आपराधिक राजनीति के कारण बेबस भारत का आम नागरिक

Big order of Supreme Court: West Bengal government directed to pay 25 percent dearness allowance in 3 monthsरीना सिंह, अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट 

देश की सियासत में राजनेताओं और अपराध का ‘चोली-दामन’ का साथ रहा है. देश में ऐसी कोई भी राजनीतिक पार्टियां नहीं, जो पूरी तरह से अपराध मुक्त छवि की हो. यानी उनके किसी भी एक नेता पर अपराध के मामले दर्ज नहीं हों. सर्वोच्च अदालत ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के जरिए दोषी सांसदों व विधायकों की सदस्यता समाप्त करने और जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगायी तो राजनीतिक दलों ने किसी तरह इसे नाकाम कर दिया। गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 25 सितंबर, 2018 को दिए अपने आदेश में राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर चिंता जाहिर करते हुए संसद से राजनीति में अपराधियों का प्रवेश रोकने के लिए कड़ा कानून बनाने को कहा था।

युवा पीढ़ी के राजनीति से विमुख होने का एक बड़ा कारण राजनीति का अपराधीकरण है, जबकि हकीकत यह है कि उसका पूरा भविष्य राजनीति ही तय करेगी। बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन सम्बन्धी सभी निर्णय राजनीति से प्रेरित ही होते हैं जिनमें शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य व रोजगार तक सभी आते हैं। हैरत की बात यह होती जा रही है कि युवा पीढ़ी का भविष्य तय करने के लिए जरूरी कानून बनाने का काम आज की राजनीति उन लोगों पर छोड़ रही है जिन पर स्वयं कानून तोड़ने के आरोप लगे होते हैं।

‘अपराधियों का चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना’ – हमारी निर्वाचन व्यवस्था का एक नाज़ुक अंग बन गया है। पिछले लोकसभा चुनावों के आँकड़ों पर गौर किया जाए तो स्थिति यह है कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले सांसदों की संख्या में वृद्धि ही हुई है. 2014 में 185 और वर्ष 2019 में बढ़कर 233 हो गई। चुनाव राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाली फंडिंग पर निर्भर करती है और चूँकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के पास अक्सर धन और संपदा काफी अधिक मात्रा में होता है, इसलिये वे दल के चुनावी अभियान में अधिक-से-अधिक पैसा खर्च करते हैं और उनके राजनीति में प्रवेश करने तथा जीतने की संभावना बढ़ जाती है।

भारत की चुनावी राजनीति अधिकांशतः जाति और धर्म जैसे कारकों पर निर्भर करती है, इसलिये उम्मीदवार आपराधिक आरोपों की स्थिति में भी चुनाव जीत जाते हैं। राजनीति और कानून निर्माण प्रक्रिया में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की उपस्थिति का लोकतंत्र की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। राजनीति में प्रवेश करने वाले अपराधी सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और नौकरशाही, कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका सहित अन्य संस्थानों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। राजनीति का अपराधीकरण समाज में हिंसा की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और भावी जनप्रतिनिधियों के लिये एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है। उम्मीद केवल इस देश के युवाओं से है जो हिम्मत कर स्वच्छ छवि के लोगों को वोट देकर अपराधियों को सबक सिखा सकते हैं। अन्यथा इस देश में देर या सबेर हर तरह के अपराधियों का बोलबाला हो जाएगा और अब तो यह अच्छी तरह साबित हो गया है कि इन अपराधियों की साठगांठ अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों से भी है। समय आ गया है जब इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाए।

A separate tribunal should be formed to resolve religious issues

(रीना सिंह, सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं, लेख में व्यक्त किये गए विचार से चिरौरी न्यूज़ का सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *