बीजेपी प्रत्याशी और गायिका मैथिली ठाकुर के बयान से मचा बवाल, सोशल मीडिया पर ‘गोपनीय ब्लूप्रिंट’ बना मीम का नया ट्रेंड

BJP candidate and singer Maithili Thakur's statement sparked controversy, with the "secret blueprint" becoming a new meme trend on social media.चिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले ही सोशल मीडिया पर एक नया राजनीतिक बवंडर मच गया है। इस बार चर्चा का केंद्र हैं लोकगायिका से बनीं बीजेपी प्रत्याशी मैथिली ठाकुर, जिन्होंने अपने हालिया इंटरव्यू में दिए एक बयान से सबको चौंका दिया है।

दरअसल, एक मीडिया इंटरैक्शन के दौरान एक पत्रकार ने उनसे पूछा, “आप अपने क्षेत्र के विकास के लिए क्या ब्लूप्रिंट लेकर आई हैं?”

मैथिली ठाकुर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मैं इसे सबके साथ कैसे साझा कर सकती हूँ? यह पूरी तरह व्यक्तिगत और गोपनीय है।”

इतना कहने के बाद वह बोलीं, “मन नहीं है,” और इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर चली गईं। उनका यह जवाब सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया। कुछ ही घंटों में वीडियो वायरल हो गया और ट्विटर (अब एक्स) से लेकर इंस्टाग्राम तक मीम्स की बाढ़ आ गई।

 

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 सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बौछार

एक यूजर ने लिखा, “जब उम्मीदवार विकास योजना को गोपनीय कहे, समझ लीजिए योजना है ही नहीं।” दूसरे ने तंज कसा, “ब्लूप्रिंट नहीं, सीक्रेट एजेंट है ये!” हालांकि, कुछ लोगों ने मैथिली का बचाव करते हुए कहा कि यह उनका “नया कम्युनिकेशन स्टाइल” हो सकता है, जो राजनीति में ताजगी लाता है।

संगीत से सियासत तक का सफर

25 जुलाई 2000 को बिहार के मधुबनी में जन्मीं मैथिली ठाकुर का ताल्लुक एक संगीत परिवार से है। उनके पिता और दादा दोनों संगीतकार रहे हैं। मैथिली ने 2017 में टीवी रियलिटी शो ‘राइजिंग स्टार’ में उपविजेता बनकर पहचान बनाई। अपने भाइयों के साथ उन्होंने सैकड़ों लोकगीत और भजन गाए हैं, जिनके करोड़ों ऑनलाइन दर्शक हैं।

उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने बीजेपी का ध्यान खींचा और पार्टी ने उन्हें अलिनगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। पार्टी उन्हें “परंपरा और आधुनिकता का संगम” बताकर प्रचारित कर रही है।

प्रसिद्धि बनाम राजनीतिक समझ

युवा मतदाताओं में मैथिली ठाकुर आज चर्चा का केंद्र हैं, कुछ उन्हें बिहार की सांस्कृतिक पहचान मानते हैं, तो कुछ उन्हें “अनुभवहीन सेलिब्रिटी” कहकर आलोचना कर रहे हैं।

उनके “गोपनीय ब्लूप्रिंट” बयान ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या राजनीतिक दल लोकप्रिय चेहरों को असली जमीनी नेताओं से ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।

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