गोरखपुर का जातीय गैंगवार: यूपी के मुख्यमंत्री की सुपारी लेने वाला डॉन, प्रेमिका की वजह से मारा गया था

दिव्यांश यादव

फायरिंग दोनाली बंदूक से हो और सामने कोई बाहुबली हो तो डर कितना लगता है,पुलिस से पूछिए। पर एक था जिसे डर भी डरती थी, पुलिस की टीम का हर जवान यही सोचता था कि इससे बच जाए बाकी जिंदगी तो “कंटाप” ही जिएंगे।

लेख लिखना आसान है पर ये सोचना कि उत्तर प्रदेश के उस जिले में, जिस जिले में पहले से ही दो बाहुबलियों ने लाशों की दीवार बनाई हो, वहां रहकर अपना साम्राज्य चला लूंगा, नेता भी बनूंगा, रेलवे के ठेके भी लूंगा, और नहीं बना तो लाशों पर अपना नाम भी गुदवाऊंगा, सोचकर भी अजीब लगता है। जिंदगी में भौकाल और शहर में लाशों का आकाल, नहीं होने देने वाले सिर्फ एक श्रीप्रकाश शुक्ला, नाम तो सबने सुना ही होगा।

पहलवानी के दांव पेंच से लेकर बहन के लिए जान लेने तक का तक दम लिए श्रीप्रकाश शुक्ला पुलिस की नजर में तब आया जब उनकी बहन को राकेश तिवारी नाम के शोहदे ने सीटी बजाकर छेड़ दिया था।  राकेश को तनिक भी संदेह नहीं था कि ये सीटी उसकी आखिरी आवाज होगी, गालियों के साथ साथ गोलियों ने भी रफ्तार पकड़ी और श्रीप्रकाश के सामने राकेश बाबू ढेर।

वक्त था 1993 और उम्र बीस, खून तो खौलना ही था,बाबू श्रीप्रकाश तुरंत बैंकॉक रवाना। मामला थोड़ा ठंडा हुआ और हर रात श्रीप्रकाश के अंदर खून गरमागरम, अब उसे बस देर थी एक गॉडफादर की।

बिहार के मोकामा में सूरजभान ने उसकी गरम खून को तेजाब की तरह दहकाना शुरू कर दिया। एक तरह जब उसके गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के गुर्गे, लाशों की दीवार सजा रहे थे तो दूसरी तरफ बिहार की जमीन पर खून से नाम लिखने लगा था श्रीप्रकाश शुक्ला। बिहार में था परन्तु गोरखपुर से उसका ध्यान हटा नहीं,एक दिन वीरेंद्र शाही को लखनऊ में बीच चौराहे ठोक दिया। गले से सांस लेना पुलिस के लिए मुश्किल हो गया, वीरेन्द्र शाही के खून से उसने गोरखपुर की गद्दी का बाहुबली बनने का राजतिलक कर दिया था।

बिहार में उसने तकरीबन 20 से ज्यादा लोगों को ढेर कर रखा था। अब उसके निशाने पर यूपी के एक से बढ़कर एक बदमाश भी आ गए,सुना है कईयों को तो दौड़ा दौड़ा कर मार डाला। श्रीप्रकाश अब साक्षात यमराज बन चुका था, अब मनमौजी करने से उसे कोई रोक नहीं सकता था। सुने हैं महंगी कार, लड़कियां, सोने की चैन, मसाज पार्लर उसकी पहली पसंद में आती थी ।  गोरखपुर में उसके गुर्गों ने तबाही मचा दी और श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर के चिल्लूपार विधानसभा का विधायक बनने की सोचने लगा, उसके रास्ते में सिर्फ एक कांटा था, पंडित हरिशंकर तिवारी ।

हरिशंकर तिवारी की जान कभी भी जा सकती थी लेकिन गोरखपुर में उन्होंने ब्राम्हण समाज का दबदबा बना रखा था इसलिए श्रीप्रकाश शुक्ला के पिताजी नहीं चाहते थे कि अगली बारी पंडित हरिशंकर तिवारी की हो,इसलिए चाहकर भी श्रीप्रकाश चुप रहें।

अब दौर 1998 का आ चुका था, उस समय बिहार सरकार में बाहुबली मंत्री थे बृज बिहारी प्रसाद। श्रीप्रकाश शुक्ला ने उन पर आंखे टिका ली थी, अपने गोरखपुर के साथियों की तरह उसने भी रेलवे के ठेके में अपना फायदा सोचा और इसीलिए पटना में उन्हें गोलियों से भून डाला।

कहा जाता है कि 13 जून 1998 को नेता जी इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के सामने अपनी अपनी लाल बत्ती कार से उतरे ही थे कि एके-47 से लैस 4 बदमाश उन्हें गोलियों से गुड आफ्टरनून कह के फरार हो गए।

अचानक पुलिस को खबर मिली कि श्रीप्रकाश शुक्ला को किसी ने 6 करोड़ की सुपारी दे दी है, पुलिस सहित पूरे देश में खलबली मच गई, यूपी पुलिस का सांस लेना दूभर हो चुका था। श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ने की जिम्मेदारी एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) को सौंपी गई। एसटीएफ लगातार अपनी धर पकड़ बढ़ा रही थी, और श्रीप्रकाश दिल्ली के वसंत कुंज में अपनी पहचान।

अचानक पुलिस को किसी मुखबिर ने सूचना दी कि दिल्ली से कल यानी 22 सितंबर को श्रीप्रकाश अपनी प्रेमिका से मिलने जाएगा। इतनी सूचना और पुलिसिया कार्रवाई के बाद भी श्रीप्रकाश निकल चुका था। एसटीएफ निराश हो चुकी थी लेकिन कुछ दिन बाद मोहननगर में जबरदस्त मुठभेड़ हुई और सबको खून की उल्टियां कराने वाला श्रीप्रकाश खून से लथपथ हो गया। कहा जाता है अगर उसे मारा नहीं गया होता तो वो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री जरूर बन जाता।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *