प्लाज्मा थेरेपी के ज्यादा इस्तेमाल पर ICMR ने जारी की नई गाइडलाइन

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: पहले प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना के इलाज़ के लिए सबसे उपयुक्त माना गया था, और डॉक्टर्स ने इस थेरेपी का इस्तेमाल कर के कई लोगों की जान भी बचायी, लेकिन अब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने परामर्श जारी कर कहा है कि कोविड-19 रोगियों के उपचार में प्लाज्मा पद्धति का अंधाधुंध इस्तेमाल उचित नहीं है।

बता दें कि कोरोना महामारी से ठीक हुए रोगियों के प्लाज्मा का इस्तेमाल कर के इस दूसरे रोगियों के उपचार में किया जाता है। लेकिन अब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के नई गाइडलाइन्स के अनुसार इस थेरेपी का ज्यादा उपयोग ठीक नहीं है। इस बीच, भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 89 लाख के पार चली गई है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने प्लाज्मा पद्धति के अनुचित इस्तेमाल को लेकर साक्ष्य आधारित परामर्श में कहा है कि प्लाज्मा दान करने वाले व्यक्ति के शरीर में कोविड-19 के खिलाफ काम करने वाली एंटीबॉडीज का पर्याप्त सांद्रण होना चाहिए।

चिकित्सकीय परिणामों में सुधार, बीमारी की गंभीरता, अस्पताल में रहने की अवधि और मृत्युदर में कमी प्लाज्मा में विशिष्ट एंटीबॉडीज की सांद्रता पर निर्भर करती है जो सार्स-कोव-2 के प्रभावों को खत्म कर सकती हैं। इस पद्धति का इस्तेमाल पूर्व में एच1एन1, इबोला और सार्स-कोव-1 जैसे विषाणु संक्रमण के उपचार में किया जा चुका है।

आईसीएमआर ने हाल में 39 निजी और सरकारी अस्पतालों में एक अध्ययन के बाद कहा था कि कोरोना वायरस संक्रमण के गंभीर मरीजों का इलाज करने और मृत्यु दर को कम करने में प्लाज्मा पद्धति कोई खास कारगर साबित नहीं हो रही है। परामर्श में कहा गया है कि इसी तरह के अध्ययन चीन और नीदरलैंड में किए गए जिनमें इस पद्धति का कोई खास लाभ नजर नहीं आया। इस पद्धति का इस्तेमाल विशिष्ट मानक पूरा होने पर आईसीएमआर के परामर्श के अनुसार ही होना चाहिए।

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