‘परिपक्वता’ और ‘योग्यता’ के बीच फंसे राहुल गाँधी

कुमारी मीनू

एक व्यक्ति होने के नेता राहुल गांधी का निजी जीवन है। उसमें वह कुछ भी करें, हमें और आपको चिंता नहीं होनी चाहिए। लेकिन, चूंकि वे कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं, एक सांसद हैं और हाल में जिस प्रकार से कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई और उसमें से स्वर निकला, उसके अनुसार हम कह सकते हैं कि वे कांग्रेस के अगले अध्यक्ष हो सकते हैं। इसी बीच जैसे ही वे अपनी बीमार नानी से मिलने के लिए इटली गए, सोशल मीडिया सहित न्यूज चैनलों में यह मुद्दा बन गया। और तो और, जब कांग्रेस पार्टी के 136वीं स्थापना दिवस में वे नहीं दिखे, लोग उनकी जिम्मेदारी के भाव को लेकर सवाल करने लगे।
दरअसल, भारत की सबसे पुरानी पार्टी ‘कांग्रेस’ का मानना है कि ‘भारत में लोकतंत्र नहीं है।’ यह कथन कांग्रेस के किसी छोटे-मोटे कार्यकर्ता का नहीं बल्कि ‘कांग्रेस’ के ‘युवराज’ राहुल गांधी का है। राहुल गांधी जो अपने आप को भारत का ‘भावी प्रधानमंत्री’ समझते हैं, उनसे इस तरह के बयानों की कल्पना करना भी समझ से परे है। राहुल गांधी को स्वयं की योग्यता का पता तो नहीं परंतु दूसरों को ‘अयोग्य’ कहने से भी कोई गुरेज नहीं है।
कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी पार्टी है। इस कारण से दायित्व और कर्तव्य भी अधिक है। लेकिन पार्टी में इन दोनों में से कुछ भी साफ-साफ नहीं दिखाई पड़ता है। कांग्रेस पार्टी ‘गांधी’ से शुरू होकर गांधी’ पर ही समाप्त हो जाता है। बीच में किसी अन्य का स्थान ही नहीं है। भले ही ‘योग्यता’ का अभाव हीं क्यों ना हो। इसका सशक्त उदाहरण ‘कांग्रेस’ पार्टी या यूं कहे ‘गांधी’ परिवार के युवराज ‘राहुल गांधी’ हैं। संभवतः वे इतने ‘अयोग्य’ हैं कि कांग्रेस के ‘योग्य’ भी नहीं हैं। परंतु दूसरों को ‘अयोग्य’ कहना उनके ‘राजनीतिक खून’ में मिल चुका है।
राहुल गांधी की ‘अयोग्यता’ का पैमाना यह है कि वे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘अयोग्य’ तक कह दिया था। बात करते करते राहुल गांधी संभवतः ये भूल गए कि वे देश के मुखिया के बारे में बात कर रहे हैं। उनका यह कथन कही उन्हें हीं ‘अयोग्य’ साबित ना कर दे। यह राहुल गांधी की अयोग्यता हीं कही जाएगी कि उन्हें भारत में लोकतंत्र नहीं दिखाई पड़ रही है।
राहुल को दिए गए अपने बयानों को लेकर पुनः विचार करना चाहिए कि अगर भारत में लोकतंत्र नहीं है तो उनके द्वारा दिए गए उल-जुलूल बयान के बाद क्या उनपर कार्रवाई नहीं होती ! भारत अगर ‘लोकतंात्रिक’ देश ना होकर ‘तानाशाह’ देश होता तो राहुल गांधी के द्वारा देश के मुखिया को दिए गए बयानों के लिए क्या उन्हें कोई दण्ड नहीं दिया जाता। भारत में अगर लोकतंत्र नहीं है तो  कैसे भारत के प्रधानमंत्री के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करने के बाद भी उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती। भारत ‘लोकतांत्रिक’ देश ना होकर ‘तानाशाह’ देश होता तो, देश के मुखिया के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग उन्हें महंगा साबित हो सकता था। संभवतः उनके द्वारा दिए गए बयानों के लिए उन्हें कठोर से कठोर सजा दी जा सकती थी। परंतु वर्तमान में ऐसा नहीं है।
राहुल गांधी भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना तो देखते हैं परंतु उनमें यह योग्यता है कि नहीं इसकी जानकारी उन्हें भी नहीं है। उन्हें यह पता तक नहीं हैं कि भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए वे सही पात्र हैं भी या नहीं। राहुल गांधी अपने बयान देने के दरम्यान इतने भावुक हो जाते हैं कि उन्हें पता हीं नहीं चलता कि वे किसके लिए और क्या बोल रहे हैं। उनके द्वारा दिए गए बयानों को सुनकर कोई भी अपना माथा धुन ले। बुर्जग और नौजवान क्या देश का बच्चा-बच्चा उनके बयानों का अर्थ नहीं समझ नहीं पाता। ऐसा नहीं है कि उनके बयान सधे हुए नेता जैसे होते हैं बल्कि इतने नासमझी वाले होते हैं कि उसे मात्र ‘व्यंग्य’ ही कहा जा सकता है।
सच्चाई तो यह है कि राहुल गांधी के बयान को स्वयं उनकी पार्टी भी गंभीरता से नहीं लेती। विश्व पटल पर भी राहुल गांधी को कोई गंभीरता से नहीं लेता। विश्व में भी राहुल गांधी को ‘अपरिपक्व’ नेता माना जाता है। उन्हें ऐसा नेता माना जाता है जिसमें ‘नेता’ बनने के गुण तो नहीं है परंतु यह उन्हें ‘विरासत’ में मिली है।
राहुल गांधी के बयान बिना सधे और तथ्यहीन होते हैं। उनके मन में जो आता है उसे बोलने से कोई गुरेज नहीं करते। बिना इस चीज की जांच किए कि वे क्या और किसके बारे में कह रहे हैं। राहुल गांधी को न हीं ंतो स्वयं और न हीं देश की छवि की चिंता है। अगर उन्हें ‘स्वयं’ और ‘देश’ की छवि की चिंता होती तो वे कोई भी बयान देने से पहले एक बार जरूर उसपर विचार करते। परंतु ‘कांग्रेस’ के अधंभक्त राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का ‘दिवास्वपन’ देख रहे हैं। ‘कांग्रेस’ पार्टी और उनके नेताओं को यह भान  भी होना चाहिए कि अगर उनके ‘अयोग्य’ नेता को प्रधानमंत्री जैसे मर्यादित पद पर बैठना है तो उन्हें सबसे पहले अपनी ‘अयोग्यता’ को सुधारते हुए ‘परिपक्व’ बनना चाहिए और ऐसे बयान देने चाहिए जो मर्यादित हो। ‘कांग्रेस’ देश की सबसे पुरानी पार्टी है और इस नाते उनसे ‘परिपक्वता’ की उम्मीद देश तो कर हीं सकती है।
(लेखिका पत्रकार हैं।)

 

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