यूपी चुनाव को लेकर संघ परिवार में छिड़ा युद्ध !

Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath reacted on the temple-mosque dispute, said- "It is not bad to reclaim heritage"सुभाष चन्द्र
उत्तर प्रदेश की राजनीति अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर केंद्रित होती दिख रही है। भाजपा संगठन और सरकार के कई प्रकार के परिवर्तन दिख रहे हैं और कई होने वाले हैं। यदि यह कहा जाए कि सरकार और संगठन के लिए में संघ की सहमति और विचार को स्थान दिया जाता है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बीते दिनों भाजपा के केंद्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष का कई दिनों का उत्तर प्रदेश प्रवास और उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिल्ली आगमन को लेकर कई सियासी बातें सामने आईं। कई घटनाएं अभी भी पर्दे के पीछे हैं। संघ के प्रभावी पदाधिकारी और भाजपा के केंद्रीय नेताओं में सहमति बनती नहीं दिख रही है।
मुख्यमंत्र योगी आदित्यनाथ को लेकर भाजपा का एक धड़ा शुरू से ही असंतुष्ट माना जाता रहा है।

इसके पीछे कहा जा रहा है कि वो दिल्ली के कई भाजपा नेताओं की अधीनता स्वीकार नहीं करते हैं और न ही उनके सिस्टम में आते हैं। भाजपा के एक केंद्रीय महासचिव तो शुरू से ही इस कोशिश में बताए जाते हैं कि योगी आदित्यनाथ अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा न कर पाएं। समय समय पर वे इसके लिए सियासी गोटियां भी सेट करते रहे। कुछ दिन पहले एक पूर्व अध्यक्ष को वो समझाने में सफल बताए जाते हैं, जिसके बाद भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष और उत्तर प्रदेश के प्रभारी राधामोहन सिंह कई दिनों तक उत्तर प्रदेश में रहे। राज्य के मुख्यमंत्री सहित दोनों उपमुख्यमंत्री और तमाम विधायकों से विचार-विमर्श किए। बातचीत की पूरी रिपोर्ट भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपी गई। मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दरबार में पहुंचा। उसके बाद योगी आदित्यनाथ दिल्ली आए और मामला फिलहाल शांत दिखा।

योगी और उनके समर्थक इसमें राज्य में समानांतर सत्ता का नया शक्ति केंद्र बनने का खतरा देखते हैं। माना जा रहा है कि संघ नेतृत्व पिछले चार-पांच महीने से चल रही इस खींचतान में बीच का रास्ता निकालना चाहता है।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नजदीक से समझने और देखने वाले एक हिंदुत्ववादी विचारक के मुताबिक दरअसल योगी आदित्यनाथ को संघ ने अपने वीटो का इस्तेमाल करके अपनी एक वृहद योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश की कमान तब सौंपी थी, जब 2017 में न तो योगी के नाम पर उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ा गया था और न ही उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था। बल्कि सबसे ज्यादा नाम तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के लिए जा रहे थे।

मगर, सियासत में जो दिखता है, वह होता नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही मामला है। हाल के दिनों में संघ परिवार में सत्ता संघर्ष की बात सियासी गलियारों में खूब चटखारे लेकर सुने जाते हैं। कहा जा रहा है कि बीते उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सुनील बंसल ने काफी मेहनत की। मनोज सिन्हा ने भी अपने इलाके में जमीन तैयार की। न तो मनोज सिन्हा को सीएम की कुर्सी मिली और न ही सुनील बंसल को उचित तरजीह। उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले इस बात को जानते हैं कि सुनील बंसल को समांतार सत्ता भी कहा जाने लगा। इसे योगी आदित्यनाथ नहीं पचा पाए। दोनों में समन्वय की कमी की बात समय-समय पर सरेआम होती रही।

जैसे ही विधानसभा चुनाव में एक साल से कम समय बचा, राजनीतिक गोटियांें को सेट करने की कवायद शुरू हुई। यहीं से संघ परिवार, भाजपा भी संघ परिवार का ही हिस्सा है, में सत्ता संघर्ष की बात शुरू हुई। दिल्ली से पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को भेजा गया। माना गया कि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खासमखास हैं। उन्हें राज्य में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी दी जाएगी। केशवप्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री से प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात हुई। इसी बीच बीएल संतोष और राधामोहन सिंह की दिल्ली लखनउ के बीच भाग-दौड़ ने कई सियासी कहानियांे को जन्म दिया।
मामला सरसंघचालक मोहन भागवत और सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले तक भी पहुंचा। कहा जा रहा है कि वहीं से योगी आदित्यनाथ भाजपा के कुछ रणनीतिकारों पर भारी पड़े। योगी आदित्यनाथ के साथ एक बड़ा संत समाज हैं। उत्तर प्रदेश में योगी के हिन्दू वाहिनी की ताकत उनके मुख्यमंत्रीत्व काल में बढ़ती ही गई। जो लोग भाजपा के साथ केवल हिंदुत्व के नाम पर जुड़े हैं, उन्हें वर्तमान में योगी आदित्यनाथ से बड़ा कोई नेता नहीं दिखता है।
कहा तो यह भी जा रहा है कि संघ में दत्तात्रेय होसबोले, विश्व हिंदू परिषद में मिलिंद परांडे और भाजपा में योगी आदित्यनाथ की तिकड़ी आने वाले समय में भारतीय राजनीति में नया अध्याय लिखेगी। जो हिंदू राजनीति के पैरोकार हैं, उन्हें ये लोग बेहद खास लगते हैं।

संघ दूरगामी योजना के तहत हर फैसला लेता है जबकि भाजपा या कोई भी राजनीतिक दल तत्कालिक आवश्यकताओं के मुताबिक अपने निर्णय लेते हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को उसके बाद लोकसभा और विधानसभा के जितने भी चुनाव हुए पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में स्टार प्रचारक बनाकर प्रचार के लिए भेजा गया। जैसे कभी मोदी को भेजा जाता था। संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि संघ योगी को मोदी का विकल्प नहीं बल्कि उनके बाद की भाजपा के लिए तैयार कर रहा है। जब तक नरेंद्र मोदी राजनीति में सक्रिय हैं, वही भाजपा और सरकार के शीर्ष नेता हैं और रहेंगे। लेकिन उनके सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद नेतृत्व शून्यता नहीं पैदा होनी चाहिए जैसी कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद पैदा हो गई थी इसलिए संघ की कोशिश है कि भाजपा में दूसरी पंक्ति के कुछ मजबूत नेता समय रहते तैयार हो जाएं। राजनीति का अगला युग प्रखर राष्ट्रवाद का है जिसमें योगी जैसा प्रखर राष्ट्रवादी और द़ृढ़ हिंदुत्ववादी नेता ही भाजपा को आगे ले जा सकता है। इसलिए संघ किसी भी सूरत में योगी आदित्यनाथ को कमजोर नहीं होने देगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *