गोरखपुर का जातीय गैंगवार

दिव्यांश यादव

दीवारों पर खून के छीटों और हर रोज चीखती चिल्लाती विधवाओं से कभी गोरखपुर भी लाल हुआ करता था, ये वक्त छात्र राजनीति के उस दौर का था, जब वर्चस्व की लड़ाई इतनी जातिगत हो गई की ठाकुर और ब्राम्हण समाज के दो पैरोकार वीरेंद्र शाही और पंडित हरिशंकर तिवारी एक दूसरे   के जानी दुश्मन बन गए।

ये वही गोरखपुर शहर था,जिसके अतीत में खून से सनी, ना जाने कितनी लाशें और गोलियों की तड़तड़ाहट ने आज भी यहां के बुजुर्ग के कानों की सनसनाहट को सन्न कर दिया है। गोरखपुर के लोग आज भी ठाकुरों और ब्राम्हण समाज की उस जंग को भूल नहीं पाए हैं।

सन् 1974 में जब जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने तेज पर सवार था तब गोरखपुर में भी छात्र राजनीति ने नई दिशा तय की। गोरखपुर का छात्र आंदोलन कब ठाकुर और ब्राम्हण छात्र संगठनों के बीच का अखाड़ा बन गया ये किसी को नहीं पता चला। उस समय गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो छात्र नेता थे। एक बलवंत सिंह और दूसरे हरिशंकर तिवारी। इन दोनों में हमेशा वर्चस्व को लेकर हमेशा विवाद होता रहता था।

उसी समय ठाकुर समाज का ही एक युवा वीरेंद्र शाही भी इस खूनी झगड़े का जननायक बन गया । यह वही दौर था जब आदमी की हैसियत पैसे से नहीं जाति से जानी जाती थी । गोरखपुर की पुलिस भी इन छात्र नेताओं से कोषों दूर रहना चाहती थी,जिले में हालात ऐसे थे कि लोग पेट्रोल भरा के पैसे नहीं देते थे और आंख मिलाकर बात करने पर गोली मार देते थे। ऐसी घटनाएं आम होने लगी थी।

फिर क्या लोगों को वर्चस्व के साथ पैसे की अहमियत भी समझ में आने लगी। इस दौर में रेलवे की ठेकेदारी मिलने लगी थी। कहा जाता है कि ठेके के माध्यम से बड़ी आसानी से पैसा कमाया जा सकता था। हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही दोनों ने अपने-अपने गुट को मजबूत करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे दोनों की अपनी अपनी गैंग बनी और मौत की गोद में पहले कौन जाएगा इस डर को बंदूक के धुएं से उड़ाया जाने लगा ।

ऐसा लग रहा था कि जैसे यमराज ने गोरखपुर को अपनी राजधानी घोषित कर दी हो,सिर्फ लाशों से अंदाजा लगाया जाने लगा कि किस गैंग के सीने में कितनी गोलियां दागी जाए,जीत और हार अब इसी पर तय किया जाने लगा , गोरखपुर,आजमगढ़,देवरिया, मऊ में तो इन दोनों गैंग ने अपनी कहर ढा रखी थी !

हर दिन कहीं ना कहीं गैंगवार में निकली गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती थी। आए दिन दोनों तरफ के कुछ लोग मारे जाते थे। कई निर्दोष लोग भी मरते थे। इसी दौरान लखनऊ और गोरखपुर विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके युवा विधायक रविंद्र सिंह की भी हत्या हो गई।

खौफ इस कदर था कि पुलिस वाले भी अपनी पोस्टिंग गोरखपुर में कत्तई नहीं करवाना चाहते थे, इन दोनों गैंग की धमक से लखनऊ के नेता भी सर झुकाने लगे और धीरे धीरे वीरेंद्र शाही महाराजगंज से और गोरखपुर के चिल्लूपार से हरीशंकर तिवारी ने विधायक बनने का रस चखा ।हरीशंकर तिवारी आज भी हैं,जबकि वीरेंद्र शाही की हत्या ब्राम्हण समाज के ही “श्री प्रकाश शुक्ला” ने कर दी ।

ये नाम श्री प्रकाश शुक्ला आज भी खास है,क्योंकि ये वही शक्स थे जिन्होंने कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ले ली और इन्हीं की वजह से एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) का गठन हुआ। सोचिए ये वो वक्त था जब बीबीसी में भी गोरखपुर में हुई गैंगवार की खबर को प्रमुखता से सुना जाता था मतलब सीधे गोरखपुर भारत से अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर सुर्खियां बन चुका था।

लेख सीरीज “गोरखपुर गैंगवार में आज के लिए इतना ही, श्री प्रकाश शुक्ला की खूनी कहानी का सच अगले अंक में।

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