पुण्यतिथि विशेष: जसदेव सिंह एक महान कमेंटेटर, नेक इंसान और यारों के यार
राजेन्द्र सजवान
पिछले तीन महीनों में शायद ही कोई दिन ऐसा बीता होगा जब मैंने देश के सर्वकालीन श्रेष्ठ कमेंटेटर जसदेव सिंह जी का स्मरण ना किया हो। हालांकि दो साल पहले आज 25 सितंबर को उनका स्वर्गवास हो गया था, लेकिन मुझे हमेशा यह टीस रही कि किसी कारणवश, उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो पाया था।
लेकिन मेरे पछतावे का बड़ा कारण कुछ और था। लॉकडाउन के चलते एक दिन ख्याल आया कि जसदेव जी के सुपुत्र भी गुरुदेव से हाल चाल पूछ लिया जाए। लेकिन फोन उठाया जसदेव जी की धर्म पत्नी कृष्णा जी ने और छूटते ही बोलीं। ‘आपका फोन बहुत दिनों बाद आया।’ वह रुकी नहीं और बोलती चली गईं। जैसे बहुत दिनों से मेरे फोन की अपेक्षा कर रही थीं।
थोड़ा रुक कर बोलीं,’वाकई दुनिया बदल गई है। उनके जाने के बाद किसी ने याद नहीं किया। जो आदमी पूरे देश के दिल दिमाग पर छाया हुआ था, जाने के बाद जैसे खामोशी छोड़ गया। कभी हमारे घर में खिलाड़ियों और पत्रकारों के मेले लगे रहते थे। कुछ हॉकी खिलाड़ी तो जैसे हमारे रोज के मेहमान थे लेकिन वो गए तो सब कुछ चला गया।”
“आप तो उनके सबसे प्रिय में रहे। जब आप ने ही नहीं पूछा तो औरों की क्या बताऊँ,” कृष्णा जी के इन शब्दों में जितना अपनापन था उतना ही मैं खुद को कोस भी रहा था। सच कहूं तो मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा रहा था। तब से आज तक मैं यही सोच रहा था कि जसदेव जी को उनकी पुण्यतिथि पर ज़रूर याद करूंगा और अपने आदर्श, पिता और बड़े भाई तुल्य शख्सियत से माफी भी मागूँगा।
इसमें दो राय नहीं कि जसदेव जी हर खेल की गहरी समझ रखते थे। हॉकी, क्रिकेट, 15 अगस्त, 26 जनवरी और तमाम महत्वपूर्ण दिवसों पर उनकी आवाज का जादू सिर चढ़ कर बोलता था। वह भारतीय हॉकी के मन-प्राण थे। हर खेल की बड़ी जानकारी रखने वाले पद्म भूषण जसदेव को ओलंपिक ऑर्डर सम्मान से सम्मानित किया जाना बताता है कि वह कितनी बड़ी शख्सियत थे।
उनकी कमेंट्री कानों में मिश्री घोल देती थी। शिवाजी स्टेडिम में नेहरू, शास्त्री और रंजीत सिंह हॉकी टूर्नामेंट के चलते उनके संपर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 1990 के आस पास उनसे नजदीकियां बढ़ीं। तब वह कई अखबारों और पत्रिकाओं में कालम लिखा करते थे। वह जितने बड़े कमेंटेटर थे उससे बड़े और महान इंसान भी थे। शुरुआती दिनों में उनसे बात करने का साहस नहीं जुटा पाया। ऐसा स्वाभाविक है क्योंकि उनका कद बहुत ऊंचा था। लेकिन एक दिन अचानक उनका फोन आया। “मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूँ,” सुनते ही मैं जैसे धन्य हो गया था।
लगभग रोज ही करंट टॉपिक्स पर मुझसे बात करते थे। पहली ही मुलाकात में उन्होंने बताया कि राजस्थान पत्रिका और कुछ और अखबारों के लिए कालम लिखना होता है। बोले, ‘उम्र बढ़ने के साथ साथ याददाश्त कमजोर पड़ रही है। आपको मेरी मदद करनी पड़ेगी।’ उनके इन शब्दों का मैं हमेशा कायल रहा। भला सूरज को कौन दीया दिखा सकता है! लेकिन एक दोस्त और बेटे के रूप में मैने उनका खूब आशीर्वाद बटोरा। फिर एक दिन उन्होंने मुझे बड़ा ही मूल्यवान तोहफा दिया।
एक सुबह दिल्ली प्रेस के संपादक का फोन आया। बोले, जसदेव जी वर्षों से सरिता के लिए खेल खिलाड़ी कालम लिख रहे थे। अब स्वास्थ्य कारणों से लिखना जारी नहीं रख पा रहे। आपके नाम की सिफारिश की है। अपने प्रति उनके प्रेम और विश्वास से मैं दंग रह गया। अगले कई सालों तक मैं सरिता का खेल कालम पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ लिखता रहा।
जसदेव जी न सिर्फ मृदुभाषी थे अपितु हर वक्त मित्रों और प्रेमियों से घिरे रहते थे। जीवन के आखिरी सालों में स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण अक्सर कृष्णा जी के साथ स्टेडियम और सभा समारोहों में मौजूद रहते थे। उनसे हर कोई मिलता, हाल चाल पूछता और आशीर्वाद भी पाता। आज भी उनकी आवाज देश के आम, खास आदमी, खिलाड़ी और खेल प्रेमियों के दिल दिमाग में वास करती है। आप अजर अमर हैं सर! आप सा ना कोय!!