इस बार क्या नीतीश शिकंज में हैं ?

सुभाष चन्द्र

बिहार की राजनीति में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। राज्य के मुखिया का घर 1, अणे मार्ग, पटना में पहले जैसी रौनक नहीं दिख रही है। सचिवालय में अधिकारियों को पहले वाला आत्मविश्वास नहीं दिख रहा है। जदयू कार्यालय में भाजपा के खिलाफ रणनीति बन रही है। प्रदेश स्तर के भाजपाई दिल्ली के निर्देश पर हर क्षण कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। समय-समय पर राज्य के भाजपा नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर व्यंगवाण चलाते हैं। उनके कामकाज पर सवाल विपक्ष ही नहीं, सत्ता के सहयोगी भी उठा रहे हैं। हद तो तब हो जाती है, जब भाजपा नेता यह भी तय करने लग जाते हैं कि कौन सा अधिकारी मुख्यमंत्री के करीब होगा या नहीं !

ये तमाम बातें हाल के दिनों की है। नवंबर के दूसरे सप्ताह में चंद मंत्रियों के साथ नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन जाते हैं, लेकिन डेढ महीना हो जाने के बाद भी मंत्रिमंडल का कोरम पूरा नहीं कर पाते हैं। जाहिर है सबकुछ ठीक नहीं है। पहले पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश में जदयू के विधायकों को भाजपा में शामिल करा लिया जाता है और उसके बाद भाजपा नेता नीतीश कुमार के  पसंदीदा गृह सचिव और गृह विभाग को लेकर भाजपा नेता मुखर हो जाते हैं। जाहिर सी बात है भाजपा इस बार नीतीश को पूरा शिकंजे में रखना चाहती है। वैसे, ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि भाजपा अपने मंसूबे में कितना सफल हो पाएगी।
बहरहाल, अरुणाचल प्रदेश में भाजपा द्वारा जदयू के सात में से छह विधायकों को अपने पाले में करने के बाद उसकी आंच से बिहार की सियासत गरमाने लगी है। बिहार में गठबंधन सरकार चला रहेेे भाजपा-जदयू के रिश्तों में खटास पड़ने की आशंका के बीच भाजपा एमएलसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गृह विभाग की जिम्मेदारी किसी और को सौंप देना चाहिए। नीतीश कुमार पहले ही विधायकों के पाला बदलने के मुद्दे पर विपक्ष के साथ-साथ अपनी ही पार्टी में सवालों के बाण झेल रहे हैं। वहीं, अब संजय पासवान के बयान के बाद नीतीश पर अधिक दबाव पड़ने की आशंका है। गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के पास गृह, सामान्य प्रशासन, सतर्कता एवं सामान्य प्रशासन विभागों का प्रभार है। कई लोगों ने राज्य के गृह सचिव अमीर सुहानी को लेकर मोर्चा खोल दिया है कि आखिर एक ही अधिकारी इस पद पर इतने वर्षों से क्यों है ? क्या राज्य के अन्य अधिकारी पर मुख्यमंत्री को भरोसा नहीं है ? या कहानी कुछ और है!

असल में, भाजपा नेता संजय पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार पर बहुत सारे कामों का बोझ है। उन्हें गृह विभाग किसी और को दे देना चाहिए। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उन्हें मंत्रालय भाजपा को सौंप देना चाहिए। कुछ अन्य जदयू नेताओं को यह पदभार संभालने दें। वहीं, जब पासवान से यह सवाल किया गया कि क्या वह ऐसा राज्य में कानून-व्यवस्था के मुद्दे को लेकर चाह रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि हां, कानून-व्यवस्था बिगड़ने को अधिक प्रभावी तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए। बता दें कि पिछले दो सप्ताह में, बिहार में दो दर्जन से अधिक लोगों की हत्या की गई है।
दूसरी ओर छह जदयू विधायकों के पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने पर प्रतिक्रिया देते हुए भी संजय पासवान ने कहा कि हमें इस पर कुछ नहीं कहना है। दूसरी तरफ, जदयू के नेताओं ने पासवान के बयान पर टिप्पणी करने से परहेज किया।  असल में, अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने अपनी सहयोगी जदयू को बड़ा झटका देते हुए उसके छह विधायकों को अपने पाले में कर लिया। इसके बाद से माना जा रहा है कि बिहार में गठबंधन कर सरकार चला रहीं दोनों पार्टियों के रिश्ते बिगड़ सकते हैं। वहीं, जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने भाजपा की दोस्ती पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि अरुणाचल प्रदेश में हुए घटनाक्रम ने भाजपा ने राज्य में दोस्ती का धर्म नहीं निभाया है। गौरतलब है कि जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस मामले में सवाल किया गया था तो उन्होंने कुछ खास बोलने से परहेज किया था। हालांकि जदयू प्रवक्ता के बयानों से इस बात की ओर इशारा मिल रहा है कि जदयू भाजपा की इस धोखेबाजी से खासा नाराज है।

कहा जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा के रवैए से आहत हैं। भाजपा ने बिहार में बहुत गहरा घाव देने के बाद अब अरुणाचल प्रदेश में नीतीश को बड़ा झटका दिया है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में अरुणाचल विधानसभा की सात सीट जीत कर जदयू ने सबको हैरान कर दिया था। वह राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। 60 सदस्यों की विधानसभा में 41 सीट जीत कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री सहित नेता सारे कांग्रेस के थे।
यह दूसरा झटका है, जो भाजपा ने जदयू को दिया है। पहले उसने गठबंधन में होते हुए भी चिराग पासवान का इस्तेमाल करके जदयू को सीटों का नुकसान करा दिया और अपनी सीटें बढ़ा लीं। चिराग की राजनीति की वजह से भाजपा को 73 और जदयू को 43 सीटें मिलीं। चिराग पासवान ने जदयू की सीटों पर उम्मीदवार खड़े करके उनके वोट काटे और कोई 35 सीटें हरवाईं। सबको यह पता था लेकिन भाजपा के किसी बड़े नेता ने चिराग से बात करके उनको चुनाव से हटाने की पहल नहीं की।

पार्टी के जानकार नेताओं का कहना है कि बयानों और आलोचना से ज्यादा अभी पार्टी कुछ नहीं करेगी। चूंकि अभी दो दिन कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है इसलिए इस मसले पर बोलना जरूरी है अन्यथा पार्टी बयान देने के मूड में भी नहीं थी। बताया जा रहा है कि नीतीश अभी सही समय आने का इंतजार कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में ही भाजपा का रवैया देखने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ानी शुरू कर दी है। वे अभी शक्ति संचय कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने पुरानी साथी उपेंद्र कुशवाहा से बात की है। वे पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह से मिले हैं। खबर है कि वे अपने एक दूसरे पुरानी साथी अरुण कुमार से भी बात कर रहे हैं और दशकों तक राजद का मुस्लिम चेहरा रहे अब्दुल बारी सिद्दीकी से भी बात कर रहे हैं। वे इन सबको साथ जोड़ कर भाजपा के समानांतर एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनाएंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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