खेल मंत्री जी, देश पूछता है:खेल नीति कब तक और टोक्यो में कितने पदक?

Kiren Rijiju introduced the Waqf (Amendment) Bill in the Lok Sabha, opposition raised voices of protestराजेंद्र सजवान

वरिष्ठ भाजपा नेता और खो खो फेडरेशन के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल का मानना है कि खेलमंत्री किरण रिजिजू भारत के अब तक के सबसे सफल और काबिल खेल मंत्री हैं। मानव रचना यूनिवर्सिटी में आयोजित एक खो खो समारोह में उन्होंने भरी सभा में अपनी राय व्यक्त की।मौके पर मौजूद गण मान्य हस्तियों, पत्रकारों और खिलाड़ियों ने उनके उदघोष पर जम कर तालियां बजाईं। लेकिन लंच की टेबल पर कुछ साथी पत्रकार खेल मंत्रियों के आकलन पर चर्चा करते नज़र आये। ज्यादातर को लगा कि किरण रिजिजू की काबलियत पर तुरत फुरत में फैसला कर लिया गया।

खैर, पसंद अपनी अपनी। यह जरूरी नहीं कि हर कोई उनसे इत्तफाक रखता हो। लेकिन मीडिया का बड़ा वर्ग मानता है कि विजय गोयल पिछले कुछ सालों में बेहतरीन खेल मंत्री के रूप में जाने गए। उनका काम करने का तरीका पारदर्शी और धरातल पर टिका था। मीडिया और खिलाड़ियों के लिए वह आसानी से उपलब्ध रहते और स्लम बस्तियों में चैंपियन खोजना उनकी पहली प्राथमिकता रही।

खेल अवार्डों की बंदरबांट पर उन्होंने सख्त कदम उठाया लेकिन किरण जी के राज में रेबड़ियों की तरह अवार्ड बांटे गए। हो सकता है वह अधिकाधिक खिलाड़ियों और कोचों को खुश करने में विश्वास रखते हों। उनसे पहले के खेल मंत्री और ओलम्पिक पदक विजेता राज्य वर्धन खिलाड़ियों से दूरी बनाकर चले और फिर चलते बने।

खैर, पसंद अपनी अपनी। यह जरूरी नहीं कि हर कोई उनसे इत्तफाक रखता हो। लेकिन मीडिया का बड़ा वर्ग मानता है कि विजय गोयल पिछले कुछ सालों में बेहतरीन खेल मंत्री के रूप में जाने गए। उनका काम करने का तरीका पारदर्शी और धरातल पर टिका था। मीडिया और खिलाड़ियों के लिए वह आसानी से उपलब्ध रहते और स्लम बस्तियों में चैंपियन खोजना उनकी पहली प्राथमिकता रही।

खेल अवार्डों की बंदरबांट पर उन्होंने सख्त कदम उठाया लेकिन किरण जी के राज में रेबड़ियों की तरह अवार्ड बांटे गए। हो सकता है वह अधिकाधिक खिलाड़ियों और कोचों को खुश करने में विश्वास रखते हों। उनसे पहले के खेल मंत्री और ओलम्पिक पदक विजेता राज्य वर्धन खिलाड़ियों से दूरी बनाकर चले और फिर चलते बने।

कुछ साल पीछे चलें तो अजय माकन और उमा भारती ने खेल बैक ग्राउंड नहीं होने के बावजूद शानदार काम किया। माकन ने खेल बिल पर खासी मेहनत की, जिसे दलगत राजनीति के कारण पास नहीं होने दिया गया। माकन और उमा भारती के कामकाज का तरीका बेहद सहज था और मीडिया एवम खिलाड़ी उनसे कभी भी कहीं भी मिल सकते थे। लंदन ओलंपिक में जीते छह पदक माकन के कुशल नेतृत्व की कहानी बयां करते हैं।

सोनोवाल ने खेल मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद कई धमाके किए। उन्होंने रियो ओलंपिक में दस से बारह पदक जीतने का दावा किया। हालांकि उन्हें और उनके सलाहकारों को यह भी पता नहीं था कि कौन कौन खिलाड़ी पदक के दावेदार हो सकते हैं। अंततः उन्हें मुहं की खानी पड़ी। भारत की लाज भला सिंधु और साक्षी के दो पदक कैसे बचा सकते थे! गनीमत है वह जल्दी से प्रोमोट होकर असम के मुख्य मंत्री बन गए। जहां तक राठौर ‘साहब’ की बात है, उनके ओलंपिक पदक को सलाम। बाकी कुछ उल्लेखनीय नहीं रहा।

एक खेल मंत्री ऐसे भी हुए, जोकि हर खेल के चैंपियन थे। जब भी मौका मिलता मनमोहन सिंह गिल नाम के यह महाशय बस अपना खेल ज्ञान बांटते रहे। सभा समारोहों में उन्होंने यह बताने और जतलाने पर जोर दिया कि उन्होंने कौन कौन से खेल खेले। इसमें दो राय नहीं कि वर्तमान खेल मंत्री अधिकांश खेलों की गहरी समझ रखते हैं और इसलिए खेल ज्ञान बांटना कभी कभी अच्छा भी लगता है।

लेकिन जब ओलंम्पिक हॉकी और फुटबाल की सफलता पर बार बार अपनी जानकारी शेयर करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे भारतीय खेल प्रेमियों के जले पर नमक छिड़क रहे हों। फुटबाल और हॉकी के बारे में जो कुछ कहते है, वह इतिहास बन चुका है। आज दोनों खेलों में कुछ नहीं बचा। हॉकी में आखिरी ओलंपिक गोल्ड 31 साल पहले और फुटबॉल का आखिरी एशियाड गोल्ड 58 साल पहले जीता था।

खो खो कार्यक्रम के चलते उन्होंने कहा, “मैंने भी खूब खो खो खेला है और जिस टीम में होता था वही जीतती थी”, अब यह नयी जानकारी मीडिया को मिली है। लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा कि देश की खेल नीति कब तैयार हो पाएगी? कब टोक्यो ओलंपिक में पदक के दावेदार घोषित करेंगे और कब बताएंगे कि हम कितने पदक जीतने जा रहे हैं? भले ही खेलो इंडिया और फिट इंडिया जैसे कार्यक्रमों पर

उनका जोर है लेकिन जब तक ओलंपिक खेलों को बढावा देने के ईमानदार प्रयास नहीं किए जाते, भारत को 2028 तक ओलंपिक पदक तालिका के पहले दस देशों में कैसे देख पाएंगे? उन्हें यह सपना पूरा करना है तो खेलो इंडिया में 8 से 15 साल के बच्चों को प्रवेश दें 20-25 साल के बूढ़े और ओवर एज पर देशवासियों के खून पसीने की कमाई बर्बाद न करें, ऐसी पूर्व चैंपियनों, खेल जानकारों और मीडिया के एक उपेक्षित वर्ग की राय है।

अगर वह सचमुच अब तक के सबसे सफल खेल मंत्री कहलाने केइछुक हैं तो देश के खेल संघों की अक्ल ठिकाने लगाएं। यह भी बता दें कि किन किन खेलों में कौन कौन से खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने के दावेदार हैं। और हां 2028 के ओलंपिक नतीजों पर देशवासियों की नज़र रहेगी।

Indian Football: Clubs, coaches and referees included in 'Khela'!

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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