माँ के कई रूप है सिनेमा में

आकांक्षा सिंह

नई दिल्ली: या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै ।।

या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

एक औरत में देवी के सभी शक्ति के रूप स्थित है। समय के चक्र को देखते हुए दुर्गा माँ, काली माँ का भी रूप लेती है और हर रूप में अपने बच्चे एवं परिवार की सुरक्षा करती है।

माँ हर किसी की ज़िंदगी में एक अहम भूमिका निभाती है। कभी दोस्त बन कर कभी टीचर, तो कभी खुद एक बच्ची बन कर वह बेइंतहां प्यार की बौछार करती है। वैसे तो माँ को सलाम करने को कोई एक दिन काफी नहीं होता, परंतु  मदर्स डे पर देश विदेश हर जगह अपनी भावनाओं को अपनी माँ के प्रति ज़ाहिर करने के लिए मनाया जाता है। यह  दिन मई में दूसरे हफ्ते के रविवार को मनाया जाता है। और इस साल यह दिन 10 मई को मनाया जा रहा है।

बॉलीवुड इंडस्ट्री में मदर्स डे को काफ़ी धूम धाम से मनाया जाता है। लॉकडाउन होने के कारण सभी आज का दिन अपने अपने घर में बैठ कर मना रहे है और डिजिटल प्लेटफार्म के ज़रिए अपनी भावनाओं को ज़ाहिर कर रहे है।

आज हम आपको फ़िल्मी पर्दे पर माँ का किरदार किस कदर  70s से 2020 तक के सफ़र में बदला है।

1-  निरूपा रॉय

70’s की फेमस फ़िल्म “दीवार” जिसमें निरूपा रॉय ने अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की माँ के किरदार निभाया है। इस फ़िल्म का डायलॉग “मेरे पास माँ है” आज भी लोगों के रौंगटे खड़े कर देता है। निरूपा रॉय ने इस  किरदार को इतना बखूभी निभाया की इसका तोड़ आज तक किसी और फ़िल्म में नहीं है। माँ की इज़्ज़त से ले कर उसकी तौहीन करना, एक विलेन का माँ को अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करना यह सब इस मूवी में कूट कूट कर भरा हुआ है। पर माँ का प्यार कम होते हुए नज़र नही आया। इंडियन स्टीरियोटाइप मदर  का किरदार निरूपा रॉय ने और भी कई फिल्मों में निभाया है जैसे कि “अमर, अकबर, एंथोनी”, “सुहाग”, “मर्द”, “मुक़द्दर का शिकन्दर”, “लाल बादशाह”। माँ की किरदार के लिए निरूपा रॉय ने फ़िल्म स्क्रीन पर बहुत तारीफें पाई है। कहीं न कहीं उनका किरदार 70’s और 80’s के दौर में माँ की जगह एक आम इंसान के जीवन में कैसा रहता था यह भी दिखाया है।

2- नरगिस दत्त

नरगिस दत्त किसी पहचान की मोहताज़ नहीं। फ़िल्म “मदर इंडिया” में उनका किरदार आपके दिल को चीर कर रख देगा। एक अकेली माँ अपने बच्चों के जीवन के लिए कुछ भी कर सकती है। एक विधवा, नीच जात यह सारे दर्द उसकी ममता के आगे फीके पढ़ गए। तभी इस फ़िल्म का नाम मदर इंडिया रखा गया। एक माँ का प्यार जो उसे समाज से लड़ जाने के लिए भी तैयार कर देता है।

3- वहीदा रहमान

वहीदा रहमान ने माँ के बदलते हुए किरदार का रूप दिखाया है। स्मार्ट मॉडर्न क्लास और एलेगेंस से भरपूर माँ कुछ ऐसा ही रोल वहीदा रहमान ने अपनी मूवी में दिखाया है। इनका किरदार फ़िल्म इंडस्ट्री का इंडियन मदर्स के प्रति सोच के बदलाव को भी दिखाता है। इनकी फ़िल्म “ओम जय जगदीश”, “वाटर”, “रंग दे बसंती” और “दिल्ली-६” इन सभी फिल्मों ने इन्होंने माँ का किरदार एक अलग रूप से निभाया है, शांत रह के दर्द को बर्दाश्त करने पर अपनी स्मार्टनेस पर कोई फर्क ना आने देना ही इन के किरदार की स्पेशलिटी थी.

4-फरीदा जलाल

फरीदा जलाल बॉलीवुड की अडोरेबल मदर्स में से एक है। चाहे बात “डीडीएलजी” में काजोल की आज़ादी की हो या “कुछ कुछ होता है” में शाहरुख ख़ान के चुलबुलेपन की,  फरीदा जलाल ने माँ का किरदार बखूबी निभाया है। वह बॉलीवुड की सबसे क्यूट और एडवांस माँ में से एक रही है।

Farida Jalal U-turned, said her statement about breaking contact with Shah Rukh Khan was taken out of context

5- रीमा लागू

रीमा लागू ने एक मिडिल क्लास फैमिली की माँ का रूप अपनी फिल्म “मैंने प्यार किया”, “हम आपके हैं कौन”, “हम साथ साथ हैं” में निभाया है। इनका किरदार 90  दशक  की महिलाओं के मन को काफी लुभाता है।

6- रेखा

रेखा का माँ का किरदार उनकी फ़िल्म “ज़ुबैदा”, कोई मिल गया, “कृष” में देखने लायक है। एक डोमिनेटिंग माँ से लेकर प्यार से भरपूर यह दोनों रूप इन्होंने अपनी फिल्मों में दिखाया है।

7-जया बच्चन

जया बच्चन ने बहुत सी मूवी की है, परंतु उनकी फिल्में “कभी खुशी कभी ग़म”, “लागा चुनरी में दाग”, “कल हो ना हो” में उनके माँ का किरदार बेहद खूबसूरत है।

8- 2020 की फ़िल्म “बदला” में माँ का एक अलग रूप दिखाया है। किस तरह अपने बेटे की मौत का बदला एक माँ अपने पती के साथ मिल कर लेती है।

फ़िल्म इंडस्ट्री के बदलते दौर के साथ माँ का किरदार भी बदलते गया है प्यार की भावना स्थिर रही है तो कई अलग भावनाओं का आना जाना रहा है। जैसे जैसे वक्त बदलता गया माँ के रूप को भी अलग अलग तरह से दिखाया गया है। “मदर इंडिया” से ले कर “बदला” तक माँ अलग अलग रूप को फ़िल्म इंडस्ट्री ने बखूबी दिखया है।

 

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