कभी असहज नहीं होते थे अहमद पटेल

सुभाष चन्द्र

कोरोना काल में एक और राजनेता गुजर गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद अहमद पटेल 25 नवंबर, 2020 की अहले सुबह विदा हो गए। कुछ दिनों से वे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। कोविड 19 के शिकार हुए। आज जब वे नहीं हैं, तो उनके साथ मुलाकात की कई यादें मानस पटल पर चल रही है। साल 2004 में जब पत्रकारीय जीवन के शुरुआती साल में था, तब पहली बार उनसे मिला था। कांग्रेस महासचिव आरके धवन के कक्ष में। उसके बाद कई और मुलाकातें हुईं। कुछेक बार संवाददाता सम्मेलन में तो कई बार 24 अकबर रोड के प्रांगण में। हर बार वे सहज और हंसमुख ही मिले। किसी प्रकार की राजनीतिक सवालों के जवाब में वे उग्र नहीं होते थे। हर बार संयमित ही दिखें।
आज जब वे नहीं हैं, तो इसे कांग्रेस के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद क्षति मानी जाएगी। बीते कुछ दशकों से वे कांग्रेस के लिए मानो पर्याय बन चुके थे। खासकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए। सोनिया गांधी के तमाम निर्णयों में इनकी ही सहमति मानी जाती थी। कांग्रेस मुख्यालय जो लोग बराबर जाते हैं, उनको यह पता है कि कांग्रेस में अहमद पटेल और मोतीलाल बोरा की युगलबंदी कितना ताकतवर रही। अब यह जोडी बिछड गई है। मेरी व्यक्तिगत राय है कि अहमद पटेल का जाना केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है, कांग्रेस के लिए यह एक युग की समाप्ति होगी। यदि इससे किसी को बहुत अधिक क्षति हुई है, तो वह है गांधी परिवार।
जिस प्रकार से कांग्रेस की  अध्यक्ष सोनिया गांधी ने टिवट किया है, उससे अहमद पटेल के कद का सहज ही अंदाजा हो जाता है। सोनिया गांधी ने लिखा, ‘अहमद पटेल के रूप में मैंने एक सहयोगी को खो दिया है, जिसका पूरा जीवन कांग्रेस पार्टी को समर्पित था। उनकी ईमानदारी और समर्पण, अपने कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, वह हमेशा मदद करने के लिए तैयार रहते थे। उनकी उदारता दुर्लभ गुण थे, जो उन्हें दूसरों से अलग करते थे।’उन्होंने आगे लिखा, ‘मैंने एक अपरिवर्तनीय कॉमरेड, एक वफादार सहयोगी और एक दोस्त खो दिया है। मैं उनके निधन पर शोक व्यक्त करती हूं और मैं उनके शोक संतप्त परिवार के लिए संवेदनाएं व्यक्त करती हूं।’ बता दें कि अहमद पटेल ने वर्षों तक सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर काम किया और माना जाता है कि वह उनके द्वारा लिए गए हर महत्वपूर्ण निर्णय का हिस्सा थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन पर शोक व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि वह अहमद पटेल के निधन से दुखी है। पीएम ने लिखा कि उन्होंने समाज की सेवा करते हुए सालों गुजारे। पीएम मोदी ने आगे कहा है कि तेज दिमाग वाले अहमद पटेल को कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। मैंने उनके बेटे फैजल से बात की है और अपनी संवेदना प्रकट की है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि अहमद भाई की आत्मा को शांति मिले।
अहमद पटेल के निधन पर राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘ये एक दुखद दिन है। श्री अहमद पटेल कांग्रेस पार्टी के एक स्तंभ थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को जिया और सबसे कठिन समय में पार्टी के साथ खड़े रहे। वो अतिमहत्वपूर्ण थे। हम उन्हें याद करेंगे। फैसल, मुमताज और परिवार को मेरा प्यार और संवेदनाएं।’
21 अगस्त 1949 को गुजरात के भरुच में  जन्मे अहमद पटेल आठ बार सांसद रहे हैं। अहमद पटेल ने तीन बार लोकसभा सांसद के तौर पर भरुच का प्रतिनिधित्व किया और पांच बार राज्यसभा सांसद के तौर पर। गांधी परिवार के सबसे वफादार माने जाने वाले अहमद पटेल कांग्रेस में काफी ताकतवर नेता थे। ऐसा कहा जाता है कि जब पार्टी सत्ता में थी, तब उन्हें कई बार मंत्री बनने का प्रस्ताव मिला, मगर उन्होंने बार-बार ठुकरा दिया। कांग्रेस पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले अहमद पटेल सोनिया गांधी के विश्वासपात्र थे और उनके संकटमोचक भी।
देश के राजनीतिक इतिहास में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने जितने भी शानदार प्रदर्शन किए, चुनाव जीते, उनमें अहमद पटेल का खासा योगदान माना जाता था। एक तरह से वह कांग्रेस पार्टी के वह सेनापति थे जो मुश्किलों का सामना करने के लिए आगे की पंक्ति में खड़ा रहते थे। साल 2004 का लोकसभा चुनाव हो या 2009 का, उन दोनों चुनावों में अहमद पटेल के योगदान को कांग्रेस के साथ-साथ इस देश ने देखा है। इसके अलावा भी किसी विधानसभा चुनाव में अभी अगर पार्टी विषम परिस्थिति में होती थी, तो अहमद पटेल ही एक ऐसे नेता थे, जिन पर सोनिया गांधी को पूरा भरोसा होता था कि वे इस संकट से पार्टी को उबार देंगे। उन्होंने अपनी रणनीतिक कौशल से कई बार अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस की सरकार बनवाई, मगर कभी मंत्री नहीं बने।
अहमद पटेल साल 2001 से 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे थे। 2018 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष बनने के बाद अहमद पटेल को कोषाध्यक्ष बनाया था। वैसे 1996 से लेकर 2000 तक पटेल इसी पद पर थे। हालांकि, राहुल गांधी के नेतृत्व के दौरान भी अहमद पटेल आलाकमान और नेताओं के बीच में एक अहम कड़ी बने रहे। 10 साल के यूपीए सरकार में भले ही वह लो प्रोफाइल में रहे, मगर उन्होंने इस दौरान अहम भूमिका निभाई। साल 1985 में राजीव गांधी ने अहमद पटेल को ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह के साथ अपना संसदीय सचिव बनाया था। उस समय इन तीनों को ‘अमर-अकबर-एंथनी’ गैंग कहा जाता था। पहली बार अहमद पटेल तभी चर्चा में आए थे।
अहमद पटेल के दोस्त, विरोधी और सहकर्मी उन्हें अहमद भाई कह कर पुकारते रहे, लेकिन वे हमेशा सत्ता और प्रचार से खुद को दूर रखना ही पसंद करते थे। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और संभवतः प्रणब मुखर्जी के बाद यूपीए के 2004 से 2014 के शासनकाल में अहमद पटेल सबसे ताकतवर नेता थे। इसके बावजूद वे उस दौर में केंद्र सरकार में मंत्री के तौर पर शामिल नहीं हुए। 2014 के बाद से, जब कांग्रेस ताश के महल की तरह दिखने लगी है तब भी अहमद पटेल मज़बूती से खड़े रहे और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और धुर विरोधी शिवसेना को भी साथ लाने में कामयाब रहे। इसके बाद जब सचिन पायलट ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बग़ावत की तब भी अहमद सक्रिय हुए। सारे राजनीतिक विश्लेषक ये कह रहे थे कि पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह बीजेपी में चले जाएंगे तब अहमद पटेल पर्दे के पीछे काम कर रहे थे, उन्होंने मध्यस्थों के जरिए यह सुनिश्चित किया कि सचिन पायलट पार्टी में बने रहे।
अहमद पटेल से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं। और ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी, अगर कहा जाए कि 2014 के बाद गांधी परिवार की तुलना में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच सद्भाव क़ायम रखने में अहमद पटेल का प्रभाव ज़्यादा दिखा। लेकिन हर आदमी की अपनी खामियां या कहें सीमाएं होती हैं। अहमद पटेल हमेशा सतर्क रहे और किसी भी मुद्दे पर निर्णायक रुख लेने से बचते रहे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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