छोटी उम्र से ‘खेलो इंडिया’

राजेंद्र सजवान

कोरोना ने देश और दुनिया के खेलों को इस कदर नुकसान पहुँचाया है कि जिसकी भरपाई में सालों लग सकते है। दुनिया भर के खिलाड़ी, कोच, खेल संघ, खेल एक्सपर्ट्स और खेल वैज्ञानिक हैरान -परेशान हैं और उन्हें फिलहाल हालात सुधरने का लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। महामारी कब पीछा छोड़ेगी कहना मुश्किल है। आम इंसान की तरह खिलाड़ी भी अगर मगर में जी रहे हैं। खेल वैज्ञानिकों, पूर्व ओलम्पियनों, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और गुरु ख़लीफाओं के एक बड़े वर्ग का मानना है कि टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी यथावत जारी रखते हुए यदि खेल मंत्रालय और देश के तमाम खेल संघ ‘खेलो इंडिया’ पर गंभीरता से ध्यान दें तो बेहतर रहेगा।

जानकारों की राय में खेलो इंडिया सरकार की बेहतरीन योजना है, जिसमें देश के स्कूल, कालेज और ओपन वर्ग के खिलाड़ी भाग लेते हैं। लेकिन 17,20 या 25 साल के खिलाड़ियों को इस योजना से जोड़ना ज़्यादातर को रास नहीं आ रहा। अधिकांश की राय में बड़ी उम्र के खिलाड़ी हमेशा से भारतीय खेलों का कलुषित पहलू रहा है। उम्र की धोखा धड़ी के चलते असली प्रतिभा दब कर रह जाती है। तो कुछ ऐसे फर्जी खिलाड़ी आगे बढ़ जाते हैं जिनके कारण देश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रायः नाकामी मिलती है।

कुछ जाने माने खिलाड़ियों, अभिभावकों, कोचों और वैज्ञानिकों की राय में यदि खेलो इंडिया के खेल विकास कार्यक्र्म को 10 साल के बच्चों से शुरू कर 18 साल तक सीमित किया जाए और उनके जन्म प्रमाण पत्र को ठोक बजा कर देखने के साथ साथ मेडिकल किया जाए तो असल प्रतिभाओं का चयन संभव है। अफ़सोस की बात यह है कि खेल मंत्रालय द्वरा मान्यता प्राप्त आयुवर्ग के अधिकांश खिलाड़ी बड़ी उम्र के होते हैं। उनमें से कई एक पकड़ में भी आए हैं।

खेल और खिलाड़ियों के बारे में गंभीर समझ रखने वालों के अनुसार भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन में इसलिए सुधार नहीं हो पाता क्योंकि बेहतर करने की उम्र पीछे छोड़ चुके होते हैं। लेकिन सालों साल राष्ट्रीय टीम में जमे रहने की लालसा और अन्य लालच के चलते वे जूनियर खिलाड़ियों की राह रोके रहते हैं।

बेहतर होगा खेल मंत्रालय और खेल संघ छोटी उम्र के खिलाड़ियों पर ध्यान दें, उन्हें प्रोमोट करें और उनके पालन पोषण पर अधिकाधिक खर्च किया जाए। बड़ी उम्र के खिलाड़ियों को सिखाना, पढ़ाना और पालना ना सिर्फ़ महँगा पड़ता है, देशवासियों के खून पसीने की कमाई भी बर्बाद होती है। यदि छोटी उम्र का इंडिया खेलेगा तो भविष्य में बड़ी कामयाबी मिलनी तय है।

शुरुआत स्कूली खेलों से की जाए तो अच्छे परिणाम संभव हैं। प्रतिभाओं का सही चयन इसी प्लेटफार्म से संभव है। लेकिन स्कूली खेलों को संचालित करने वालों का ईमानदार होना ज़रूरी है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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