हमाम में सब नंगे हैं
ब्रजेन्द्र नाथ झा
पीपली लाइव एक ऐसी फिल्म थी जिसने उस समय के मौजूदा सरकार के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं थी. इस फिल्म के गाने को चुनावी सभा में खूब इस्तेमाल भी किया गया, सामाजिक सरोकार से जुड़े इस फिल्म के गाने “महंगाई डाइन खाय जात है” को विपक्षी पार्टियों ने सरकार के खिलाफ भी हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया था.
सुना है कोई पूरी पढ़ाई का खर्च उठाने का वादा कर रहा है तो कोई पढाई से लेकर उसकी शादी तक करवाने की बात कर रहा है, और तो औऱ सियासी पिटारे खोलने में जल्दबाजी ऐसी दिख रही है, कि पार्टी के अधिकारी तकनीकी भूल भी खुली आंखों से देख नहीं पा रहे हैं। यहाँ बात हो रही है गुरुग्राम से दरभंगा तक अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठा कर पूरे 12 सौ किमी की यात्रा वो भी सात दिनों में करने वाली 13 वर्षीय साहसी बिहार की बेटी ज्योति की, जिसे सरकार और सिस्टम की विफलता का दंश झेलना पड़ा।
ज्योति पासवान गुरुग्राम जो हरियाणा का औद्यौगिक शहरों में से एक है, जहां बीजेपी के खट्टर सरकार की हुकूमत है, तीन-तीन राज्यों की सीमा को लांघते हुए दरभंगा पहुंची, लेकिन इस तीन राज्यों में ना तो सरकार की नजरें उस लड़की पर पड़ी, ना ही दिल्ली में बैठे हुक्मरानों की निगाहें ज्योति की बेबसी को देख पाई।
जब वो दिल्ली से आगे की ओर चली तो उत्तर प्रदेश, जहां बहुजन हिताय की हिमायती कुमारी बहन मायावती जी रहती हैं, जहां समाजिक समानता की बात करने वाला समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव रहते हैं, औऱ तो और जहां पूरे लाव-लश्कर के साथ खुद योगी जी गरीबों, शोषितों और मजदूरों की सेवा में तल्लीन हैं, उनकी भी नजरें गच्चा खा गई ज्योति की बेबसी को समझने में।
उत्तर प्रदेश के बाद ज्योति बिहार में प्रवेश करती है, जहां की सरकार महादलित जैसे शब्दों को गढ़ता, बुनता और रचता है, लेकिन पिछले 15 वर्षों में जगंल राज हटाने के नाम पर सुशासन बाबू मजे से राजा रजवाड़ों की तरह गद्दी पर विराजमान हैं. दुर्भाग्य की बिहार की बेटी का बिहार में साइकिल से प्रवेश करने की खबर उन तक भी नहीं पहुंची, इस तरह ज्योति अपने गंतव्य स्थल पर तो पहुंच गई लेकिन इस दौरान वो सोशल मीडिया और मीडिया की नजरों से नहीं बच पाई।
खेल इसके बाद शुरु होता है. जब इसी ज्योति की अदम्य साहस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप की नजरें पड़ी, देखते ही देखते ज्योति की रोशनी पूरे देश में ट्रेंड करने लगता है, और वो रातों रात नेताओं के लिए स्टार बन जाती है। ज्योति दरभंगा जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर सिरहुल्ली की रहने वाली है, सिरहुल्ली दरभंगा जिले के सिंघवाड़ा प्रखंड में पड़ता है। इतनी लम्बी यात्रा करने की वजह से ज्योति को पहचान नहीं मिली, दरअसल ज्योति को सात समंदर पार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ने पहचान दिलाई.
इवांका के ट्वीट के बाद ज्योति सुर्खियों में आई, और देखते ही देखते बिहार के तथाकथित दलित नेताओं ने उसे सर-आँखों पर बैठा लिया. क्योंकि चुनाव आने वाला है.
कुछ महीने बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाला है, लिहाजा राजद सुप्रीमो लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव से लेकर, राजनीति के मौसम वैज्ञानिक रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान तक बहती गंगा में हाथ धोने से से अपने आपको रोक नहीं पाए. दरभंगा शहरी क्षेत्र से विधायक संजय सरावगी ही पीछे क्यों रहते ,उन्होंने भी इस गंगा में हाथ धोने से परहेज नहीं किया, औऱ लगे हाथ कर दिए संघर्ष पर जीत का पताका लहड़ाने वाली ज्योति पासवान को सम्मानित. ऐसे मौके पर संजय सरावगी भूल गए की मौजूदा वक्त लॉकडाउन का है, जहां सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर तमाम तरह के सरकारी गाइडलाइन फॉलो करने होते हैं. लेकिन सरावगी के लिए जैसे सरकार की सभी दिशा निर्देश मायने नहीं रखता।
सरकार की विफलताओं के बावजूद भी किसी क्रांति की भांति असिमित पथ पर अडिग चलने वाली ‘ज्योति’ की रौशनी से रौशन होने की फिराक में बिहार के जमुई लोकसभा क्षेत्र से लोकजनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान भी भला पीछे क्यों रहते, लगे हाथ उन्होंने भी खोल दिया वादों का पिटारा, कर दी आर्थिक मदद की घोषणा. लेकिन ये वही चिराग हैं जिनकी लौ 6 साल बाद भी उनके संसदीय क्षेत्रों में पड़ना बाकी है. बिहार विधानसभा चुनाव आने वाला है लिहाज चिराग भी दरभंगा की इस बेटी के नाम आर्थिक पैकेज की घोषणा करने में देर नहीं लगाई.
सरकार की नाकामियों पर भारी पड़ा अदम्य साहस और पिता के प्रति एक बेटी का प्यार, जिसने ना सिर्फ अपने बीमार पिता को हरियाणा के गुरुग्राम से लाकर सरकार और सरकारी सिस्टम पर करारा तमाचा जड़ा है, बल्कि दिल्ली से लेकर बिहार तक से सत्ताधीशों के लिए यह एक सबक है। सबक इसलिए क्योंकि जिस बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार दलितों के उत्थान के लिए “महादलित” जैसे शब्दों को गढ़कर चुनावी माहौल को बदलने का माद्दा रखतें हैं, आज वही महादलित, शोषित, पिछड़े और बेबस लाचार लोग देश की इतनी लम्बी चौड़ी सड़कों पर पैदल ही चलकर अपने-अपने घरों की ओर जा रहें हैं, जो काफी पीड़ा दायक ही नहीं प्रदेश सरकारों के लिए मुंह पर किसी थप्पड़ से कम नहीं।
मौजूदा वक्त में देश के राष्ट्रीय राजमार्गों पर कई ज्योति आपको मिल जाएगी, कई ऐसे दुखभरी कहानियां आपको राजमार्ग के उस तपती सड़कों से मिल जाएंगी, जिसका जिम्मेदार कहीं ना कहीं सरकार और सरकारी सिस्टम है। ऐसे में तो एक बात तय है जिस तरह श्रेय लेने की होड़ राजनीतिक पार्टियों में दिखाई दे रहा है, उससे साफ-साफ जाहिर होता है कि हमाम में सब के सब नंगे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)