मोदी की सहज भावुकता पर निराधार अटकलें
कृष्णमोहन झा
राज्यसभा के चार सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के अवसर पर गत दिनों उन्हें औपचारिक रूप से सदन से विदाई दी गई । इनमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता , पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जम्मू -कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी शामिल थे। नरेन्द्र मोदी ने भी इस अवसर पर सदन में अपने विचार व्यक्त किए। यूं तो उस दिन चार सदस्यों को सदन से विदाई दी जा रही थी परंतु प्रधानमंत्री अपने भाषण का अधिकांश समय गुलाम नबी आजाद की ही भूरि भूरि प्रशंसा करने में ही गुज़ार दिया। एक क्षण भी आया जब प्रधानमंत्री उनकी विनम्रता,सज्जनता, संवेदनशीलता शालीनता आदि गुणों की तारीफ करते करते इतने भावुक हो गए कि अपने आंसुओं पर भी नियंत्रण नहीं रख सके ।
प्रधानमंत्री ने सदन में मौजूद सदस्यों को बताया कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। 2005 में जम्मू-कश्मीर में हुए एक आतंकी हमले के समय वहां मौजूद गुजरात के पर्यटक दल के सदस्यों की सुरक्षित गुजरात वापसी का प्रबंध करने के लिए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री आजाद से फोन पर अनुरोध किया।तब आजाद ने न केवल उन पर्यटकों की सुरक्षित गृहराज्य वापसी का त्वरित प्रबंध किया बल्कि दूसरे दिन सभी पर्यटको के सुरक्षित पहुंचने की पुष्टि हेतु फोन भी किया।
इस प्रसंग का जिक्र करते हुए जब मोदी भावुक हो उठे तो आजाद की भी आंखों में भी आंसू आ गए। बाद में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद का कार्य काल भले ही समाप्त हो गया हो परंतु वे उन्हें निवृत्त नहीं होने देंगे। आजाद के लिए उनके दरवाज़ हमेशा खुले रहेंगे। राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू ने जल्द ही सदन में आजाद के लौटने की आशा व्यक्त की।
राज्यसभा में अपना यह कार्य काल पूर्ण करने के साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने अपने संसदीय कार्य काल के चार दशक भी पूर्ण कर लिए हैं। वे संसद के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके हैं परंतु उनके सुदीर्घ संसदीय कार्य काल में ऐसा अवसर कभी नहीं आया होगा जब उनकी तारीफ करते करते किसी प्रधानमंत्री को उन्होंने इतना भावुक होते हुए देखा हो। संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री मोदी सहित अतीत मे किसी प्रधानमंत्री को किसी मौके पर इतना भावुक होते नहीं देखा गया।स्वयं गुलाम नबी आजाद ने बाद में कहा कि उन्हें तो विश्वास ही नहीं था कि सदन से उनकी विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी इतने भावुक हो जाएंगे। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि गुलाम नबी आजाद ने सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित होने के पूर्व हुई बहस के दौरान अपने भाषण में मोदी सरकार की तीखी आलोचना से न केवल परहेज किया बल्कि कुछ मुद्दों पर प्रधानमंत्री की दिल खोलकर तारीफ करने में संकोच भी नहीं किया।
गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस पार्टी के उन नेताओं में अग्रणी माने जाते हैं जो किसी भी मुद्दे पर अपने विचार खोते समय भाषा की मर्यादा का पूरा ध्यान रखते हैं। जम्मू कश्मीर में वे कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं। संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दल के सदस्य के रूप में मोदी सरकार की आलोचना करते समय भी उन्होंने कभी आपा नहीं खोया। अतीत में पूर्व प्रधानमंत्री.अटल बिहारी बाजपेई ने भी उनकी एक निर्विवाद राजनेता के रूप में प्रशंसा की थी।
गुलाम नबी आजाद की सदन की विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी की भावुकता के अब राजनीतिक निहितार्थ खोजें जा रहे हैं जबकि उसकाआकलन प्रधानमंत्री की सहज संवेदनशीलता के रूप में किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने गुलाम नबी आजाद के जिन गुणों की भूरि भूरि प्रशंसा की है उनसे उन राजनीतिक नेताओं को प्रेरणा ग्रहण करना चाहिए जो दूसरे दलों के नेताओं की आलोचना करते समय किसी मर्यादा का पालन करने की आवश्यकता महसूस नहीं करते। आजाद जैसे सौम्य,संयत,धीर , गंभीर सिद्धांतवादी राजनेताओं का आज हर राजनीतिक दल मे अभाव कल रहा है। राज्यसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने गुलाम नबी आजाद की जो दिल खोलकर तारीफ की है उससे कांग्रेस नेतृत्व को चिंतित होने की आवश्यकता भी नहीं है। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को इस हकीकत को नजरंदाज नहीं करना चाहिए कि गुलाम नबी आजाद जैसे दल के समर्पित नेता अगर पार्टी को मजबूत बनाने के लिए कोई महत्वपूर्ण सुझाव दे रहे हैं तो उन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि पार्टी के जिन तेईस वरिष्ठ नेताओं ने गत वर्ष संगठन चुनावों के लिए आवाज उठाई थी उनमें गुलाम नबी आजाद भी शामिल थे।इन नेताओं के सुझावों पर अमल करना तो दूर, पार्टी में उन्हें हाशिए पर डाल दिया गया। इसीलिए अब यह अनुमान भी लगाए जा रहे हैं कि राज्य सभा से आजाद की विदाई के अवसर पर प्रधानमंत्री की भावुकता के राजनीतिक मायने भी हो सकते हैं। ऐसी तरह चर्चाओं के बीच गुलाम नबी आजाद ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘ प्रधानमंत्री मोदी अपनी पार्टी को मजबूती से पकड़े हुए हैं और मैं अपनी पार्टी को मजबूती से पकडे हुए हूं।’ आजाद ने तो यहां तक कह दिया है कि जिस दिन कश्मीर में काली बर्फ गिरने लगेगी उस दिन उनके दूसरे पार्टी में जाने की कल्पना की जा सकती है। आजाद की इन बातों से तो यही मतलब निकाला जा सकता है कि भले ही प्रधानमंत्री ने अपने द्वार उनके लिए खुले रखे हों परंतु वे अपनी निष्ठा नहीं बदलेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)