हिंदी सिनेमा के लेजेंड अभिनेता ‘देव साहब’ पर आख़िर क्यों लड़कियां छिड़कती थी जान!

शिवानी रज़वारिया

शायद ही भारतीय सिनेमा में कोई ऐसा कलाकार होगा जिसके लिए उसके फैंस की दीवानगी इस कदर रही हो और खासकर लड़कियों की! उनके अभिनय ने पूरी हिंदी सिनेमा में जादू बिखेर दिया था. वह जादू अभी भी बरकरार है उनकी स्मृतियों के रूप में! आजाद हिंदुस्तान का सबसे मशहूर हीरो जिसके नाम से ही नहीं उसकी पोशाक को देख कर लड़कियां अपनी जान दे देती थीं। हिंदी सिनेमा का पहला रोमांटिक हीरो जिसने अपनी दिलकश अदायगी से हिंदी सिनेमा में धूम मचा दी।

बचपन की झलक

पंजाब में शंकरगढ़ के मध्यमवर्गीय परिवार में किशोरीमल आनंद के घर 26 सितम्बर 1923 को एक बालक ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया धरम देव आनंद। जिसने अपनी बुलंदियों से अपने नाम को हिंदी सिनेमा में “देवानंद” के नाम से अमर कर दिया।

देव का बचपन संघर्षों के साथ गुज़रा। बचपन से ही प्रतिभावान देव पढ़ाई में काफी रुचि रखते थे और लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से परिवार की आर्थिकतंगी के बावजूद भी उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। देव आगे पढ़ना चाहते थे. उनके पिता पेशे से वकील थे लेकिन पारिवारिक आर्थिक तंगी हमेशा से रहीं जिसके कारण कॉलेज छोड़ उन्हें नौकरी की ओर रुख करना पड़ा।

मुंबई का सफ़र

देवानंद 30 रुपए जेब में रखकर मुंबई की सड़कें नापने पहुंचे। नौकरी की तलाश करते करते मुंबई के मिलिट्री सेंसर ऑफिस में उन्हें लिपिक की नौकरी मिल गई जिसमें उनका काम सैनिक की आई चिठ्ठियों को उनके परिवार वालों को पढ़कर सुनाना होता था। नौकरी करते करते उन्हें प्रभात टॉकीज की एक फिल्म “हम एक हैं” में काम करने का मौका मिला. यह तो वही हुआ जैसे किसी ने उनकी मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी हो. देव हमेशा से हिंदी सिनेमा में काम करना चाहते थे. ₹160 प्रतिमाह की नौकरी छोड़ उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर कदम बढ़ाया। सन 1946 में आई देव की पहली फ़िल्म “हम एक हैं” भले ही उतनी सफल ना हुई हो लेकिन उसके बाद देवानंद का हिंदी सिनेमा में जो सफर शुरू हुआ वह फिर थमा नहीं।

सन् 1948 में फ़िल्म “ज़िद्दी” की सफलता के बाद देवानंद का करिश्मा पूरे हिंदी सिनेमा में छा गया। सन् 1951 में आई फ़िल्म “बाज़ी” में अभिनेत्री गीता बाली और कल्पना कार्तिक के साथ दर्शकों ने खूब सराहा। सन् 1954 में बनी फ़िल्म “टैक्सी ड्राइवर” ने तो लोगों का दिल पूरी तरह जीत लिया. इसी फ़िल्म के चलते देव साहब,अभिनेत्री कल्पना कार्तिक एक दूसरे के क़रीब आए और शूटिंग के दौरान लंच ब्रेक में दोनों ने एक दिन शादी भी कर ली।उनकी पत्नी कल्पना ने उनके बेटे सुनील आंनद को जन्म दिया। अपनी पत्नी कल्पना के साथ उनका ये सफ़र मरते दम तक रहा।

सन् 1957 में आई फ़िल्म “नौ दो ग्यारह” में देव और कल्पना की जोड़ी ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया पर इसी दौरान बेमिसाल सदाबहार अभिनेता देवानंद एक अजीब विवाद में फंस गए जिसके कारण उन्हें कोर्ट के आदेश का पालन करना पड़ा। दरअसल, सन्1958 में देव साहब की फ़िल्म “कालापानी” रिलीज़ होनी थी। इस फ़िल्म में सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया भी गया था। बॉलीवुड के हैंडसम स्मार्ट देवानंद अपने स्टाइल के लिए भी बेहद जाने जाते थे. उनके फैशन,स्टाइल को लोग फ़ॉलो किया करते थें जिसके चलते उनके काले कोर्ट पैंट पर ही रोक लगा दी गई थी।

क्यों लगी थी काला कोर्ट पैंट पहनने पर कानूनी रोक

स्टाइल आइकॉन देवानंद किसी भी पब्लिक प्लेस में काला कोर्ट पैंट नहीं पहन सकते थे। किस्सा कुछ इस प्रकार है कि देव साहब को उनके चाहने वाले बहुत प्यार करते थें. देव साहब की एक झलक के लिए दीवाने रहते थें। सबसे ज्यादा संख्या में लड़कियां थीं जो उनके लिए मरने से भी पीछे नहीं रहती थीं. कुछ ऐसे ही किस्से है जो बताते हैं कि जब देव साहब काला कोर्ट पैंट पहनते थे तो लड़कियां उन्हें देखकर अपनी जान देने पर आदा हो जाती थी. ये घटनाएं इतनी बढ़ गई थी कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया और देवानंद को कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए पब्लिक प्लेस में काला कोर्ट पैंट पहनना बंद करना पड़ा।

देव साहब ने हर तरह के किरदारों से दर्शकों को लुभाया है जिसमें चाहें सन् 1961 में आई फ़िल्म “हम दोनों” में निभाया डबल रोल हो या 1963 में “तेरे घर के सामने” में एक आर्किटेक्ट की भूमिका हो तमाम किरदारों को अपने अभिनय से जीवंत करने वाले देवानंद सबके दिलों पर राज करते थें।

सन् 1965 में आई फ़िल्म “गाइड” लेखक आर के नारायण के एक उपन्यास पर आधारित उनकी पहली रंगीन फ़िल्म थी जो काफी आलोचनाओं में रही. इस फ़िल्म में देव साहब के अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। यह फ़िल्म फ़िल्म इंडस्ट्री की मास्टर पीस मानी गई है। सन् 1967 में देवानंद के ही निर्देशन में बनी “ज्वैलथीफ़” बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी। 70 के दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म “जॉनी मेरा नाम” ने देवानंद, हेमामालिनी की जोड़ी को सुपरहिट कर दिया था।

“हम सब एक हैं” से हिंदी सिनेमा में  सनम, पतिता, लवमेरिज़, मुनीम जी, मुंबई का बाबू, माया, जब प्यार किसी से होता है, महल, काला बाज़ार, देश परदेश, बनारसी बाबू, मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, हरे रामा हरे कृष्णा, हमसफ़र,फंटूश, गेम्बलर, तमाम फिल्मों से अपने दर्शकों के दिलों में रहने वाले देवानंद साहब सिर्फ अपने अभिनय में ही नहीं माहिर थे वह एक बहुप्रतिभामान व्यक्ति थे. अपने निर्देशन, प्रोडक्शन से तमाम फिल्मों को रोशनी दी है। सन्1949 में देव साहब ने अपनी एक फ़िल्म कंपनी बनाई जिसका नाम “नवकेतन” रखा और अपने प्रिय मित्र गुरुदत्त को डायरेक्टर चुना। नवकेतन में उन्होंने पहली फिल्म “अफसर” बनाई जिसका निर्देशन उनके बड़े भाई चेतन आनंद ने किया उसके बाद 1951 में फिल्म “बाजी” बनाई गई जो बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही है।

रोमांसिंग विद लाइफमें अपनी लव लाइफ का खुल कर किया ज़िक्र

 देवानंद ने जिन अभिनेत्रियों के साथ काम किया उनके साथ उनका हमेशा ज़िक्र होता रहा हैं। अभिनेत्रियों के साथ उनके रिश्ते को लेकर लोगों में काफी चर्चा भी रहती थीं जिसके बारे में देवानंद ने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में साफ साफ लिखा कि ‘काम के दौरान सुरैया से मेरी दोस्ती गहरी होती जा रही थी। धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई।’ ‘एक दिन भी ऐसा नहीं बीतता था जब हम एक दूसरे से बात ना करें। अगर आमने-सामने बात नहीं हो पा रही हो तब हम फोन पर घंटों बात करते रहते थे। जल्द ही मुझे समझ आ गया कि मुझे सुरैया से प्यार हो गया है। सुरैया मुस्लिम थीं जबकि मैं हिंदू।’ देव आनंद आगे लिखते हैं कि ‘सुरैया को देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता था। उनके घरवालों ने हमारे मिलने जुलने पर रोक लगा दी थी।’ एक दिन एक पानी की टंकी के पास हम मिले। उस वक्त सुरैया ने मुझसे गले लगकर कहा- आई लव यू। बस फिर क्या था।

देव आनंद बताते हैं कि ‘सुरैया के लिए मैंने सगाई की अंगूठी खरीदी। मैं अंगूठी लेकर सुरैया के पास पहुंचा लेकिन उन्हें पता नहीं क्या हुआ उन्होंने मेरी दी हुई अंगूठी समुद्र में फेंक दी। मैंने कभी नहीं पूछा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। मैं वहां से चला आया। जैसा पहले भी होता आया है मजहब की दीवार के चलते ये प्यार अंजाम तक नहीं पहुंच पाया।’ इसके बाद देव आनंद और सुरैया ने साथ में कोई फिल्म नहीं की और ना ही फिर कभी मिले। सुरैया ने कभी शादी भी नहीं की। कहा जाता है सुरैया देव आनंद से प्यार की बात भूल नहीं पाई थीं और कुंवारी रहकर उन्होंने पूरी जिंदगी बिता दी।

ऐसी ही एक और लव स्टोरी थी देवानंद और जीनत अमान की। देवानंद ने फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में जीनत अमान को कास्ट किया था। इस फिल्म में जीनत ने देवानंद की बहन का किरदार निभाया था। शूटिंग करते करते उन्हें यह महसूस होने लगा था कि वह जीनत से प्यार करने लगे है।

इसका जिक्र खुद देव साहब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में किया था।एक दिन देवानंद जीनत को प्रोपोज करना चाहते थे. देव साहब उसी होटल ताज में उन्हें प्रोपोज करने वाले थे जिस होटल में देव और जीनत कभी डिनर पर जाया करते थे। जीनत को प्रपोज करने के लिए देव साहब ने एक छोटी सी पार्टी रखी। इस पार्टी में देव साहब ने अपने करीबी दोस्तों और जीनत को बुलाया। लेकिन देव साहब ने देखा कि राज कपूर नशे की हालत में जीनत के पास गए और उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। जीनत ने भी राज कपूर को गले लगा लिया। देव साहब ने इसे अफवाह समझ अनदेखा कर दिया था। अपनी किताब में इस किस्से का जिक्र करते हुए देव साहब ने कहा था कि ये सब देखने के बाद वो पार्टी से बाहर निकल गए। फिर कभी उन्होंने जीनत के बारे में सोचा भी नहीं। इस तरह देवानंद की इस लव स्टोरी का भी कोई किनारा नहीं मिला।

अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में देव साहब ने अपने अफेयर्स के बारे में खुलकर बताया, उन्होंने लिखा, उनके पीछे लड़कियां स्कूल के समय से ही पड़ी थीं।”मैंने लड़कियों का पीछा कभी खुद नहीं किया। लड़कियां खुद मेरी दीवानी थीं।’ देव आनंद लाहौर के गर्वमेंट कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स की पढ़ाई करते थे। ”मेरे साथ एक लड़की ऊषा चोपड़ा पढ़ती थी। उसकी मां हिंदुस्तानी और पापा अंग्रेज थे। वो साड़ी और हाई हिल की सैंडल पहन मेरे सामने वाले बैंच पर बैठती थी। मैं उसे प्यार करने लगा था। लेकिन झिझक के कारण उसे बस हाय ही बोल सका था।” हालांकि देव साहब ने यह भी माना कि कुछ लड़कियों ने उनका दिल भी तोड़ा।

देव साहब ने स्कूल का किस्सा शेयर करते हुए लिखा- ”मेरे पिता ने मेरा एडमिशन को-एड स्कूल में करा दिया था। वहां लड़कियां मुझे तंग करती थीं। वहां सांवले रंग की एक लड़की फ्लोरेंस मेरा पीछा करती थी। एक दिन म्यूनिसिपल गार्डन में वो मेरे सामने गुलाब का फूल लेकर आई और मेरे होंठों पर किस किया। दूसरे दिन फिर वो मेरे पीछे आई और मेरे पूरे चेहरे पर किस किया। वो किस और लिपस्टिक की खूशबू अभी तक मुझे याद है।”

हिंदी सिनेमा को मॉर्डन बनाने में पहला कदम उठाने वालों में देवानंद सबसे आगे गिने जाते है।हिंदी सिनेमा में नए नए चेहरे लाने का चलन देव साहब ने ही शुरू किया था।देवानंद ने ही बॉलीवुड को टीना मुनीम और जीनत अमान जैसी बेहतरीन एक्ट्रेस दीं। देवानंद साहब ने सन् 1977 में राजनैतिक गलियारों में भी चक्कर लगाया।उन्होंने एक राजनैतिक दल “नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया”का निमार्ण किया जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ काम करता था। पर ज्यादा समय तक टिक नहीं सका। सन् 2010 में देव साहब को अभिनय के लिए किशोर कुमार अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

आखिरकार वो दिन भी आ गया जब देव साहब का यह सफ़र थमने की कगार पर आ पहुंचा। लंदन के द वॉशिंगटन मे फेयर होटेल में 03 दिसंबर 2011 को आख़िरी सांस ली और हिंदी सिनेमा के लेजेंड सदाबहार हैंडसम फ़ैशन आइकॉन हीरो ने दुनियां को अलविदा कह दिया।

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