मिथिला: जहां महिलायें अपने पति को गाना गाकर जगाती हैं
डॉ बीरबल झा
‘भोरे भेलै हो पिया, भिनसरवा भेलै हो
उठु ने पलंगिया तजि, कोयलिया बोली हो।’
यह गाने का बोल है जो पराती के रूप में पति को बिस्तर से जगाने या उठाने के लिए पत्नी गाती हैं। सुबह-सुबह दूसरों को जगाने के लिए गाना गाने की जो परंपरा है उसे पराती कहते हैं। कोयल की कूक की तरह अपनी पत्नी की मधुर ध्वनि सुन कर पति बिस्तर छोड़कर उठता है और अपने दैनिक कार्य में लग जाता है। मिथिला में पराती गाने की परंपरा अनोखी व सदियों पुरानी है। गौरतलब है कि ग्रामीण परिवेश में यह परम्परा आज भी जीवित है। संगीत मिथिला जन-सामान्य की जीवन-शैली का अभिन्न अंग है।
मिथिला वासियों का दाम्पत्य-जीवन अपने आप में एक मिसाल है और पूरी दुनिया के लिए अनुकरणीय भी। यहां पर पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति पूर्णतः समर्पित होते हैं। इसलिये यहाँ वैवाहिक संबन्ध विच्छेद या ‘डाईवोर्स’ जैसी कुप्रथा न के बराबर है। यहाँ तक की मिथिला के लोग इस शब्द को सुनना तक पसंद नहीं करते। यही कारण है कि मिथिलांचल में शादियां सत-प्रतिशत सफल देखी जाती है, जबकि मिथिला के पश्चिम प्रदेशों में संबन्ध-विच्छेद के आंकड़े काफी डराने वाले हैं।
मिथिला समाज में पति-पत्नी के रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए सामान्य रूप से दैनिक जीवन में कई ऐसेे रीति-रिवाज शामिल हैं जिससे उनके दाम्पत्य-जीवन में प्रेम के बंधन मजबूती के डोर से जीवन भर के लिए बंध जाते हैं। उदाहरण के लिए हम पराती गाने की परंपरा को देख हीं चुके हैं। मिथिला में रिवाज है कि वहां पत्नियां अपने पति को खाना खिलाने के बाद ही खाना खाती हैं जिससे की जिन्दगी में एक-दूसरे के प्रति प्रेम बना रहता है।
ऐसे कई अन्य उदाहरण दिए जा सकते हैे जो बताता हो की वहां के पारीवारिक दाम्पत्य रिश्तों के मिठास के क्या कारण है। मिथिला लोग भगवान महादेव के उपासक होते हैं यहां के शादीशुदा स्त्रीयाँ नियमितरूप से गौरी पूजन करती हैं। यह गौरी पूजन वह अपने पति की सलामती के लिए या अन्य शब्दों में कहें तो वह सुहागन बने रहने के लिए करती हैं। यहां पत्नी अपने पति को देवता मानती है अौर जीवनभर अपने पति को देवता की तरह पूजती है। बदले में वह अपने पति से भी निश्छल प्रेम पाती हैं।
यहां शादीशुदा स्त्रीयाँ दोपहर होते हीं काम पर गये अपने पति के लौटने का इंतजार करने लगती हैं। इस बीच वह अपने घर का काम-काज पूरा करके शाम होते हीं सजने-संवरने लगती है व गाती-गुनगुनाती रहती है ऐसा लगता है वह गीत-गाकर अपने पति को बुला रही हो कि पति काम से जल्दी लौटे ताकि वह उनके साथ कहीं घूमने निकल सके।
मिथिलांचल के लोग अक्सर जीविकोपार्जन के लिए काम की तलाश में अन्य प्रदेशों की ओर निकलते हैं। जब किसी स्त्री का पति गांव छोड़कर अन्य प्रदेश में काम करने के लिए जाता है, तो पत्नी अपने पति के वियोग में दिन रात काटती है जो की काफी दुसह होता है। तो वह लगनी गाते हुए अपने दिन रात काटती है। लगनी का अर्थ है पति के प्रति लगन, प्रेम व अनुराग को दर्शाने के लिए पत्नी के मुंह से गाया-गुनगुनया जाने वाला गाना। यह क्षेत्रीय भाषा का शब्द है। चलिए सुनते हैं एक लगनी की दो लाइनें और महसूस करते हैं विरहिणी स्त्री के दुःख को “पिया परदेश गेलेै सब सुख ले गेलेै, रोपी गेलै अमुआ के गाछ रै कि….”।
मिथिला में लड़की की शादी को कन्यादान कहते हैं जिसका अर्थ होता है वर पक्ष को दान के रूप में कन्या को देना, इसे वैवाहिक महायज्ञ भी कहते हैं। कन्यादान में भाग लेने वाले हर व्यक्ति को पुण्य का भागी माना जाता है। दो भिन्न परिवारों के बीच अभिन्न रिश्ते बनाने के लिए यह एक सामाजिक अनुष्ठान होता है इस सामाजिक अनुष्ठान में परिवार सदस्य व समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी तय की जाती है। इस तरह कई सारे सामाजिक सुसंगठित रीतियां बनाई गई है जिस पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उठा सकता। यही कारण है कि यहां वैवाहिक जीवन सत प्रतिशत सफल होता है।
श्रृष्टि निर्माण में स्त्री-पुरुष के संबंध का कोई विकल्प नहीं है। मनुष्य रूपी सृष्टि की कल्पना दाम्पत्य जीवन से ही है और इसी दाम्पत्य जीवन की अनोखी बानगी देखनी हो तो चलते हैं मिथिला और रूबरू होते हैं इसकी अविश्वसनीय सांस्कृतिक विरासत से।
(इस आलेख के लेखक डॉ बीरबल झा, ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबन्ध निदेशक एवं मिथिलालोक फाउण्डेशन के चेअरमैन हैं । मो0 9999107254)