निर्देशक गणेश हेगड़े की कन्नड़ फिल्म “नीली हक्की” ने शहरी और ग्रामीण जीवन के बीच के तनाव को लेकर बच्चों का नजरिया पेश किया

Director Ganesh Hegde's Kannada film "Neeli Hakki" presented a children's perspective on the tension between urban and rural lifeचिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: “करूं या ना करूं।” अस्तित्व से जुड़ा यह वही सवाल है जिसने शेक्सपियर के कालातीत नाटक ‘हेमलेट’ में शीर्षक किरदार हेमलेट को परेशान किया था, यह सवाल 10 वर्षीय सिद्दा को एक अलग रूप में परेशान करता है। अपने गांव की प्राकृतिक सुंदरता और शांति को अलविदा कहने के लिए मजबूर होने के बाद, सिद्दा को उस शहर की शोरगुल से भरी एवं अलग-थलग करने वाली हलचल और गांव के शांत आलिंगन के बीच चुनाव करना पड़ता है, जहां उसके परिवार वाले गांव से जाकर बस गए हैं। सिद्दा के संघर्षपूर्ण प्रतिबिंब न केवल उसके सामने जीवन की कुछ कठोर वास्तविकताओं को पेश करते हैं बल्कि वे स्थिरता और शहरीकरण के महत्वपूर्ण सवाल भी उठाते हैं।

हां, नवोदित निर्देशक गणेश हेगड़े की कन्नड़ फिल्म ‘नीली हक्की’ ने सिद्दा के मन की उथल-पुथल साझा करने और हमारे साझा वर्तमान एवं भविष्य के इन महत्वपूर्ण सवालों से रचनात्मक रूप से परेशान होने के लिए भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के 52 वें संस्करण में भाग लेने वाले फिल्म प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया। फिल्म को आईएफएफआई में भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म खंड में प्रदर्शित किया गया है।

कल, 26 नवंबर, 2021 को फिल्म महोत्सव से इतर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, निर्देशक ने कहा, “मुझे 52वें आईएफएफआई में इस फिल्म को भारतीय दर्शकों के लिए पेश करते हुए बहुत खुशी हो रही है। फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर इस साल प्रतिष्ठित न्यूयॉर्क फिल्म महोत्सव में हुआ था। इसे आधिकारिक तौर पर मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल के लिए भी चुना गया था। भारत के सुदूर दक्षिणी हिस्से की एक स्वतंत्र फिल्म को दर्शकों द्वारा सराहे जाने से हमें और बेहतर काम करने का विश्वास मिलता है।”

फिल्म की शूटिंग बहुत कम कलाकारों और निर्माण दल के सदस्यों के साथ, निर्देशक के गृह-नगर और उसके आसपास की गई थी। निर्देशक ने कहा, “एकमात्र प्रयास एक ईमानदार कहानी बताने और जो हम महसूस करते हैं उसे व्यक्त करने का था। बाधाओं के बावजूद यह फिल्म बनाने की एक कठिन लेकिन सुंदर यात्रा थी।”

प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय अभिनेता विजय सेतुपति ने फिल्म में मदद की हैं। हेगड़े ने सेतुपति के फिल्म से जुड़ने को लेकर कहा कि यह एक दिलचस्प तरीके से हुआ। हेगड़े ने फिल्म के लिए पटकथा भी लिखी है। उन्होंने कहा, “कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, हर कोई घर पर बैठा था और नई फिल्में देखना चाहता था। किसी तरह, हमारी जानकारी के बिना, विजय सेतुपति सर को हमारी फिल्म के बारे में पता चला। उन्होंने वास्तव में हमारे प्रयासों की सराहना की, वे कहानी को अपने जीवन से जोड़ने में सक्षम थे। इसलिए उन्होंने खुद इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने की पेशकश की। हमने तटीय कर्नाटक के एक सुदूर गांव में शूटिंग की और सेतुपति दक्षिण भारत में एक सुपरस्टार हैं। इसलिए, जब उन्होंने मदद करने की पेशकश की तो यह हमारे लिए वास्तव में एक सम्मान की बात थी। जब ऐसे सुपरस्टार और बड़े प्रोडक्शन हाउस हमारी पीठ थपथपाते हैं, तो इससे हमें और ताकत मिलती है।”

हेगड़े ने एक स्वतंत्र फिल्मकारों और ओटीटी प्लेटफॉर्म के बीच सहयोग पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, “जब भारत में कुछ साल पहले ओटीटी प्लेटफॉर्म पेश किए गए थे, तो हमें उम्मीद थी कि यह मूल सिनेमा को जगह देंगे, लेकिन इसके बजाय, इसने मुख्यधारा के सिनेमा को जगह देना शुरू कर दिया। हम अब भी अपने सिनेमा को पेश करने के लिए एक मंच की तलाश कर रहे हैं। एक क्षेत्रीय भाषा से होने और महोत्सव के लिए बनायी जाने वाली फिल्मों का टैग जुड़े होने के कारण, हम हमेशा उपेक्षित रहेंगे। स्वतंत्र सिनेमा या छोटी कहानियां सिर्फ फिल्म महोत्सवों के लिए नहीं, सबके लिए होती हैं। उम्मीद है कि भविष्य में हमारे यहां कोई मुख्यधारा या स्वतंत्र सिनेमा नहीं होगा, बल्कि सिर्फ सिनेमा होगा।”

उन्होंने ओटीटी से ऐसी फिल्मों को भारत में जन-जन तक पहुंचाने का अनुरोध किया। निर्देशक ने कहा, “सिनेमा कला का एक रूप है। छोटे फिल्मकारों के लिए फिल्म बनाने में लगा पैसा वसूल करना मुश्किल होता है, हम करोड़ों की कमाई के बारे में नहीं सोचते, हम यहां सिर्फ ईमानदार सिनेमा बनाने के लिए हैं। इसलिए हम सभी जो छोटे शहरों की कहानियां बयां के लिए संघर्ष कर रहे हैं, हम सिर्फ लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।”

नवोदित फिल्म निर्देशक ने समय और स्थान के इतर सिनेमा की पहुंच का विस्तार करने में ओटीटी प्लेटफॉर्म के सापेक्ष लाभ के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “हम समझते हैं कि मनोरंजन उद्योग कैसे चलता है, लेकिन मैं अपने लिए सिनेमा नहीं बना रहा हूं। मैं अपनी कला को अपने सिनेमा के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूं। उम्मीद है कि ओटीटी हमें और लोगों तक पहुंचने का रास्ता देगा। महोत्सव 10 दिनों के लिए होते हैं, लेकिन जब फिल्म ओटीटी पर होती है तो लोग कभी भी उसे देख सकते हैं, यही सबसे बड़ा फायदा है। इस साल, ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि तमिल की एक स्वतंत्र फिल्म है, हमें पूरा विश्वास है कि ओटीटी भविष्य में स्वतंत्र सिनेमा की मदद करेगा।”

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