“खेल जीवन का अभिन्न हिस्सा बने, सिर्फ तमाशा नहीं”: IOA अध्यक्ष पीटी उषा

चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) की अध्यक्ष पी.टी. उषा ने शुक्रवार को ‘PlayCom 2025’ सम्मेलन में कहा कि भारत को एक वैश्विक खेल महाशक्ति बनने के लिए सिर्फ कुछ खेलों में सफलता नहीं, बल्कि हर स्तर पर आधुनिक तकनीक, खेल विज्ञान और मजबूत बुनियादी ढांचे को अपनाने की जरूरत है।
उषा ने कहा, “खेल को एक व्याकुलता नहीं, बल्कि शिक्षा और जीवन का अहम हिस्सा माना जाना चाहिए। आज की खेल दुनिया तेजी से बदल रही है। टेक्नोलॉजी, डेटा एनालिसिस, बायोमैकेनिक्स, रिकवरी तकनीक और न्यूट्रिशन प्लान अब सफलता की कुंजी बन चुके हैं। अगर भारत को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों में शामिल होना है, तो हमें इन उपकरणों को अपनाना होगा और हर स्तर पर सुलभ बनाना होगा।”
उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि “तकनीक एक खिलाड़ी को निखार सकती है, लेकिन असली चैंपियन बनने के लिए चरित्र, मेहनत और जज्बा जरूरी है।”
खेल को लेकर सोच में लाना होगा सांस्कृतिक बदलाव
उषा ने भारतीय समाज में खेलों के प्रति दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “हमें यह सोच बदलनी होगी कि खेल केवल एक मैच देखने की चीज़ है। खेल को रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल करना होगा। हर स्कूल में बच्चों को खेलने का समय और स्थान मिलना चाहिए। हर समुदाय में लड़कों और लड़कियों के लिए सुरक्षित खेल मैदान होने चाहिए। माता-पिता को खेल को जोखिम नहीं, अवसर के रूप में देखना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “एक एथलीट देश को प्रेरणा दे सकता है, लेकिन एक खेल-प्रेमी राष्ट्र पूरी दुनिया को प्रेरित कर सकता है।”
जड़ों से खोजनी होगी प्रतिभा
IOA की पहली महिला अध्यक्ष बनने वाली पी.टी. उषा ने अपने जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि असली प्रतिभा सिर्फ बड़े शहरों या अकादमियों में नहीं, बल्कि छोटे गांवों और कस्बों में भी छिपी होती है।
“मैं केरल के छोटे से गांव पय्योली से निकलकर ओलंपिक तक पहुंची। 1984 के लॉस एंजेलेस ओलंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में मैं मात्र एक सौवें सेकेंड से पदक से चूक गई, लेकिन वो पल मेरे लिए पराजय नहीं, प्रेरणा था। उस दिन हमने दिखाया कि एक भारतीय महिला भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ दौड़ सकती है।”
खेल के ज़रिए देश को मिले आत्मविश्वास
उषा ने भारत के खेल इतिहास की याद दिलाते हुए कहा कि ध्यानचंद की हॉकी, मिल्खा सिंह की दौड़, क्रिकेट की एकता और बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाज़ी और शूटिंग में आज के चैंपियनों की उपलब्धियाँ सिर्फ रिकॉर्ड नहीं, बल्कि भारत की आत्म-छवि को बदलने वाले क्षण हैं।
उन्होंने जोर दिया, “लेकिन इतिहास अपने आप हमें आगे नहीं ले जाएगा। हमें देखना होगा कि भारतीय खेलों का भविष्य क्या है – और मेरा जवाब है: जमीनी स्तर का विकास। हर बच्चे को अवसर, प्रशिक्षण, पोषण, सुविधाएं और सबसे ज़रूरी – प्रोत्साहन मिलना चाहिए।”
अपने समापन भाषण में उन्होंने कहा, “खेल ने मुझे सबसे बड़ा उपहार दिया – अनुशासन, आत्मविश्वास और बड़े सपने देखने की हिम्मत। हमें ये संकल्प लेना चाहिए कि भारत में कोई भी बच्चा खेलने, सपने देखने और चमकने के अवसर से वंचित न रहे। आइए एक ऐसा भविष्य बनाएं जहां खेल कोई अपवाद नहीं, बल्कि जीवन की शैली हो।”