प्रधानमंत्री मोदी ने वीर सावरकर को दी श्रद्धांजलि: ‘माँ भारती के सच्चे सपूत’

Prime Minister Modi paid tribute to Veer Savarkar, 'a true son of Mother India'चिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीर सावरकर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें “भारत माता के सच्चे सपूत” कहा। उन्होंने कहा कि विदेशी हुकूमत की कठोर यातनाएँ भी सावरकर जी की देशभक्ति को डिगा नहीं सकीं।

प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा, “भारत माता के सच्चे सपूत वीर सावरकर जी को उनकी जयंती पर सादर श्रद्धांजलि। विदेशी सत्ता की कठोर यातनाएं भी उनकी मातृभूमि के प्रति निष्ठा को डिगा नहीं सकीं। स्वतंत्रता संग्राम में उनके अदम्य साहस और संघर्ष की गाथा को देश कभी नहीं भुला सकता। राष्ट्र के लिए उनका बलिदान और समर्पण विकसित भारत के निर्माण में मार्गदर्शक बना रहेगा।”

प्रधानमंत्री मोदी के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी वीर सावरकर को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

अपने ‘X’ पोस्ट में अमित शाह ने लिखा, “स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी, जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए साहस और संयम की पराकाष्ठा को पार किया, उन्होंने राष्ट्रीय हित को अखिल भारतीय चेतना बनाने में अविस्मरणीय योगदान दिया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ऐतिहासिक बनाने वाले सावरकर जी ब्रिटिशों की कठोर यातनाओं से भी न डिगे। उन्होंने भारतीय समाज को अस्पृश्यता जैसी कुरीति से मुक्त कराने और उसे एकता के मजबूत सूत्र में बांधने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके जन्मदिवस पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से उन्हें कोटि-कोटि नमन।”

वीर सावरकर का जीवन परिचय:
विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें ‘वीर सावरकर’ के नाम से जाना जाता है, का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में हुआ था। वे एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील, और लेखक थे। उन्होंने ‘हिंदुत्व’ शब्द को परिभाषित किया और उसे लोकप्रिय किया।

वे ‘हिंदू महासभा’ के प्रमुख नेताओं में से एक रहे। सावरकर ने हाई स्कूल के दौरान ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था और फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में पढ़ाई के दौरान भी सक्रिय रहे।

उन्होंने लंदन में ‘इंडिया हाउस’ और ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ जैसे क्रांतिकारी संगठनों के साथ मिलकर स्वतंत्रता के लिए कार्य किया। उनकी चर्चित पुस्तक ‘The Indian War of Independence’ जिसे 1857 की क्रांति पर लिखा गया था, को ब्रिटिश हुकूमत ने प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि यह स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित करने वाली मानी गई।

आज भी वीर सावरकर का जीवन राष्ट्रभक्ति, बलिदान और वैचारिक दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है।

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