स्वदेशी रोशनी से द्विगुणित हुआ दीपोत्सव का उल्लास

कृष्णमोहन झा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत कोरोना काल में विभिन्न माध्यमों से संघ के स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन करते रहे हैं और उनका हर संदेश केवल संघ के स्वयंसेवकों के लिए नहीं अपितु सर्व सामान्य के लिए भी उपादेय होता है। इसीलिए मैं उनके हर उद्बोधन को न केवल सुनता हूं बल्कि उस पर चिंतन और मनन भी करता हूं। अपने हर संदेश में मोहन भागवत  दो बातों पर विशेष जोर देते हैं एक तो यह कि संघ के स्वयंसेवकों को सदैव समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और उपेक्षित लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए और दूसरी यह कि ‌स्वदेशी और स्वावलंबन को हमें अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना लेना चाहिए। मोहन भागवत की प्रेरणा से  संघ के स्वयं सेवक इस दिशा में निरंतर प्राणपण से अग्रसर हैं।

संघ प्रमुख ने मई में दिए गए अपने एक उद्बोधन में देशव्यापी लाकडाउन के कारण सर्वाधिक प्रभावित समाज के कमजोर तबके के जरूरत मंद लोगों की हर संभव करने के लिए संघ के स्वयंसेवकों को प्रेरित किया । अन्य समाजसेवी संस्थाओं और सामाजिक संगठनों के साथ संघ के स्वयंसेवक भी जरूरत मंद लोगों को रोजमर्रा की जीवनोपयोगी वस्तुएं उपलब्ध कराने के पुनीत कार्य में प्राणपण से जुटे रहे और संघ का यह पुनीत अभियान आज भी अबाध गति से जारी है।  कोरोना संकट के कारण जो आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं वे भी दीपावली का त्यौहार उल्लास पूर्वक मना सकें इसी भावना के साथ संघ के स्वयंसेवकों ने देश के विभिन्न शहरों में घर घर जाकर गरीब और जरूरतमंद लोगों को लक्ष्मी गणेश की प्रतिभाएं, मिट्टी के दीए, वस्त्र और मिठाइयों का वितरण किया।

इसके साथ ही संघ के स्वयंसेवकों ने समाज के सभी लोगों को त्यौहार मनाने के लिए स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया और उनसे यह अनुरोध किया कि वे अपने संपर्क में आने वाले सभी लोगों को स्वदेशी के अनुरूप आचरण के लिए प्रेरित करें।
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि दीपावली के अवसर पर पहले घरों एवं भवनों में रंग-बिरंगी रोशनी के लिए जिन चाइनीज राइज लाइट्स का बहुतायत से प्रयोग किया जाता था उसके स्थान पर कई जगहों पर अब सर्वदेशी झालरों  से की गई जो मनमोहक रोशनी देखने को मिलती है उसका श्रेय  संघ के सेवा भारती प्रकल्प को जाता है। संघ ने सेवा भारती प्रकल्प के माध्यम से 80 हजार महिलाओं को स्वदेशी झालर बनाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया था। एक पंथ दो काज कहावत को चरितार्थ करने वाले संघ के इस पुनीत कार्य के पीछे एक ओर जहां स्वदेशी की भावना थी वहीं दूसरी ओर इससे हजारों बेरोजगार युवाओं और महिलाओं को  मेहनत से जीविकोपार्जन का अवसर मिला।

गुलाबी नगरी के नाम से विख्यात राजस्थान के जयपुर शहर में संघ के सेवा भारती प्रकल्प के कौशल विकास केन्द्र में पिछले कई वर्षों से अनेक रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं जिनमें सिलाई कढ़ाई, विद्युत झालर, कम्प्यूटर और स्पोकन इंग्लिश का प्रशिक्षण दिया जाता है। सेवा सदन में ही अनेक मेडिकल जांच की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। जयपुर में समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों की मदद हेतु जो योजनाएं सेवा प्रारंभ की गई हैं उसके पीछे सरसंघचालक मोहन भागवत की प्रेरणा है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत के प्रत्येक उद्बोधन में पीड़ित मानवता की निस्वार्थ सेवा का प्रेरक संदेश छिपा होता है। मई में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से स्वयंसेवकों को संबोधित करने के कुछ माह बाद विजयादशमी पर्व पर उन्होंने नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में स्वयंसेवकों को संबोधित किया तब भी उनके भाषण में समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों के प्रति उनकी संवेदनशीलता के भाव को समझना कठिन नहीं था।

उस संबोधन में भी संघ प्रमुख ने समाज के इस कमजोर तबके की तकलीफों को दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया था। संघ प्रमुख ने कहा था कि हमें निस्वार्थ भाव से और यश की कामना के बिना जरूरतमंद लोगों की सेवा करना है। सेवा कार्यों में प्रतिस्पर्धा का भाव नहीं आना चाहिए। कोरोना के कारण बहुत से लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है जिससे अब उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च वहन करने में भी मुश्किल हो रही है। ऐसे व्यक्तियों की मदद के लिए समाज के अन्य वर्गों के लोगों को आना होगा। हम हमेशा सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते। सरकारों के माध्यम से समाज में बदलाव नहीं आ सकता। यह काम सामाजिक नेतृत्व के माध्यम से ही संभव है।
गौरतलब है कि हाल में ही भोपाल में संपन्न संघ की क्षेत्रीय बैठक में इन्हीं विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई थी। तीन दिन तक चर्चा के दौरान यह जानकारी दी गई कि कोरोना काल में संघ की गतिविधियों का संचालन किस तरह किया गया।

लाकडाउन की अवधि में चूंकि पारंपरिक शाखाओं का आयोजन संभव नहीं था इसलिए घर के अंदर परिवार के सदस्यों के साथ ही प्रार्थना,योग और प्राणायाम आदि का क्रम जारी रहा जिससे कोरोना से बचाव के लिए शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी पैदा हुई।

लाकडाउन के कारण जो बच्चे अपनी पढ़ाई में पिछड़ गए थे उनकी पढ़ाई में आए गतिरोध को दूर करने में बालगोकुलम की विशेष भूमिका रही। धीरे धीरे संघ के इस पुनीत अभियान से पास पड़ोस के लोग भी जुड़ते गए। संघ प्रमुख मोहन भागवत की प्रेरणा से यह अभियान निरंतर जारी है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने क्षेत्र पदाधिकारियों की बैठक में स्वाबलंबन और स्वदेशी के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हमें समाज में स्वालंबन और स्वदेशी के भाव को स्थायी रूप से स्थापित करने हेतु सतत अभियान चलाना होगा।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है। )

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