जेसिका के क़ातिल का छूट जाना
आलोक कुमार
जुझारू सबरीना लाल कह रही हैं, वह थक गई हैं. उनकी बहन का हत्यारा सुधर गया हो, तो उसे आज़ाद हो जाने दो.
यह सुबह के अख़बार की सुर्खी है. जिसके बारे में जोर की भ्रांति फैली है कि यह कोरोना फैला रहा है. कभी टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ऐसी ही सुर्खी No One Killed Jesica ने बवंडर खड़ा किया था.
आज की खबर फिर व्यवस्था, समाज और मीडिया पर चोट है. इनके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है. और किसी को हो न हो मीडियाकर्मी के नाते मुझे तो शर्म आ रही है.
काश, अंदर के खेल का पर्दाफाश होता.LG ऑफिस और दिल्ली सरकार की मिलीभगत से रिहाई के फैसले पर तामील हुई है. हम जिंदा हैं तो जिंदगी पर हुए जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठनी चाहिए.
इसी सिद्धार्थ वशिष्ठ के ऑउट ऑफ़ वे सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने कभी सवाल किया था कि पहुंच वालों के लिए न्याय का मंदिर इतना सुलभ कैसे हो जाता है? तब जज साब ने न्याय व्यवस्था की लाज बचाई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के मैनेज फैसले को प्रतिकूल टिप्पणी के साथ पलट दिया था. दिल्ली पुलिस की SIT बनवा दी थी. तब SIT रिपोर्ट में पहुंच वाले के लंबे हाथ की नपाई हुई थी. तब की बात ने समाज में पैदा हुई धुकधुकी को ख़त्म किया था.
इस बार तिहाड़ जेल से जारी चारित्रिक प्रमाण पत्र मनु शर्मा की रिहाई का आधार बना है. वह प्रमाणपत्र कितना सही या ग़लत है उसकी मेरिट पर नहीं जा रहा. बल्कि यह पता करना जरुरी है कि हाल के दिनों में ऐसे कितने प्रमाण पत्र जारी हुए हैं जो आजीवन सजा पाए जघन्य अपराधियों की रिहाई का कारण बने हैं? इनमें से कितने विनोद शर्मा जैसे रसूख़ वाले पिता के बिगड़ैल पुत्र हैं?
रोने को रोया जा सकता है कि मीडिया में वह जान नहीं. लिहाजा इस चाहत का पूरा होना आसान नहीं.लेकिन सभ्यता की उम्र बाकी है. आशावादी हूं, पूरा भरोसा है कि कोई नौजवान स्टिंग कर लाएगा. समाज और राष्ट्र को चोर -चोर मौसेरे भाई वाली कुव्यवस्था से फिर बचाएगा.
(लेखक वरिष्ठ विश्लेषक हैं। इनके विचार से चिरौरी न्यूज का पूर्णतः सहमत होना जरूरी नहीं)