक्त जगह भी उपलब्ध है। इसी प्लेटफॉर्म का नौसेना संस्करण राफेल-एम भी 2028 से विमानवाहक पोत INS विक्रांत में शामिल होने जा रहा है, जिसके लिए अप्रैल में 63,887 करोड़ रुपये की डील साइन की गई थी।
हालांकि भारतीय वायुसेना दो से तीन स्क्वाड्रन पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जैसे रूस के सुखोई-57 या अमेरिका के एफ-35 की भी संभावनाएं देख रही है, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई आधिकारिक वार्ता शुरू नहीं हुई है। हाल ही में हुई एक उच्चस्तरीय समीक्षा में भी वायुसेना की क्षमताओं को तेजी से बढ़ाने, निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने और खरीद प्रक्रिया को तेज करने की सिफारिश की गई है।