क्या है भाजपा का वर्चुअल और जनता का एक्चुअल ?
सुभाष चन्द्र
आजकल हम और आप खूब वर्चुअल की बात कर रहे हैं। कोरोना ने तो और भी इसे महिमा प्रदान कर दिया। नौकरी पेशा लोगों के लिए ऑनलाइन । बच्चोें-किशोरों के लिए ऑनलाइन क्लास। ई काॅमर्स का बोलबाला तो था ही। मंदिरों में पूजा पाठ भी ऑनलाइन होने लगा। डाॅक्टरों की सलाह भी इसी तरीके से मिलने लगी। जब इतना सबकुछ इस माध्यम से हो रहा हो, तो भला नेता कैसे पीछे रहते ? तभी तो भारत में तकनीक और डाटा के जरिए राजनीति करने में माहिर भारतीय जनता पार्टी ने वर्चुअल रैली की शुरुआत कर दी। केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार में जनसंवाद रैली की। इसमें सात हजार से अधिक एलईडी टीवी के जरिए वर्चुअल जनसंवाद को सफल कराने की बात कही गई। उसके बाद तो झडी लग गई।
अब सवाल उठता है कि तकनीक का इस्तेमाल यदि समय की मांग है, तो जमीनी हकीकत क्या है ? क्या हमारा समाज वाकई इसके लायक हो चुका है। जनसंवाद के नाम पर क्या वाकई जनता से संवाद होता है या उनके ही चंद नेता गुटरगू करते हैं और कर्तव्य की इतिश्री समझी जाती है। इसे एक एक करके समझा जा सकता है। याद कीजिए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नोटबंदी की थी। कैशलेस इकाॅनोमी की बात कही गई। लेकिन, जब कोरोना काल में हम देखते हैं, तो लोगों को कैशलेस नहीं, कैश वाली इकाॅनोमी पसंद आईं।
ऐसा लग रहा था कि कोरोना वायरस का संकट बढ़ा है और सब लोग घरों में बंद हैं तो कैशलेस अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी पर असल में इसका उलटा हुआ है। रिजर्व बैंक ने बताया है कि भारत में कोरोना वायरस के संकट के बीच कैशलेस की बजाय नकदी की अर्थव्यवस्था और बढ़ गई है। एक अप्रैल से 22 मई के बीच लोगों ने एक लाख 35 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी बैंकों से निकाली है। लोगों ने ई-कॉमर्स की बजाय स्थानीय दुकानदारों पर ज्यादा भरोसा दिखाया है और उनसे नकद देकर खरीद की है। पिछले साल भारत में नकदी का चलन 14 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा था, जबकि इस साल 19 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसमें और तेजी आएगी। इसका एक कारण तो यह है कि लोगों का नकदी पर भरोसा बढ़ रहा है और दूसरा कारण यह है कि बैंकों पर भरोसा घट रहा है। इस बीच यह भी खबर आई है कि तीन सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की योजना है।
बहरहाल, जिस दिन नोटबंदी हुई थी उस दिन बाजार में कुल नकदी 18 लाख करोड़ रुपए की थी और आज रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक यह 25 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई है। अप्रैल से मई के बीच बैंकों से हुई निकासी के बाद का आंकड़ा यह है कि भारत के लोगों के पास 25.12 लाख करोड़ रुपए की नकदी पहुंच गई है। यानी नोटबंदी के समय के स्तर से लगभग डढ़े गुना ज्यादा नकदी लोगों के हाथ में है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में कैशलेस लेन-देन भी बढ़ा है लेकिन उससे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है नकदी की अर्थव्यवस्था। कोरोना के संकट के बीच सरकारें और डिजिटल लेन-देन वाली कंपनियों ने काफी प्रचार भी किया है पर सका ज्यादा फायदा हुआ नहीं दिख रहा है।
दूसरी ओर सच तो यही है कि यह चुनावी मोड में बिहार को ले जाने का दिन था। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस वर्चुअल रैली का संबंध चुनाव से नहीं था तो फिर इस रैली के लिए पहला स्थान बिहार को ही क्यों चुना गया? अगर इस रैली का संबंध बिहार चुनाव से नहीं था तो बार-बार हर काम का श्रेय नीतीश कुमार और सुशील मोदी को क्यों देने की कोशिश की गई थी और अगर इस रैली का संबंध चुनाव से नहीं था तो आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व में दो तिहाई बहुमत से जीतने का दावा क्यों किया गया? मानिय या नहीं मानिए, लेकिन भाजपा का हर कदम आने वाले चुनावों को देखते हुए ही होता है। जब पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह से बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सवाल पूछे गए थे तो उन्होंने साफ तौर पर कह दिया था कि हमारी पार्टी चुनाव के लिए तैयार है और बड़े राज्यों के चुनाव टाले नहीं जाते। ऐसी बात है कि इस साल के आखिर में बिहार में विधानसभा के चुनाव है और भाजपा एक बार फिर सत्ता में लौटने के लिए जोर आजमाइश कर रही है।
अगर बात विपक्ष की राय रखने वालों की की जाए तो विपक्ष लगातार अमित शाह के जनसंवाद रैली को लेकर प्रहार कर रहा है। विपक्ष यह कह रहा है कि इस महामारी के दौरान भी इस तरीके की कोशिश करना जनता के साथ क्रूर मजाक है। जनता को यह बताना चाहिए कि सरकार ने इस कोरोनावायरस संकट के दौरान उनके लिए क्या किया? जबकि अमित शाह ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। उन्होंने अपनी नाकामयाबी छिपाने के लिए राम मुद्दा, धारा 370 और नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों को अपनी रैली में उठाया। हालांकि अमित शाह की वर्चुअल रैली के बाद बिहार में विपक्ष भी सक्रिय हो गया है। विपक्ष भी अपनी चुनावी तैयारियों को शुरू करने के लिए नए नए प्लान बनाने की कोशिश कर रहा है।
हालिया घटनाक्रम में देखें, तो सबसे हास्यास्पद स्थिति यह है कि लोग चीनी समान की बहिष्कार को लेकर बहस-मुहाबिसें कर रहे हैं। हैशटैग बाॅयकाॅट चाइना चल रहा है। वह भी चीनी मोबाइल और चीनी लैपटाॅप का उपयोग करके। लोग बाॅयकाॅट चाइना लिखा हुआ टीशर्ट पहन रहे हैं। आंदोलन कर रहे हैं। अपने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। क्या आपको पता है कि वह टीशर्ट भी चीन में बनकर ही आया है। आखिर, क्या है जमीनी हकीकत ? जो हम देख रहे हैं, जो सुन रहे हैं, वह तो कतई सच नहीं है।