कांग्रेस: पहले 3 अब 23

सुभाष चन्द्र
जब जिम्मेदारी के बगैर इंसान कोई काम करना चाहता है, तो उसका परिणाम सुखद नहीं होता है। यह वैयक्तिक स्तर के साथ ही सामाजिक और राजनीतिक जीवन में भी लागू होता है। वरना आपकी स्थिति उसी कांग्रेस की तरह हो सकती है, जो आज सोनिया गांधी और राहुल गांधी के कारण जनता के बीच से दूर होती जा रही है। याद कीजिए साल 1999 को, जब पार्टी के तीन वरिष्ठ नेताओं यानी शरद पवान, पीएम संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशीमूल के मसले पर स्वयं को पार्टी से अलग कर लिया था।
आज हम साल 2020 में हैं। अब पार्टी के 23 कद्दावर नेताओं ने यह कहने की हिम्मत जुटाई कि कांग्रेस अध्यक्ष को कार्यकर्ताओं और जनता के लिए सुलभ होना चाहिए। इस बात को सोनिया-राहुल के करीबी कुछ नेता पचा नहीं पाए और 23 नेताओं पर यह आरोप लगा दिया गया कि वे भाजपा से सांठगांठ होने के कारण ऐसी बात कर रहे हैं। जरा इन 23 नेताओं के नाम पर एक नजर दौडा लीजिए। इनमें कई नाम ऐसे हैं, जो पार्टी के लिए संकटमोचक का काम करते थे। यानी कांग्रेस जब भी संकट में फंसती रही है तो इन नेताओं ने कोर्ट से लेकर राजनीतिक गलियारों में अपने योग्यता का परिचय दिया है। इन नेताओं में शामिल हैं – गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, एम वीरप्पा, मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, पीजे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चैधरी, मिलिंद देवड़ा, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, कुलदीप शर्मा, योगानंद शास्त्री और संदीप दीक्षित।
अब, कांग्रेस कार्यसमिति  की बैठक में राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं पर भाजपा से सांठगांठ का  कथित आरोप लगाने वाली बात को कांग्रेस की ओर से खारिज किया गया है। इसे पहले खबर आई थी कि राहुल गांधी ने कहा कि इन नेताओं ने ऐसे समय में चिट्ठी भेजी है जब पार्टी संकट में है और उनकी मां यानी सोनिया गांधी बीमार हैं।  राहुल गांधी ने कहा कि इस चिट्ठी को भाजपा की मिलीभगत से लिखा गया है और मोदी ने पढ़ा है।
बता दें कि राहुल से पहले यह आरोप पूर्व मंत्री केके तिवारी भी लगा चुके हैं।  उन्होंने कहा था कि यह भाजपा की साजिश है इसमें उसके कांग्रेस मुक्त भारत का एजेंडा है। राहुल गांधी के इस बयान के बाद चिट्ठी लिखने वालों में शामिल गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने नाराजगी जताई। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है।  इसके बाद कपिल सिब्बल ने भी अपने ट्वीटर पर ही बयान ही दिया है कि उनको राहुल गांधी ने फोन किया और कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं है। कपिल सिब्बल ने कहा है कि वह अपने ट्वीट को वापस लेते हैं।
मामला को जिस तरह से रफा दफा करने की बात कही जा रही है, वह उतना आसान दिखता नहीं है। राजनीति में यदि एक बार गांठ पड जाए, तो जल्दी सुलझता नहीं है। हाल ही में राहुल गांधी के करीबी दोस्तों में शुमार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी ही छोड दी। उसके बाद सचिन पायलट भी नाटकीय ढंग से बगावत किए। कुछेक नेताओं के नाम और इसी सूची में आने की बात सियासी गलियारों में की जा रही है। तो क्या ऐसे में यह मान लिया जाए कि जिस प्रकार से कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला आॅल इज वेल की ओर इशारा कर रहे हैं, वाकई स्थिति वही है !
हाल के समय की राजनीति को देखें, तो यह कहने में जीभ नहीं सकुचाता कि हमारे देश में अपने विरोधी को गद्दार बताने की परंपरा है। सामने वाला कह क्या रहा है, इसकी परवाह किए बिना उसे वफादारी साबित करने को मजबूर किया जाता है। कांग्रेस में आज यही होता दिखा भी। राहुल गांधी के नाम से यह बात चल गया कि जिन्होंने नेतृत्व परिवर्तन वाली चिट्ठी पर दस्तखत किए हैं, वे भाजपा से मिले हुए हैं। इस बयान की पुष्टि हो पाती, इससे पहले ही लोग उंगलियों पर गिनकर देखने लगे कि इस टिप्पणी की चपेट में कौन-कौन आ रहा है।
कांग्रेस में स्थिति आॅल इज वेल वाली हो न हो, लेकिन वहां 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से रूठने-मनाने का सिलसिला चल रहा है। यह मानने में आपको किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होनी चाहिए। मनाने वाले तंग हैं कि मालिक जब तक मानेंगे नहीं, तब तक लौटेंगे नहीं और जब तक लौटेंगे नहीं, तब तक भंवर नहीं पड़ेंगे। कांग्रेस में जो हो रहा है, उस पर आप सच बोल भी नहीं सकते। यदि आप कांगे्रस के नेता अथवा कार्यकर्ता हैं तो। क्योंकि, राहुल गांधी को बिना जिम्मेदारी के सत्ता चाहिए। वे खुद ड्ाइव करने में यकीन नहीं करते। उनकी पूरी राजनीतिक यात्रा को देखकर तो कम से कम यही माना जा सकता है।
याद कीजिए, जब यूपीए सरकार थी। कई बार राहुल गांधी के सरकार में आने की बात हुई और हवा-हवाई हो गई। अब भी कई बार कांग्रेस नेता इस बात की दुहाई देते हैं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने के लिए कई बार स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅक्टर मनमोहन सिंह ने कहा था। अब सवाल उठता है कि इन पुरानी बातों को अब क्यों कहा जा रहा है ? क्या राहुल गांधी को भी त्यागी की मूर्ति के रूप में कुछ कांग्रेसी चाटुकार स्थापित करना चाहते हैं?
वर्तमान में देखिए। साल भर पहले ही राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ चुके हैं। हालंाकि यह बात भी सार्वजनिक रूप से कहीं नहीं गई कि कांग्रेस कार्यसमिति ने उनका इस्तीफा स्वीकार किया कि नहीं। अब सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष हुईं, लेकिन इतने वक्त में न कार्यकारी की जगह स्थायी लगा और न ही किसी तीसरे नाम की चर्चा रही। हाल ही में जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई थी तो कुछेक कांग्रेसी नेताओं को उम्मीद जगी थी कि करीब ढाई दशक बाद गांधी परिवार से बाहर किसी नेता को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा। ऐसा व्यक्ति जो जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सुलभ होगा। लेकिन, मन की बात तो मन में ही रह गई।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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