राजा भैया: जिनका वचन ही है शासन

रीना सिंह, अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट

कुंवर रघुराज प्रताप सिंह जी, जिन्हे लोग प्यार से राजा भैया कहते है, वह नाम है जो उत्तर प्रदेश ही नही बल्कि सम्पूर्ण भारत में किसी परिचय का मोहताज नही है। यह एक ऐसी राष्ट्रवादी शख्सियत हैं, जिनसे उनकी भदरी रियासत के लोग ही नही अपितु दूसरे इलाकों के लोग भी अपार प्रेम एवं सम्मान करते है। राजा भैया पिछले कई दशकों से कुंडा प्रतापगढ़ से विधायक है। आम जनमानस का राजा भैया पर एक ऐसा अगूढ़ विश्वास है कि उनके चुनाव क्षेत्र के लोग अपने पारिवारिक मतभेद सुलझाने के लिए भी उनके पास आते हैं, लोगो का ऐसा प्रेम तथा विश्वास राजा भैया के उस असाधारण व्यक्तित्वत को दर्शाता है जो किसी रियासत के राजकुमार, विधायक या फिर किसी राजनैतिक नेता ने भारत वर्ष में अभी तक हासिल नही किया।

इनकी रियासत तथा इनके चुनाव क्षेत्र में कभी भी दंगे नहीं हुए या यूँ कहे की आज तक कभी भी कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न नही हुई, इसका सारा श्रेय राजा भैया को जाता है जिन्होंने अपने व्यवहार तथा अपने प्रेम से अनगिनत लोगो का दिल जीता हुआ है। ऐसा नहीं है की हालात हमेशा राजा भैया के पक्ष में ही रहे हैं, जितना प्रेम उनकी जनता उनसे करती है उतना ही बड़ा उनका संघर्ष भी रहा, भदरी रियासत के राज कुंवर ने अपने जीवन में बहुत बड़े राजनैतिक द्वेष एवं राजनैतिक दुर्भावना का भी बड़े बड्डपन के साथ सामना किया, जब उन्हें एवं उनके पिता राजा श्री उदय सिंह जी को मायावती के शासन काल में जेल में दिन गुजारने पड़े। उस समय भी इस राजकुँवर ने शालीनता का बेजोड़ परिचय दिया। इसमें कोई संदेह नही की राजा भैया एवं उनके परिवार को राजनैतिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, परन्तु ऐसे विपरीत हालात के बावजूद भी राजा भैया एवं उनका परिवार ओर मजबूत होकर उभरे तथा अगले चुनाव में भी वह भारी मतों से विजयी होकर मंत्री बने।

लोगो का राजा भैया के प्रति अटूट प्रेम इस बात को दर्शाता है कि उनके इलाके के लोग उनकी छत्रछाया में अपने आप को सुरक्षित महसूस करते है। अक्सर हम लोग यह भूल जाते है कि, जैसे सरहद का सैनिक अपने देश की सीमाओं की हिफाजत करता है उसी प्रकार हमारे समाज को भी ऐसे कर्मठ तथा जनहितैषी योद्धाओं की जरुरत है जो समाज की मजबूती के साथ रक्षा कर सके तथा उन्हें श्रेष्ठ दिशा निर्धारित कर, एकता एवं अखंडता के ऐसे सूत्र में पिरोये जिससे उनका अपने धर्म एवं संस्कृति के प्रति सुरक्षा की भावना जागृत होने के साथ-साथ चहुमुखी विकास हो। वह समाज कभी भी विकसित नही कहला सकता जो अपनी संस्कृति, मर्यादा और पहचान को भुला बैठा हो। इतिहास गवाह है की जब-जब राजनैतिक ठेकेदारों ने सत्ता के लालच में आम जन की भावनाओ को अनसुना कर देश के लिए बड़े फैसले लिए है तब-तब आम जन मानस को भीषण विध्वंस एवं नरसंहार का सामना करना पड़ा हैं, क्या कभी हमने सोचा है की देश में लोकतांत्रिक नेता होने के बावजूद भी आम जनता के साथ ऐसा क्यों हुआ?

इसका एक मात्र कारण है, हमारा उस नेता को चुनना जो अपने लोगो के लिए लड़ना ही नही जानता तथा अपने व्यक्तिगत हितो के कारण आम जन को बलि चढ़ा देता है। आज के समय में हम चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह तथा वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप को अपना नायक समझ याद करते है, परन्तु क्या उस समय में समाज के नेताओ ने उनका साथ दिया जब वह जीवित थे और अपने जीवन के उस कठिनतम क्षण में थे जब उन्हें उस समय के नेताओ के साथ एवं सहयोग की सख्त जरुरत थी, यह वह समय था जब चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह तथा वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप के खिलाफ विदेशी आक्रान्तओं से ज्यादा अपने ही लोग खड़े थे, फिर चाहे वो अंग्रेज़ हो या फिर मुगल, हमारे समाज के असली दुश्मन अपने ही लोग रहे क्यूंकि उस समाज के पास लोगो की रक्षा करने वाला कोई ऐसा योद्धा नही था जो अपने व्यक्तिगत सत्ता की भूख से ऊपर उठकर लोगो की रक्षा कर सके।

देश के बटवारे तथा कश्मीरियों के विस्थापन का निर्णय तथा विभत्स्कारी नरसंहार भी, कमजोर तथा सत्ता के लालची नेताओ के कारण हुआ। हिंदुस्तान का इतिहास राजा विक्रमादित्य, पृथ्वीराज चौहान तथा राजा रंजीत सिंह से सुसज्जित है जिन्होंने अखंड भारत की संस्कृति को सहेजने के लिए अपने देश की सीमाओं को लाँघ कर दुश्मनो को खत्म किया तथा विश्व में हिंदुत्व का परचम लहराया।

हम बाहुबली जैसी फिल्म में अपने वर्चस्व के लिए लड़ने वाले नायक को देखकर प्रभावित होते है परन्तु असल ज़िन्दगी में अपराधी और नायक में भेद नही कर पाते. जिस समय भगत सिंह को फांसी दी जा रही थी उस समय हमारे समाज के नेता भगत सिंह की सोच को गलत करार दे रहे थे तथा अहिंसा परमोधर्म समाज में फैला रहे थे, समाज के वो ठेकेदार उस अहिंसा को क्यों भूल गए थे जब देश का बटवारा भीषण नरसंहार के साथ हुआ, क्यों आज भी कश्मीरी पंडितो की रूह उस काली रात को याद कर काँप जाती है जब उन्हें उनके घरों से चले जाने को कह दिया गया।

इन सब इतिहास के काले पन्नो का कारण एक ही है और वह यह है की हमारे पास ऐसे योद्धाओं और जन नायको की कमी है जो लोगो तथा समाज की भावनाओ को समझ कर अपने बलबूते पर ही उनकी रक्षा करने का सामर्थ्य एवं पराक्रम रखते हो, एक ऐसी शख्सियत जिसकी एक आवाज़ पर लोगो में क्रांति की लहर पैदा हो तथा अपने धर्म, पहचान तथा संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ भी कर ग़ुजरने का जस्बा हो। हमे तब तक उस योद्धा की कीमत का अंदाज़ा नही होता जब तक दुश्मन हमारी चौखट पर न खड़ा हो। इन सारे तथ्यों को हम  अगर ध्यान से जाने एवं समझे तो हम पाएंगे की हमे राजा भैया जैसे पराक्रमी जन नायक की जरुरत है जो लोगो के बीच में रह कर उनके दुःख दर्द को जानते और समझते है तथा उन्हें उनत्ति के मार्ग पर ले जाने का जज़्बा भी रखते है। समाज को पूरी ताकत के साथ ऐसी शख्सियत को आगे बढ़ाना चाहिए जिससे की वह जनहित के लिए ऐसे निर्णय ले सके जिससे समाज में उनत्ति और खुशहाली हो। हमारे समाज को ऐसा नेता चाहिए जो मंज़िलो को पाने के लिए समुद्र पर भी पत्थरों के पुल बना दे।

(रीना सिंह सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता हैं। लेख में दिए गए विचारों से चिरौरी न्यूज़ का सहमत होना अनिवार्य नहीं हैं।)

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