क्या इस बार बिहार के युवाओं ने नया सोच रखा है?
निशिकांत ठाकुर
कितनी अजीब बात है कि हमारे नेता बिहार में जन्मे युवाओं को उनके द्वारा ही बनाई गई सरकार उन्हें कितना और किस तरह अपमानित करती है । आजादी के बाद जन्मे आज के भारतीय नेताओं को पता ही नहीं है कि उन्हें आज अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए कितने देश भक्तों ने अपना बलिदान दिया होगा । कितने घर उजड़ गए , कितने निर्दोषों को सरेआम फांसी का तख्ता खींचकर नहीं बल्कि पेड़ों पर लटका दिए गए । यह भी ठीक है कि आज जब लोग अपने माता पिता के प्रति लापरवाह होते हैं और उन्हें घर से निकालकर वृद्धाश्रम भेज देते है , फिर वह इस बात की चिंता क्यों करे कि इस आजादी के लिए उनसे पहले कितनी कुर्बानियां दी गई होगी । आज से उनका मतलब आज ही है और इसलिए वह किसी के सीने पर पैर रखकर आगे बढ सकते है । सच तो यही है कि ऐसा ही हो भी रहा है । लगभग सभी नेताओं को अपना पैर पूजाने में सुख मिलता है वह अपने सामने किसी और को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते हैं , हां, उनके परिवार से जुड़ा कोई हो तो उसे जन्मजात ज्ञान मिला होता है और उन्हें राज्य अथवा देश चलाने का लाइसेंस प्राकृतिक रूप से प्राप्त हो जाता है । ना तो उन्हें देश के इतिहास का ज्ञान है ना अपने देश की परम्परा और संस्कारों का ज्ञान होता है । इतिहास यह बताता है कि देश के लिए जज्वाती रूप से समर्पित होने वाले ही पहले राजनीति करते थे, उनका अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं होता था । बस, उन्हें इस बात को सोचकर सुख मिलता था कि उनका देश आजाद होगा और उनके अपने नियम और कानून तथा अपना झंडा और संविधान होगा । आखिर उन बेनाम देश भक्तों के कारण भारत आजाद हुआ , लेकिन वह इसका सुख भोग नहीं सके । यदि आजादी के सुख को देखने के लिए वह दिव्य आत्मा जीवित होते तो इस दुख को झेल नहीं पाते । वैसे आज उनकी मृतात्मा देश के इस दारुण दुख को देखकर जरूर कलप रही होगी उनकी भावनाओं को उनके द्वारा आजाद कराए देश के नेता किस तरह मखौल बना रहे है । किस किस तरह से जनता को वोट पाने के लिए लुभाते हैं उन्हें बरगलाते हैं , यदि इसको गंभीरता से परखना है तो निश्चित रूप से एक बार आपको बिहार जाना चाहिए , जो अभी भारतीय राजनीतिज्ञों के लिए कौतूहल का पर्याय बना हुआ है।
कई दलों ने मिलकर व अलग अलग सरकार बनाने का दावा किया है । सबने अपने अपने तरीके से जनता को नए नए लोभ देकर ठगने का वादा किया है जिसे देखकर आप चौंक जाएंगे । सत्तारूढ़ दल ने एक शगूफा छोड़ा है कि यदि राजद की सरकार बनी तो फिर बिहार में जंगलराज कायम हो जाएगा क्योंकि राजद प्रमुख तेजस्वी यादव लालू यादव के बेटे हैं । कई लोगों ने इसे प्रलाप और सत्तारूढ़ दल के हार का डर बताया और कहा कि हिरण कश्यप बहुत ही बड़ा पापी और राक्षस था , लेकिन प्रहलाद तो उसी का पुत्र था । कई और उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि शराब माफिया और बालू माफिया से मिली भगत के कारण बिहार के राजस्व का घोर नुकसान हुआ है । जिसके कारण ना तो किसी को कोई रोजगार मिला और न ही जीने का साधन । हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब स्वर्गीय) बंशीलाल ने भी शराबबंदी अपने राज्य में लागू किया था उसका परिणाम सरकार को राजस्व का जो नुकसान हुआ वह तो हुआ ही सरकार भी गिर गई । लॉक डाउन के काल की पीड़ा अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि उन सबों को फिर बिहार से बाहर जलील होने के लिए जाना पड़ा । क्योंकि एक आशा उनके मन में यह थी कि उन्हें अपने ही राज्य में रोजगार मिलेगा , लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस घोषणा के बाद की अब बिहार में कोई उद्योग नहीं लग सकता क्योंकि बिहार समुद्र के किनारे बसा हुआ राज्य नहीं है , निराश होकर अपने ही देश में फिर से पेट और परिवार के भूख को मिटाने के लिए वापस प्रवासी पक्षियों की तरह प्रवासी मजदूर बनकर भाग्य भरोसे जहां तहां वापस जाना पड़ा । ऐसी दुर्दशा शायद अपने ही देश के किसी अन्य राज्य की नहीं है और इसीलिए सत्तारूढ़ दल पर मतदाताओं का इतना क्रोध है कि वह उनके खिलाफ उनकी ही सभा में गाली गलौज करते हैं, हाथापाई करते , काले झंडे दिखाते , गोबर फेंककर अपना क्रोध प्रदर्शित करते हैं। अब तक चुनाव का एक फेज पूरा हो गया है और जनता का रूझान अभी समझ में नहीं आ रहा है जिनसे बात करिए उनका अपना एक अलग मत है हर कोई अपनी गणना अपने अनुमान के आधार पर लगा रहा । कई एजेंसियों के सर्वे भी आ चुके हैं , लेकिन जनता का सर्वे अभी 10 नवंबर को आएगा फिलहाल अपने मन से जो अनुमान लगाना है वह आप लगा सकते हैं ।
आइए, इस बार के बिहार विधान सभा चुनाव की कुछ मुख्य बातो को समझे । सबसे पहले इस बार पूरा चुनाव युवा पीढ़ी के हाथों में है । लगभग सभी दलों के मुखिया युवा और तेज तर्रार है । सत्तारूढ़ दल के नेताओं को छोड़ दे तो चिराग पासवान, तेजस्वी यादव, पुष्पम प्रिया चौधरी युवाओं की प्रथम पंक्ति में है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार में राजनीतिक जागरूकता कितनी है । वैसे इन तीनों नेताओं का परिवेश राजनीतिक रहा है इसलिए यह माना जा सकता है की चाहे किसी पार्टी की सरकार बने युवाओं का भविष्य उज्ज्वल दिखाई दे रहा है। रही बात वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तो वह पढ़े लिखे और धुरंधर राजनीतिज्ञ है , लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि उनका पंद्रह वर्षों का कार्यकाल सराहनीय नहीं रहा। वैसे जनता नीतीश कुमार के पहले कार्य काल की सराहना करती हैं, लेकिन पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने बिहार की ही एक चुनावी रैली में स्वीकार किया कि नीतीश जी का पहला दो चरण ठीक नहीं रहा क्योंकि यूपीए की सरकार ने उन्हें काम नहीं करने दिया और बिहार का विकास उस गति से नहीं हो सका जिसकी आशा यहां की जनता करती थी ।
अब एक अवसर उस गठबंधन को तो दिया जा सकता है, लेकिन पुराने और अनुभवी राजनीतिज्ञ कहकर फिर से सत्ता की कुर्सी उन्हीं को देना कहां तक उचित होगा यह बात समझ में नहीं आती । पंद्रह साल का कार्यकाल कम नहीं होता और फिर उसमे पांच वर्ष का अवसर और देना कुल मिलाकर मतदाताओं पर निर्भर करता है । जनता हित में यही होगा कि वह उसे ही सत्ता की कुर्सी दे जो भिन्न भिन्न नदियों की बाढ़ को नियंत्रित करने का वचन दे, शिक्षा, स्वस्थ्य, अपराध और जातिवाद को खत्म करने का सौगंध ले । यदि ऐसा नहीं हुआ तो बिहार जैसा की बार बार मैं अपने लेख में लिखता आ रहा हूं वहां के युवा सदैव अपने भाग्य को कोसते रहेंगे और उनकी उपलब्धि यही होगी की देश के सारे मजदूर बिहार के ही होंगे और जलालत भारी जिंदगी जी रहे होंगे । आज भी बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण बाबू को इसलिए सब याद करते हैं कि क्योंकि उनके पास बिहार के आमजनों के लिए एक सशक्त योजना थी और उन्होंने उसका उपयोग जितना समय उन्हें मिला उसमें किया । काश , उनके जैसा दृढ़ निश्चय वाला फिर बिहार की सत्ता संभाले पर, क्या ऐसा हो सकेगा ?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )