एक दिन की सरकार से आत्महत्या करने पर मजबुर कराने वाला फ्लोर टेस्ट की अनकही दास्तां

kamalnathदिव्यांश यादव

चुनावी तरकश से निकले हुए तीर सियासी मंचों पर भले अपने लक्ष्य को भेजते देखते हैं परंतु जब संग्राम विधानसभा जैसे युद्ध क्षेत्र में हो तो यह कहना सही नहीं रहता कि जीत किसकी होगी. दरअसल यह बात मध्य प्रदेश में हो रही सियासी उठापटक को निर्देशित करती है, अब मध्य प्रदेश का राजनीतिक ताना-बाना कांग्रेस और बीजेपी के बीच की कड़ी बनकर घूम रहा है, अब यहां कौन मुख्यमंत्री होगा यह तो फ्लोर टेस्ट में ही पता चलेगा लेकिन आज हम फ्लोर टेस्ट की  इतिहास को खंगालेंगे और पता करेंगे कि आखिर कब कब सियासी अखाड़े में फ्लोर टेस्ट एक हथियार बनकर साबित हुआ है लेकिन इससे पहले हमें फ्लोर टेस्ट को समझना होगा।

आखिर फ्लोर टेस्ट होता क्या है:

फ्लोर टेस्ट के जरिए फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार के पास बहुमत है या नहीं, यह प्रक्रिया अलग-अलग तरीकों से की जाती है, कभी हाथ उठाकर या कभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा या बैलेट पेपर द्वारा लेकिन कई बार सियासी दलों के लिए फ्लोर टेस्ट एक टेढ़ी खीर की तरह साबित हुआ है, अब हम इसके इतिहास की ओर जाएंगे ।

फ्लोर टेस्ट का इतिहास :

 26 साल पहले फ्लोर टेस्ट भारतीय संविधान में नहीं था, जब 1989 में कर्नाटक के राज्यपाल पी वेंकट ने उस समय के कर्नाटक के मुख्यमंत्री  बोम्मई की सरकार को बर्खास्त कर दिया, तब बात सुप्रीम कोर्ट में पहुंची और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी स्थिति में इसे अनिवार्य कर दिया।

जगदंबिका पाल की 1 दिन की सरकार:

1996 का दौर था, उत्तर प्रदेश में भाजपा और बसपा के बीच 6-6 महीने की मुख्यमंत्री का प्रारूप तैयार हुआ, बसपा के समर्थन के दम पर जगदंबिका पाल ने मुख्यमंत्री की शपथ ली,अभी 1 दिन भी नहीं हुए थे अचानक मायावती ने जगदंबिका पाल से समर्थन वापस ले लिया, जगदंबिका पाल मात्र 1 दिन के मुख्यमंत्री बन सके और बाद में फ्लोर टेस्ट में वह फेल हो गए और इसके बाद कल्याण सिंह की सरकार बनी ।

मात्र 10 दिन में ही गिर गई शिबू सोरेन की सरकार

साल 2005 में शिबू सोरेन भाजपा की मदद से झारखंड के मुख्यमंत्री बने तब कुल 81 सीट में से बीजेपी को 30 और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 17 सीट मिली थी लेकिन जब फ्लोर टेस्ट हुआ तब शिबू सोरेन सरकार गिर गई ।

नागालैंड की शुरोजेली लेजित्सू की सरकार भी गिरी फ्लोर टेस्ट से ::

 साल 2017 में नागालैंड में शुरोजेली लेजित्सू की सरकार बनी जो नागालैंड पीपुल्स फ्रंट कि नेता थे, तब विपक्षी नेता टी आर जेलियांग ने उन्हें चुनौती दी, आखिरकार फ्लोर टेस्ट हुआ लेकिन इसमें ना ही शुरोजेली लेजित्सू पहुंचे और ना उनके कोई समर्थक अंततः जेलियांग नागालैंड  के मुख्यमंत्री बने ।

फ्लोर टेस्ट ने एक नेता को आत्महत्या करने पर किया मजबूर:

अरुणाचल प्रदेश की राजनीति में भूचाल तब आया, जब 2016 में मात्र 1 साल में तीन सीएम बने दरअसल कांग्रेस के कद्दावर नेता पेमा खांडू ने  सरकार बनाई लेकिन अंतर्कलह की वजह से उन्होंने 32 विधायकों सहित के साथ एक नई पार्टी बनाई और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए हैं लेकिन अरुणाचल प्रदेश में सत्ता की बागडोर ना मिलने पर  पूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल ने फांसी लगाकर आत्महत्या की तब फ्लोर टेस्ट को उनकी आत्महत्या की वजह माना गया ।

फ्लोर टेस्ट की एहमियत:

फ्लोर टेस्ट ने समय समय पर कई बड़े नेताओं से सत्ता की चाभी छीनी है परन्तु कई बार इसके अच्छे परिणाम भी मिले हैं,हम कह सकते हैं कि फ्लोर टेस्ट सत्ता में बने रहने की जांच का एक प्रखर तरीका है और आने वाले भविष्य में फ्लोर टेस्ट कई नेताओं के चेहरे पर मायूसी और खुशी का कारण बनेगा ।

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