भारत अगले दो साल में रेशम उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर होगा: स्मृति ईरानी

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केन्द्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने पहले से लागू कृषि वानिकी सब मिशन (एसएमएएफ) योजना के तहत रेशम क्षेत्र में कृषि वानिकी के कार्यान्वयन के लिए अभिसरण मॉडल पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर आज हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर केन्द्रीय वस्त्र और महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी व कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला उपस्थित रहे। इस एमओयू पर अतिरिक्त सचिव, डीएसीएंडएफडब्ल्यू  डॉ. अलका भार्गव और सदस्य सचिव (केन्द्रीय रेशम बोर्ड), वस्त्र मंत्रालय श्री रजित रंजन ओखण्डियार ने हस्ताक्षर किए। इस एमओयू का उद्देश्य कृषि वानिकी मॉडल पर आधारित रेशम उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहन देना है, जिससे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड के विजन के लिए योगदान दिया जा सकेगा। इससे उत्पादकों को जल्दी रिटर्न के लिए कृषि वानिकी में एक नया आयाम जुड़ेगा, साथ ही रेशमों की श्रृंखला के उत्पादन के लिए समर्थन मिलेगा जिनके लिए भारत प्रसिद्ध रहा है। केन्द्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी), वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार रेशम क्षेत्र में कृषि वानिकी को प्रोत्साहन देने के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा। इस अवसर पर कुछ लाभार्थियों को तसर रेशम धागे को बुनियाद रीलिंग मशीन का वितरण भी किया गया था। लाभार्थियों ने भी देश भर से वर्चुअल माध्यम से अपने अनुभव साझा किए।

इस अवसर पर, श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी ने कहा कि अगले दो साल में भारत रेशम उत्पादन के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछले छह साल के दौरान देश में कच्चे रेशम का उत्पादन लगभग 35 प्रतिशत बढ़ चुका है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि कच्चे रेशम के उत्पादन से 90 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। ‘नेशनल लेवल प्रोग्राम ऑन कन्वर्जेंस ऑफ एग्रो-सेरीकल्चर एंड इरेडिकेशन ऑफ थाई रीलिंग’, जहां पर इस एमओयू पर हस्ताक्षर हुए, को संबोधित करते हुए श्रीमती ईरानी ने बताया कि बुनियाद मशीनें उपलब्ध कराने के लिए 8,000 महिला थाई रीलर्स की पहचान की गई है और 5,000 महिलाओं को पहले ही सिल्क समग्र फेज 1 के तहत सहयोग दिया जा चुका है। उन्होंने कहा कि बाकी 3,000 थाई रीलर्स के लिए देश से अस्वच्छ और प्राचीन थाई रीलिंग की प्रक्रिया को खत्म करने के क्रम में फंड का प्रावधान कर दिया गया है।

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि इस एमओयू से कृषि आय में 20 से 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। भारत पीपीई किट्स का दुनिया में दूसरा बड़ा उत्पादक देश बन चुका है, इस बात का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के पास एग्रो टेक्निकल टेक्सटाइल में भी इतिहास रचने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि एग्रो टेक्निकल टेक्सटाइल अपनाने से किसानों की आय लगभग 60 प्रतिशत बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि एग्रो टेक और टेक्निकल टेक्सटाइल्स के बारे में जागरूकता के प्रसार में कृषि विज्ञान केन्द्रों को शामिल करने से कृषि आधारित टेक्निकल टेक्सटाइल की खपत बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे नए उत्पादों के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त होगा।

इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि एमओयू से न सिर्फ किसानों की आय और उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि उनके सामने आने वाली मुश्किलें भी खत्म होंगी। उन्होंने रेशम उत्पादन में लगे किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें कृषक उत्पाद संगठनों (एफपीओ) से जोड़ने का सुझाव दिया।

सचिव, वस्त्र मंत्रालय श्री यू. पी. सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि इन एमओयू से गुणवत्ता के साथ साथ देश में रेशम उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होगी।

राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति 2014 की सिफारिशों के तहत कृषि, सहकारिता और कृषक कल्याण विभाग (डीएसी एंड एफडब्ल्यू) 2016-17 से ही कृषि वानिकी सब मिशन (एसएमएएफ) को कार्यान्वित कर रहा है। भारत इस तरह की समग्र नीति वाला पहला देश था, जिसने फरवरी, 2014 में दिल्ली में हुई विश्व कृषि वानिकी कांग्रेस में इसका शुभारम्भ किया था। वर्तमान में, इस योजना को 20 राज्यों और 2 संघ शासित क्षेत्रों में कार्यान्वित किया जा रहा है।

एसएमएएफ का उद्देश्य जलवायु लचीलापन और किसानों को आय के अतिरिक्त स्रोत मुहैया कराने के साथ-साथ लकड़ी आधारित व औषध उद्योग के लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कृषि फसलों के साथ बहुउद्देश्यीय पेड़ लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना है। इसीलिए लंबा समय लेने वाली इमारती लकड़ी की प्रजातियों के अलावा औषधीय पौधों, फल, चारा, वृक्ष जनित तिहलन, लाख पोषित पेड़ आदि को शामिल करने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। रेशम क्षेत्र में भागीदारी को औपचारिक रूप देने की पहल में विशेष रूप से रेशम के कीड़ों का पोषण करने वाले पौधों- शहतूत, आसन, अर्जुन, सोम, सोलु, केसरू, बड़ा केसरू, फांट आदि को कृषि भूमियों पर ब्लॉक वृक्षारोपण या सीमा या परिधीय वृक्षारोपण के रूप में इनकी खेती को बढ़ावा देने के लिए लक्षित किया गया है। खेत की मेड़ों पर कृषि प्रजातियों आधारित वृक्षारोपण और रेशम कीट पालन में कृषि आधारित गतिविधियों से आय के नियमित स्रोत के अलावा किसानों के लिए आय के अतिरिक्त स्रोतों के सृजन की क्षमताएं हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *