भारत-चीन-पाकिस्तान, यानी रिश्तों में तल्खी का त्रिकोण
निशिकांत ठाकुर
भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन… इन देशों के बीच गजब का रिश्ता है। कभी भी देश के किसी भी समाचार माध्यमों में जाएं, इन देशों के बारे में कुछ-न-कुछ कहीं-न-कहीं देखने को जरूर मिल जाएगा। यह कोई जरूरी नहीं कि विश्व के हर देश का अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध ही हों, लेकिन भारत का, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ कभी भी संबंध ठीक नहीं रहा। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान का जन्म ही भारत के विरोध में हुआ है। ऐसे में उसका संबंध भारत के साथ ठीक हो, ऐसी उम्मीद करना भी बेमानी है।
हम मान लेते हैं कि चलो ठीक है कि विश्व में ऐसे भी कई देश हैं जो अपने पड़ोसियों की नाक में दम करके रखते हैं, लेकिन धुर विरोधी होने के बावजूद दोनों देश विकास के मार्ग पर सहजता से आगे बढ़ते रहते हैं। उन देशों को इसकी एक आदत-सी हो जाती है और वह यह मान लेते हैं कि ऐसा तो होगा ही… और ऐसा होता भी रहता है। लेकिन, अब ऐसे देशों की बात करें जिसकी सीमाएं कहीं-न-कहीं आपस में लगती हों, लेकिन फिर भी दो-चार वर्षों में एक बार धींगामुश्ती करने के लिए जोर-आजमाइश करते रहते हैं। विश्व में और भी इस प्रकार के देश हैं, लेकिन जो ज्वलंत उदाहरण भारत-चीन का है, वह भारत के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया दुखद है।
चीन कभी लद्दाख तो गलवन घाटी, कभी पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश तो कभी सिक्किम में घुसपैठ व गोलाबारी करके सीमा की सुरक्षा में तैनात भारतीय जवानों को आघात पहुंचाने से नहीं चूकता है। अभी कुछ दिन पहले तक दोनों देशों के संबंध कितने मधुर थे कि भारत और चीन के राष्ट्र प्रमुख कई बार एक-दूसरे के देश आए-गए। भारतीय राष्ट्र प्रमुख चीन के राष्ट्र प्रमुख की प्रशंसा करते नहीं अघाते और वह हमारे राष्ट्र प्रमुख के गांव तक जाने के लिए तैयार थे, लेकिन दूरी अधिक होने के कारण वहां जा नहीं सके और जब भारतीय राष्ट्र प्रमुख चीन गए तो उन्होंने वह पुस्तक चीनी भाषा में लिखित उपहार दिया जिसमें एक महान इतिहासकार ने उस जगह का उल्लेख किया था जो हमारे राष्ट्र प्रमुख का जन्म स्थान है। अब इतनी गहराइयों वाला संबंध एक सपनों की तरह टूटकर बिखर जाए, यह कैसे संभव हुआ और क्यों हमारे बिहार रेजिमेंट के बीस जवानों को सरहद पर शहीद कर दिया गया। हम भारतीय किसी को दिल की गहराइयों से अपनाते हैं, लेकिन किस मजबूरी में उसके आगे बिछ जाते हैं, यह बात समझ में नहीं आती।
भारत जिसे अपना सीमा क्षेत्र मानता है उस पर चीन भी अपना दावा करता है। हमारे गृह मंत्री कुछ कहते हैं और प्रधानमंत्री कुछ कहते हैं। भरोसा तो दोनों वरिष्ठ राजनेताओं पर देश की जनता को है, क्योंकि कोई आम व्यक्ति उस क्षेत्र में जा ही नहीं सकता, पत्रकार वहां पहुंच नहीं सकते। ऐसे में देश की जनता को सरकारी सूचनाओं पर ही निर्भर रहना होगा। और, जब सरकार का प्रमुख यह कहे कि न हमारे सीमा क्षेत्र में कोई आया, न हमारे सीमा-क्षेत्र पर किसी का कोई कब्जा है, तो फिर एक बड़ा प्रश्न यह है जिसे विपक्ष और देश की समस्त जनता उठा रही है कि जब कोई अतिक्रमण हुआ नहीं, कोई कब्जा भी चीन ने नहीं किया तो फिर हमारे बीस जांबाज सैनिक शहीद कैसे और क्यों हो गए?
सत्ता पक्ष यह मानता है कि जब प्रधानमंत्री ने बयान दे दिया कि वहां कुछ हुआ ही नहीं है तो विपक्ष और प्रश्न उठाने वाले यह साजिश क्यों रच रहे हैं तथा सरकारी सूचना को गलत और प्रधानमंत्री के बयान को झूठा क्यों ठहरा रहे है! सरकार का यह भी कहना है कि निश्चित रूप से मीडिया द्वारा तोड़-मरोड़कर प्रधानमंत्री के बयान को आम लोगों के समक्ष रखकर समाज और देश को भ्रमित किया जा रहा है। ऐसे में विपक्ष फिर यह प्रश्न उठा रहा है कि आखिर यह खून-खराबा क्यों हुआ और इतने भारतीय सैनिक शहीद क्यों हुए? इस प्रश्न को हम यहां अनुत्तरित छोड़ रहे हैं, क्योंकि यह विवादित मुद्दा है और इसका हल खोजने के लिए हमारे देश के सत्तारूढ दल और विपक्ष सब इस कठिन परिस्थितियों में एक होने की बात करते हैं। और, जब भारत संगठित होकर चीन का विरोध करेगा तो फिर चीन को भारत की सामरिक ताकत का एहसास होगा। भारत के सभी विशेषज्ञ इसका हल ढूंढ़ने में लगे हुए हैं और जब ऐसा है तो प्रयास देश हितकारी ही होगा, यह उम्मीद तो बनती ही है।
वैसे तो भारत पर आदिकाल से ही आक्रमण होता रहा है, लेकिन हमारे भारतीय राजा-महराजाओं से लेकर आज तक सबने उसकी रक्षा के लिए अदम्य साहस का परिचय दिया और अपने भारतीय होने के आत्मगौरव की रक्षा की। उदाहरण से भरे पड़े इस देश के योद्धाओं ने अभूतपूर्व हिम्मत का परिचय दिया है जिसे पढ़कर और सुनकर रक्त खौलने लगता है, और खुद के भारतीय होने पर गर्व महसूस होने लगता है।
शिवाजी सावंत ने अपनी किताब ‘छावा’ में कई ऐसे उदाहरण दिए हैं, जो रोमांचित भी कराते हैं और गौरवान्वित भी। युद्ध में मराठा राजपुरुष शिवाजी के बेटे महाराज संभाजी और उनके कवि और योद्धा मित्र कुलेश को औरंगजेब ने युद्ध में पराजित करने के बाद दोनों को औरंगजेब के दरबार में लाकर सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हुए खजाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने डर से अपने सिर नहीं झुकाए। क्रोधित औरंगजेब ने सार्वजनिक रूप से सजा देने का हुक्म दिया और कहा कि खजाने का पता यदि नहीं बताए तो इनकी जीभ काट ली जाएं और आँखों में गर्म सलाखें डाल दिए जाएं। आदेश के बाद ऐसा ही किया गया, लेकिन भारतीय सपूतों ने इतने कष्ट सहकर भी हार स्वीकार नहीं की। उसके बाद आदेश दिया गया कि शरीर के खाल को छीलकर उसपर गर्म पानी में नमक मिलाकर उन पर डाला जाए। ऐसा दारुण कष्ट देकर भी औरंगजेब उनसे वह राज नहीं उगलवा सका, जो वह उगलवाना चाहता था। यह तो एक उदाहरण मात्र है।
देश की रक्षा के लिए इस भारत भूमि के हजारों सपूतों ने इस प्रकार हजारों कुर्बानियां इस देश के लिए दी हैं। यही जोश और उत्साह हमारे बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं में था जिसके कारण उन्हें सरहद पर शहीद होना पड़ा और चीनी सैनिकों को पीठ दिखा कर भागना पड़ा।
यह भी ठीक है कि युद्ध किसी समस्या समाधान नहीं हो सकता है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत सदैव शांति का पक्षधर ही रहा है और आगे भी रहेगा। लेकिन, यदि उसके साथ कोई षड्यंत्र करेगा, सजिश रचेगा तो भारत इसे कतई सहन भी नहीं करेगा, क्योंकि यह देश वर्ष 1962 का भारत नहीं है। इसके पास दुश्मनों को औकात बताने की सामरिक ताकत है। मेरी अपार श्रद्धांजलि है उन महान शहीदों को, जिन्होंने देश की आन-बान-शान और हमारी रक्षा के लिए अपने जीवन को मातृभूमि के लिए बलिदान कर दिया। हम उन दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)