प्लास्टिक के जहर से बचना जरूरी

slogans-on-no-plasticप्लास्टिक के यूज से पनप रहीं हैं कई तरह की बीमारियां
नालियों और नालों के चोक होने में पॉलीथिन और प्लास्टिक वेस्ट की अहम भूमिका

प्लास्टिक रोजमर्रा की जिंदगी में जितना जरूरी हो गया है, उतना ही ज्यादा इसका साइड इफेक्ट भी हमारे जन जीवन पर पड़ रहा है। नतीजा यह है प्लास्टिक से जनित तमाम बीमारियां जाने- अनजाने में लोगों को अपना शिकार बना चुकी हैं। ऐसे में जरूरत है प्लास्टिक के बेजा इस्तेमाल से बचने की अन्यथा यह हमारे लाइफ साइकिल को ही प्रभावित कर देगा.
जहर है यह प्याला

प्लास्टिक गर्म होने से इस्ट्रोजन टूटते हैं। प्लास्टिक के बर्तन में गर्म खाद्य या पेय पदार्थ का सेवन करने के दौरान इस्ट्रोजन शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस्ट्रोजेन हार्मोन से युक्त बीपीए अन्य हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरान या एड्रेनलिन के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है। जिससे प्रेग्नेंसी के दौरान तीन महीनों के शिशुओं में आगे चलकर आईक्यू, वक्ष कैंसर और पुरुष के प्रजनन अंगों पर इसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसके अलावा पॉली ब्रामेमियेटेड डाइफेनिल इथर्स जो कि इलेक्ट्रानिक सामानों की प्लास्टिक, पाली यूरेथेन फोम के निर्माण में प्रयुक्त होता है। जिसे जलाने पर हाइड्रोजन क्लोराइड नाइट्रेट गैस निकलती है। इस गैस से गर्ल्स में वक्ष कैंसर की संभावना रहती है.

 

प्लास्टिक की सूक्ष्म मात्रा गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। कुछ सबसे खतरनाक तत्वों में बिस्फेनाल ए और थैलेट्स हैं जो प्लास्टिक में उपयोग होते हैं। इससे मनुष्य के अन्तस्त्रावी प्रणाली, शारीरिक विकास की समस्याएं हो सकती हैं। जिससे मोटापा, मधुमेह, आटिज्म, कंसन्ट्रेशन में कमी, बांझपन, एक्टिवनेस, रेस्पिरेटरी, सेक्सुअल डिजीज और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं।

 

प्लास्टिक से निर्मित बर्तनों में माॅलीक्यूलर पाया जाता है जो पाॅलीमर से बनता है। जब हम प्लास्टिक के बर्तनो में कुछ गर्म खाते है या पीते तो ये हमारे शरीर के हर सेल में प्रवेश कर जाते है। और सेल्स को ;एजिंगद्ध आर्थात् बूढ़े करने लगते है। ये एक तरह से स्लो पाॅइजन का काम करता है जो कार्य क्षमता में भी प्रभाव डालते है। ऐसे ही चलते रहने पर ये मेल के स्पर्म और महिलाओं के अडांणु की संख्या और गुणवत्ता में कमी आती है।

 

शांता आईवीएफ सेंटर की गायनाकाॅलेजिस्ट व आईवीएफ एक्सपर्ट डाॅक्टर अनुभा सिंह कहना है कि प्लास्टिक के बर्तनों में पाए जाने वाले इस रसायन के कारण माताओं में एस्ट्रोजन बहुत अधिक सक्रिय हो जाता है। यह बच्चे के विकास पर प्रभाव डालता है तथा महिलाओं (तथा पुरुषों में भी) प्रजनन संबंधी समस्याएं उत्पन्न करता है। अतः सभी गर्भवती महिलाओं को प्लास्टिक के बर्तनों में खाना न खाने, खाना गर्म न करने तथा प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है। साथ ही साथ उन्हें डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों या प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ न खाने की सलाह भी जाती है।

 

डाॅक्टर अनुभा सिंह ने बताया कि यह पुरूषों और महिलाओं में आगे चलके इनफर्टिलिटी का कारण भी बन सकता है। जो लोग घर में प्लास्टिक के कप में चाय-कॉफी या फिर प्लास्टिक की थाली में खाना खाते हैं वह काफी खतरनाक है। प्लास्टिक के कप और प्लेट में बिस्फिनॉल-ए और डाईइथाइल हेक्सिल फैलेट जैसे केमिकल्स पाए जाते हैं, जो गर्म पानी या चाय के प्लास्टिक के कॉन्टैक्ट में आने से टूटने लगते हैं और आपकी बॉडी में एंट्री करते हैं। जैसे ही ये केमिकल्स बॉडी में मिलते हैं, शरीर में हॉर्मोनल इम्बैलेंस, का खतरा पैदा हो जाता है।

मैक्स हॉस्पिटल वैशाली ध् पटपरगंज के वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषयज्ञ डॉ विकास गोस्वामी का कहना है कि प्लास्टिक के डिब्बे में खाना गरम करने या प्लास्टिक की बोतल में रखा पानी पीने से कैंसर हो सकता है क्योंकि प्लास्टिक में उपस्थित रसायन खाद्य पदार्थों में पहुँच जाते हैं तथा फिर इन खाद्य पदार्थों के द्वारा ये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यही कारण है कि माइक्रोवेव ओवन में प्लास्टिक के बर्तनों में खाना गरम न करने की सलाह दी जाती है। प्लास्टिक की बोतल से पीते हैं पानी तो हो जाएं सावधान गर्मी के कारण प्लास्टिक के बर्तनों से कैंसर उत्पन्न करने वाले रसायन उत्सर्जित होते हैं जो खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं। 

डॉ विकास गोस्वामी का कहना है कि अगर प्लास्टिक से निकलने वाला केमिकल का लेवल बॉडी में ज्यादा हो तो लीवर, किडनी और बौनमैरो पर बुरा असर हो सकता है। आगे चलकर इसकी वजह से कैंसर भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि ये केमिकल हमारे शरीर के हॉर्मोंस को प्रभावित करते हैं। दुनिया भर में हुई स्टडी के मुताबिक, इस तरह के केमिकल्स से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा रहता है और पुरुषों में स्पर्म काउंट घटने का भी रिस्क होता है। प्रेग्नेंट महिलाओं और बच्चों के लिए ये ज्यादा नुकसानदेह होते हैं।

प्लास्टिक के बर्तनों या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में केवल हानिकारक रसायन ही नहीं होते बल्कि इसमें ठच्। या बिस्फेनोल ए भी होता है जो गर्भ में पल रहे बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास में समस्या उत्पन्न कर सकता है। हार्मोन्स में गड़बड़ी उत्पन्न होने कि सम्भावना होती है। यदि कोई गर्भवती महिला प्लास्टिक के बर्तन में गर्म किया हुआ खाना खाती है, प्लास्टिक की बोतल में पानी पीती है या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ खाती है तो यह उसके बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके कारण बच्चे में मानसिक और शारीरिक समस्याएं आ सकती हैं जिसमें मस्तिष्क से संबंधित बीमारियाँ भी शामिल हैं। इन डिब्बों में उपस्थित रसायन जिसमें बिस्फेनोल ए (बीपीए) भी शामिल है, गर्भवती महिलाओं में हार्मोन्स को असंतुलित करता है। बिस्फेनोल ए रसायन के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन बहुत अधिक सक्रिय हो जाता है।
सावधानी है जरूरी

  •  बॉटल, लंच बॉक्स या फिर स्टोरेज कंटेनर के तौर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल कम-से-कम करें।
  • इन पर नंबरिंग के अलावा ठथ्। फ्री या ठथ्त् फ्री या लेड फ्री लिखा हो तो बेहतर है।
  •  दो-तीन साल में प्लास्टिक कंटेनर और बॉटल आदि बदल दें।
  •  कांच या स्टील की बोतल ज्यादा यूज करें। बाहर प्लास्टिक की बोतल ले जाते हैं तो घर में कांच की बोतल यूज करें
  •  तेल आदि के प्लास्टिक कंटेनर को गैस के पास न रखें। गर्मी से उसमें केमिकल रिएक्शन हो सकती है।
  •  सिल्वर फॉइल में बहुत गर्म खाना न रखें, न ही उसमें रखकर खाना माइक्रोवेव में गर्म करें।
  •  यूज करने के बाद प्लास्टिक प्रॉडक्ट को जलाएं नहीं, रिसाइकल के लिए दें।

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