गरीबी की आग में तपकर दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा का परचम लहराने वाले अविनाश साबले

ईश्वर नाथ झा
नई दिल्ली: “ग़ुर्बत की तेज आग पे अक्सर पकाई भूक, खुश-हालियों के शहर में क्या कुछ नहीं किया”, शायर इक़बाल साजिद की यह पंक्तियां एशियन गेम्स में इतिहास रचने वाले अविनाश साबले पर पूरी तरह से फिट बैठती है।
कहते हैं गरीबी में बहुत ताकत होती है। गरीबी सीख देती है दुनिया से लड़ने की, अपने आप को विपरीत परिस्थितियों में साबित करने की। अविनाश साबले ने आज वही किया। अपने आप को विपरीत परिस्थितियों में साबित करना अविनाश साबले के बाएं हाथ का कमाल है। बचपन से वह इसमें निपुण हैं। चाहे स्कूल जाने के लिए तकरीबन 6 किलोमीटर की दौड़ लगानी हो या फिर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करके अपने जुनून को जिंदा रखना हो, साबले ने कभी हार नहीं मानी, हमेशा विपरीत परिस्थितियों को दौड़ में बुरी तरह हराया है।
एशियन गेम्स में पुरुषों की 3000 मीटर स्टीपलचेज में स्वर्ण पदक जीतने के पीछे जो मेहनत और संघर्ष छुपा हुआ है वो आज की सफलता के लिए था। साबले ने अपनी दौड़ 8:19:50 सेकेंड के समय के साथ पूरा कर शीर्ष स्थान हासिल किया। उन्होंने मौजूदा एशियन गेम्स में ट्रैक और फील्ड स्पर्धा में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता।
आज साबले पूर्ण चैंपियन की तरह दौड़े और जब फिनिश लाइन पर पहुंचे तो उनके आस-पास कोई दूसरा एथलीट नहीं था। शायद वह अपने से आगे किसी एथलीट को देखना भी नहीं चाहते।
कौन हैं अविनाश साबले
साबले का जन्म 13 सितंबर 1994 को महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में हुआ था। एक बेहद साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले, साबले को अपने जीवन की शुरुआत में कठिनाइयों से जूझना पड़ा और खेल के प्रति असीम प्यार के बावजूद एक समय उन्होंने दौड़ना लगभग छोड़ दिया था।
उनके पिता मुकुंद और उनकी मां वैशाली, दोनों किसान थे। उनके पास गांव में जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था और वे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से खेती पर निर्भर थे।
साबले के माता-पिता को पूरे परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए आस-पास के इलाकों में दैनिक मजदूरी के रूप में छोटी-मोटी नौकरियां करनी पड़ती थीं। जबकि उनके कुछ दोस्तों के पास साइकिल की सुविधा थी, लेकिन साबले रोजाना स्कूल पहुंचने के लिए 6 किमी दौड़ते थे और फिर घर वापस जाते थे। संघर्ष के शुरुआती दिनों ने 29 वर्षीय खिलाड़ी पर अमिट छाप छोड़ी। आज वही संघर्ष उन्हें इतिहास बनाते देख रहा होगा।
साबले की प्रतिभा को उनकी किशोरावस्था के दौरान ही उनके स्कूल के प्रशिक्षकों और फिर कॉलेज में उनके शारीरिक शिक्षा शिक्षकों ने पहचान लिया था। हालांकि, घर की गंभीर आर्थिक स्थिति के कारण साबले को दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा, और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ वह हर दिन छह घंटे काम करके 100 रुपये कमाते थे। अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद, साबले ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के एकमात्र उद्देश्य से भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला किया।
उन्हें 5 महार रेजिमेंट में भर्ती किया गया था और सेना में अपने दिनों के पहले कुछ वर्षों में उन्होंने कुछ सबसे कठिन इलाकों को देखा। उन्हें सियाचिन और राजस्थान, दो जलवायु चरम स्थितियों में तैनात किया गया था। सेना में शामिल होना साबले के लिए वरदान साबित हुआ। एथलेटिक्स साबले के जीवन में लौट आया और इस बार साबले को सर्विसेज टीम के साथ खुद को साबित करने का मौका मिला।
शुरुआत में क्रॉस कंट्री में शामिल होने वाले साबले ने 2015 में दौड़ को करियर के रूप में चुना और खेल को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। 2017 में ही सेना के कोच अमरीश कुमार द्वारा इसे आज़माने के लिए आमंत्रित किए जाने के बाद उन्होंने पहली बार स्टीपलचेज़ में प्रशिक्षण लिया।
एक बार साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में भाग लेने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह लगातार प्रसिद्धि की ओर बढ़ते गए और भारतीय एथलेटिक्स में एक घरेलू नाम बन गए। वह 2017 में दशकों पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ने के करीब पहुंचे लेकिन ऐसा करने में असफल रहे और बाद में एक दुर्भाग्यपूर्ण चोट के कारण उन्हें 2018 में एशियाई खेलों से चूकना पड़ा।
इसके बाद साबले ने कठिन परिश्रम और गहन ट्रेनिंग के बदौलत अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा। जकार्ता एशियन गेम्स में भाग नहीं ले पाने का मलाल उन्होंने हमेशा रहेगा लेकिन 2018 ओपन नेशनल में 30 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को उन्होंने तोड़ दिया। 2019 एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने पहले प्रदर्शन में, उन्होंने रजत पदक जीत। इसके बाद 2022 में बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता। साबले से भारत को बहुत उम्मीद है।
सच ही कहा है, आग में तपकर ही सोना में निखार आता है, साबले भी गरीबी की आग में तपकर दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा का परचम लहराने आएं है। ये सिर्फ शुरुआत है।