राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को हाथ लगी हताशा

The opposition got frustrated in the presidential electionकृष्णमोहन झा

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति बन गई हैं। उन्होंने श्रीमती प्रतिभा पाटिल के बाद  देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने और  आदिवासी समुदाय से चुनी जाने वाली  प्रथम महिला राष्ट्रपति होने का गौरव भी हासिल किया है । श्रीमती मुर्मू को केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्हें शिवसेना, बीजू जनता दल और वाई एस आर कांग्रेस ने भी अपना समर्थन प्रदान किया। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा को सपा , तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिला हुआ था।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान की तारीख निकट आते आते कई गैर राजग दलों ने श्रीमती मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा कर दी और श्रीमती मुर्मू का राष्ट्रपति बनना मतदान के पहले ही सुनिश्चित माना जाने लगा था। श्रीमती 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी। निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई की मध्यरात्रि को समाप्त होने जा रहा है। राष्ट्रपति चुनाव में श्रीमती मुर्मू की जीत ने विपक्षी दलों के मतभेदों को एक बार फिर उजागर कर दिया है जबकि राजग के सबसे बड़े घटक भारतीय जनता पार्टी की रणनीति  पूरी तरह सफल रही है। आगामी 25 जुलाई को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने जा रही श्रीमती मुर्मू पूर्व में झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं ।इस पद पर उन्होंने 6 के अपने कार्य काल में  यद्यपि खुद को विवादों से दूर रखा परंतु  राज्यपाल के रूप में की  साहसिक फैसले चर्चा का विषय बन गए ।

अतीत में  उड़ीसा विधानसभा का  चुनाव जीतने पर उन्हें मंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने का मौका भी मिल चुका है। उनके अंदर मौजूद संगठन क्षमता और नेतृत्व कौशल ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय आदिवासी मोर्चा का उपाध्यक्ष भी मनोनीत किया था। निश्चित रूप से श्रीमती मुर्मू के रूप में  भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए सर्वथा योग्य उम्मीदवार का चयन किया था इसलिए चुनाव के दौरान  उनकी यह आलोचना कतई उचित नहीं थी कि वे कमजोर राष्ट्र पति साबित होंगी। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि ‌‌‌‌ देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को कायम रखने में वे सर्वथा समर्थ सिद्ध होंगी।

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को जब भाजपा नीत राजग का सर्वसम्मत उम्मीदवार घोषित किया गया था तभी विपक्ष को यह अहसास हो गया था कि राष्ट्रपति पद के लिए  श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का विरोध करने के लिए उसके पास कोई नैतिक आधार नहीं बचा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का निर्णय दरअसल राजग के सबसे बड़े घटक भारतीय जनता पार्टी ने लिया था जिस पर राजग के बाकी घटक दलों  निसंकोच सहमत होना स्वाभाविक था उधर विपक्ष को राष्ट्रपति पद के लिए अपने संयुक्त उम्मीदवार का नाम तय करने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा। पहले राकांपा प्रमुख शरद पवार के नाम पर विचार किया गया परंतु उन्होंने प्रत्याशी बनने से इंकार कर दिया, इसके बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री , पूर्व केंद्रीय मंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के नेता डा फारुख अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी से अनुरोध किया गया परंतु उन दोनों नेताओं ने भी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार बनने के लिए सहमति प्रदान नहीं की ।

अंततः पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी बनने पर राजी हो गए। गौरतलब है कि 2018 में भाजपा से रिश्ता तोड़ने के बाद यशवंत सिन्हा ने कुछ माह पूर्व तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  पद की जिम्मेदारी संभाली थी । तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो एवं ‌ममता बैनर्जी की इच्छा का सम्मान करते हुए वे राष्ट्रपति पद का विपक्षी उम्मीदवार बनने के लिए राजी तो हो गए परंतु वे इस हकीकत से भलीभांति परिचित थे कि मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए वे राजग उम्मीदवार श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के समक्ष कड़ी चुनौती पेश करने में असमर्थ रहेंगे। ज्यों ज्यों राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़ती गई , त्यों त्यों कई गैर राजग  विपक्षी दलों का समर्थन भी राजग उम्मीदवार श्रीमती मुर्मू को मिलता गया और एक स्थिति ऐसी भी आई कि राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व ही श्रीमती मुर्मू के राष्ट्रपति निर्वाचित होना सुनिश्चित माना जाने लगा।

भाजपा नीत राजग उम्मीदवार के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की जीत ने भविष्य की राजनीति के लिए  भाजपा की  संभावनाएं और बलवती बना दी हैं। इस जीत ने आदिवासी जनजातीय मतदाताओं के मन में इस विश्वास को जन्म दिया है कि भाजपा के पास सत्ता की बागडोर रहने पर ही गरीब आदिवासी तबके को सामाजिक उपेक्षा के दंश से मुक्ति मिल सकती है और उनके जीवन में विकास का नया युग शुरू हो सकता है।  श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बना कर भाजपा ने यह संदेश केवल आदिवासी समुदाय में ही नहीं बल्कि समाज के उन सभी कमजोर और गरीब तबकों तक पहुंचाने में सफलता हासिल की है जो वर्षों से  उच्च प्रतिष्ठित पदों तक पहुंचने की आस लगाए बैठे हैं।  श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बनाए जाने से भाजपा की ओर महिलाओं का झुकाव भी और बढ़गा ।

केंद्र में संप्रग के शासनकाल में  राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष पद पर महिलाएं आसीन हुईं थीं । भाजपा ने भी पहले लोकसभा अध्यक्ष पद  और अब राष्ट्रपति पद से महिलाओं को नवाज़ कर यह संदेश दिया है कि वह किसी भी मामले में कांग्रेस से पीछे नहीं है। भाजपा के धुर विरोधी राजनीतिक दलों के सामने अब यह दुविधा स्वाभाविक है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देने के लिए आखिर कौन सी रणनीति कारगर साबित होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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